माँ-बाप कहते हैं अब हमारे पैसे लौटाओ! || आचार्य प्रशांत

Acharya Prashant

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माँ-बाप कहते हैं अब हमारे पैसे लौटाओ! || आचार्य प्रशांत

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। परिवार से ये फिर आता है कि हमने जो तुम पर इतने सारे पैसे इंवेस्ट (निवेश) किये, उसका क्या मतलब? अब वो तुम इंट्रेस्ट (ब्याज) के साथ इतने महीने में वापस करो। सीधे ऐसे ही बोल दिया जाता है, इस चीज़ को कि मतलब अगर…

आचार्य प्रशांत: नहीं, जब इस तरह व्यापार की भाषा में बात हो रही है, तो व्यापार तो कॉन्ट्रैक्ट्स (अनुबन्धों) पर चलता है। आप कहिए— कॉन्ट्रैक्ट (अनुबन्ध) दिखाओ। (श्रोतागण हँसते हैं)

भाई, प्रेम में किसी तरह का कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं होता न? प्रेम में तो आपने कहीं कोई लिखित करार करा नहीं होता है और फिर प्रेम में वसूली की भाषा में बात भी नहीं की जाती कि हमने तुम पर इतना लगाया है, लौटाओ। जैसे ही कोई वसूली की भाषा में बात करने लगे, तो अब प्यार नहीं व्यापार है। और अगर व्यापार है तो, ‘साहब, एग्रीमेंट (सहमति पत्र) दिखाइए और हमारे दिखाइए, उसमें साइन (हस्ताक्षर) कहाँ है? हमने कब सहमति दी थी कि तुम हममें इतना लगाओगे और फिर इतना माँगोगे?’

और अगर प्यार के नाते लगाया था, तो वापस माँगो मत। क्योंकि प्यार में इस तरह की माँगे तो करी नहीं जातीं। ‘हमें भी आपसे प्यार है, पिताजी। जब हमारे पास होगा और जितना होगा और जब हमें आवश्यकता समझ में आएगी, हम आपकी जितनी सेवा हो सकेगी करेंगे। लेकिन प्यार के नाते करेंगे। अभी आप वसूली की भाषा में बात कर रहे हो। वसूली की भाषा में तो दिखाइए, लीगल कान्ट्रैक्ट (वैध अनुबन्ध) दिखाइए। हमने कब अपनी सहमति दी थी कि आप हमारे ऊपर इतना लगाओगे, बचपन से आज तक और हम उसको इतने ब्याज के साथ ऐसे लौटाएँगे? दिखाइए, कहाँ है?’

प्र: कुछ फिर ऐसा बोलते रहते हैं कि ऐसी बीमारी है, उसके लिए मुझे इतने पैसे चाहिए। तो तुम लोन (ऋण) लेकर के मुझे दो, कैसे भी। मतलब, वो कुछ ऐसा बोलते रहते हैं कि…

आचार्य: देखो, बीमारी अगर उन्हें सचमुच है, तब तो उनकी मदद करनी चाहिए।

प्र: ऐसा असल में है नहीं। (श्रोतागण हँसते हैं) मतलब, वो सिर्फ़ पैसे के लिए ऐसा बोलते रहते हैं। तो मैं सोचता हूँ, ऐसा अभी इतना ज़रूरत है नहीं, तो इतना क्यों माँगते हैं?

आचार्य: क्यों माँगते हैं, तुम्हें समझ में नहीं आया है?

प्र: वो बोलते हैं कि बग़ल वाले लड़के को देखो। वो कितना अच्छा है। वो अभी लोन लेकर के घर भी, ज़मीन भी ले लिया। तुमने कुछ नहीं किया अभी तक, मेरे लिए।

आचार्य: कुछ नहीं। बोल दो कि हमारी सहानुभूति आपके साथ है। (श्रोतागण हँसते हैं) आपका इंवेस्टमेंट (निवेश) ख़राब हो गया। क्या कर सकते हैं। आपको डायवर्सिफ़ाइड पोर्टफोलियो (विविध विभाग) रखना चाहिए। थोड़ा हममें लगाया, थोड़ा बग़ल वाले लड़के में लगा देते। (श्रोतागण हँसते हैं)

ये देखो, सब शारीरिक घटनाएँ होती हैं। बच्चा पैदा हो गया।‌ इससे प्रेम थोड़े ही आ जाता है। हम बहुत बड़ी–बड़ी मिथ्स में जीते हैं, भ्रान्तियाँ। जिसमें से एक ये भी है कि बच्चा है तो उसके माँ–बाप से प्रेम का ही तो रिश्ता होगा। क्यों होगा भाई? ऐसा भी नहीं कि कभी–कभी नहीं होता है। कभी भी नहीं होता है। जो व्यक्ति जाग्रत ही नहीं है वो किसी को भी कैसे प्रेम कर सकता है? वो बच्चे को भी कैसे प्रेम कर लेगा अपने? प्रेम कोई अन्धी चीज़ है क्या?

