क्या दुनिया डरावनी है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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क्या दुनिया डरावनी है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

वक्ता: सवाल ये है, ‘हमारी नज़र हमेशा बुरे को क्यों तलाशती है? अच्छे को नज़र क्यों नहीं तलाशती?’ तुम सोचो कि क्या कारण होते होंगे मन के कि वो हमेशा बुरे की तरफ ही देख रहा है। मैं अभी इसमें नहीं जा रहा हूँ कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है, मैं अभी मन की धारणाओं को ले लेता हूँ कि वो जिसे अच्छा मानता है, वो जिसे बुरा मानता है। फ़िलहाल उसी को ले कर आगे बढ़ते हैं। ये बात पूरी तरह स्पष्ट है कि मन उसकी तरफ ज़रूर जाता है जो बुरा है, जो उसको डराता है, जो उसको बतायेगा कि दुनिया एक खतरनाक जगह है, जो उसको ये बताये कि दुःख है। मन हमेशा उसकी तरफ भागेगा। मन को हमेशा वहाँ पर जाना पसंद है जहाँ पर खोट है, कमी है। ये जो सामने दीवार है, अगर इस पर साफ़ पेंट किया गया है, पूरी दीवार भरी हुई है, एकदम साफ़ है, और इस पर एक इतना बड़ा (हाथ से इशारा करते हुए) हिस्सा बिना पेंट के छोड़ दिया गया है, जो धब्बे जैसा दिख रहा है। तो तुम्हारी नज़र सबसे पहले कहाँ जायेगी?

सभी श्रोता(एक स्वर में): उस धब्बे पर ।

वक्ता: मन ऐसा क्यों है कि जो कमी है, वो उसको ढूँढता रहता है? जो दुःख है, पहले उसको वो दिखाई देता है। उसके साथ सौ अच्छाईयाँ हुई हों, उसे वो दिखाई नहीं देतीं। उसके साथ एक बुरी घटना हो जाए, तो वो उसको ले कर घूमता रहता है। ऐसा क्यों है? सोचा है कभी ?

श्रोता १: कभी ध्यान नहीं दिया।

वक्ता: जो कुछ बुरा है वो तुम्हारे अहंकार को पोषित करता है। उससे तुम्हारे ईगो को बढ़ावा मिलता है। अहंकार का अर्थ है कुछ ऐसा जो डरा हुआ है। अहंकार का अर्थ है कुछ ऐसा जो अपने आप को अलग मान रहा है कि मैं ये हूँ, बाकि दुनिया से कटा हुआ। और उसमें हमेशा डर होता है। मानते हो कि नहीं? ‘मैं अलग हूँ और मैं डरा हुआ हूँ क्योंकि मेरा होना किसी और के होने पर निर्भर है। कोई और मुझे प्रमाण पत्र देगा तो मैं हूँ। मेरा होना निश्चित रूप से किसी सम्बन्ध में है’। तो अहंकार का मतलब है डर। ये बात स्पष्ट है? डर गया, तो क्या जाएगा? डर गया तो क्या ख़त्म होगा? अगर दुनिया बुरी जगह है, डरावनी जगह है, तो अहंकार और बढ़ेगा, और बढ़ेगा, और बढ़ेगा। और अगर ये पता चल गया कि बुरा तो कुछ है ही नहीं तो अहंकार को मरना पड़ेगा। क्या अहंकार ये होने देगा? तो अहंकार खोज-खोज कर दुनिया में सिर्फ बुराई देखेगा क्योंकि उसका बचे रहना दुनिया के बुरे होने पर निर्भर है।

दुनिया जितनी बुरी, अहंकार उतना घना। अतीत में वो ऐसा समय याद रखेगा जब उसके साथ कुछ बुरा हुआ था, और अहंकार और घना होता जाता है। बड़ा बल मिलता है उसको। ‘मेरे साथ तो बुरा हुआ है, तो मुझे भी बुरा करने का हक़ है। मेरे साथ अतीत में हज़ार अत्याचार हुए हैं, तो मुझे हक़ है कि मैं भी अत्याचार करूँ। बचपन में मेरी बहुत पिटाई की गयी है, तो मुझे भी हक़ है कि मैं तुम्हारी पिटाई करूँ। मैं प्रथम वर्ष में आया तो मेरी रैगिंग हुई, तो मुझे है हक़ है कि मैं आने वाले जूनियर्स की रैगिंग करूँ’। अहंकार को पोषण मिलेगा क्योंकि अहंकार का होना गन्दगी पर निर्भर करता है। अहंकार का होना डर पर, वासना पर निर्भर करता है। ये जितनी होंगी, अहंकार उतना बढ़ेगा। तुम समझ रहे हो न?

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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