प्रेम कोई अन्धी चीज़ है क्या? सिर्फ़ इसलिए कि तुम्हारे पास शरीर है और शरीर पशुओं का और मनुष्य का समान होता है। सिर्फ़ इसलिए कि तुम्हारे पास शरीर है, तुम प्रेम करना जान जाओगे? प्रेम तो बड़ी मेहनत से सीखना पड़ता है। किसी अन्धे–अन्धेरे क्षण में आपने सन्तान को जन्म दे दिया, इससे आपमें प्रेम आ जाएगा? प्रेम थोड़े ही आ जाएगा। कोई किसी से प्रेम नहीं करता।

कोई किसी से प्रेम नहीं करता, प्रेम सिर्फ़ ज्ञानियों ने, मनीषियों ने, सन्तों ने जाना है। प्रेम ऐसी सस्ती चीज़ नहीं है कि प्रेम हो गया। कोई लड़की दिखी, प्रेम हो गया। बच्चा पैदा हुआ, प्रेम हो गया। उसके लिए दूसरे नाम होते हैं।

कोई लड़की दिख गयी, आकर्षण हो गया। बच्चा पैदा हुआ, ममता हो गयी। प्रेम नहीं हो जाता। प्रेम बहुत ऊँची बात है। और बिलकुल डंके की चोट पर कह रहा हूँ, कोई बिरले माँ–बाप होंगे जिन्हें अपने बच्चों से ज़रा भी प्रेम होता है। माँ–बाप को आपस में ही नहीं प्रेम होता। उन्हें बच्चों से क्या प्रेम होगा! उन्हें आपस में प्रेम होता तो बच्चा पैदा किया होता? बच्चे तो सब पैदा हमारे प्रेम से नहीं होते, हमारी पाशविकता से होते हैं।

लेकिन साथ-ही-साथ अब उन्होंने पैसा तो तुम पर लगाया ही है। ठीक है? अपनी आज़ादी गिरवी रखे बिना जितना उनको लौटा सकते हो, लौटा दो। लेकिन उनको लौटाने के लिए तुम ख़ुद कहीं बन्धक मत बन जाना। अपने ख़र्चे कम-से-कम रखो। जो भी बचे, थोड़ा बहुत, उतना घर भेज दिया करो। ‘लो ये तुम्हारा है।’

क्योंकि ऋण तो था ही। प्रेम में ऋण नहीं होते। पर आपसे प्रेम का तो सम्बन्ध था नहीं तो हम उसको कर्ज़ ही मानेंगे और जितना होता रहेगा धीरे–धीरे लौटते रहेंगे। आप में से जो भी लोग माँ–बाप हैं या होने वाले हैं, अपने बच्चों से कभी इस भाषा में बात मत करना, भाई! कि तुम पर इतना ख़र्चा करा है।

मेरे सामने लोग आ चुके हैं, जिन्होंने दिखाया है कि बाप ने पूरा हिसाब रखा हुआ था कि इतना लगा। इसमें ये तक था कि जब तुम पैदा हुए तो तुम्हारे अस्पताल में कितने पैसे दिये थे, तुम्हें पैदा कराने के। वो तक है। पूरा हिसाब रखे हुए हैं पिताजी। अब कह रहे हैं कि इसका क्या करना है। ये मत करना।

तुमने किसी को पैदा कर दिया, यही उसके साथ अपराध है। ऊपर से तुम उसको ये पूरी वसूली दिखा रहे हो? ये तो क्रूरता है।

पर सब ऐसे ही होते हैं। ये सब पूरा क्या है? जिसको आप बोलते हो फ़ैमिली लॉज़ (पारिवारिक कानून) अनडिवाइडेड फैमिली लॉ (अविभाजित पारिवारिक कानून), उन सबके केन्द्र में जानते हो न? क्या बैठा हुआ है? पैसा।

लड़की को कितना पैसा देना है, जायदाद लड़कों में कैसे बँटेगी। सिविल केसेस (नागरिक मुक़दमें) जो हैं अदालतों में, वो अस्सी-नब्बे प्रतिशत सब परिवार के अन्दर के होते हैं। और किस चीज़ पर होते हैं? भाई–भाई के बीच में, बाप–बेटे के बीच में पैसा।

प्रेम थोड़े ही है कहीं। प्रेम होता, तो इतने मुक़दमे होते? लड़े हुए हैं। अब जब से नियम बन गया कि लड़की को भी बराबर का हिस्सा मिलेगा तो क्या करते हैं कि अब उसको तो दहेज दे रखा है पहले तो उससे पहले से ही लिखवा लेते हैं कि तुझे जो मिलेगा वो तू पाते ही तुरन्त भाई के नाम कर देगी स्वेच्छा से। क्योंकि तुझे तो दहेज पहले ही दे दिया न? तेरे हिस्से का तुझे मिल तो गया।

ये सब चल रहा होता है।

जिसको आप ऑनर किलिंग (सम्मान हेतु हत्या) भी कहते हो बहुत हद तक वो भी ऑनर किलिंग नहीं है, वो वसूली किलिंग (पैसा वसूलने हेतु हत्या) है। ‘तुम हमारे हिसाब से नहीं चल रहे हो। हमने तुम पर पैसा लगाया है। हम जान ले लेंगे तुम्हारी। जान से मार देंगे तुम्हें।’ लड़की की हत्या कर देंगे। अपने बेटे की हत्या कर देंगे।

माँ–बाप बनना बहुत ज़िम्मेदारी का काम है। पहले प्रेम सीखिए, फिर माँ–बाप बनिएगा। प्रेम सीखे बिना बच्चे को जन्म देना घोर अपराध है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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