जाँचे जाने से डर लगता है?

Acharya Prashant

3 min
44 reads
जाँचे जाने से डर लगता है?

आचार्य प्रशांत: परेश को अक्सर लगता है कि कोई उसे चेक कर रहा है, और ये चीज़ उसे असहज कर देती है।

छोटे बच्चों की क्लास होती है, छोटे बच्चे; उनकी टीचर सामने बैठती है उनकी कॉपी वगैरह ले कर के। उनके भी एग्जाम (परीक्षा) के पेपर होते हैं, वह अपना लेकर बैठी है चेक कर रही है। अनुभव से बता रहा हूँ, बचपन में ऐसा देखा है, अनुभव भी किया है। अब उसी क्लास में एक बच्चा होता है जो बहुत खुश होता है कि उसकी कॉपी चेक की जा रही है। वो इंतज़ार कर रहा होता है। देख रहा होता है ऐसे उठ-उठ कर बार–बार कि, "मेरी वाली चेक कर रही हैं कि नहीं कर रही हैं", और फिर जैसे ही देखता है उसकी कॉपी चेक हो रही है, वो तो बहुत खुश हो जाता है।

और एक और होता है, वो मन्नत माँग रहा होता है कि, "मेरी ना चेक हो। कोई चेक ना करे मुझे।"

तो तुम्हारी समस्या ये है कि तुम चेक किए जा रहे हो या ये है कि पर्चा खराब लिखा है? क्योंकि चेक किया जाना तो बड़े गौरव की और बड़े हर्ष की बात भी हो सकती है। हम तो चाहते हैं कि हमें चेक किया जाए।

हम छोटे थे, बचपन में टीचर चेक करके स्टार बनाती थी। वन- स्टार, टू- स्टार, थ्री- स्टार… और बड़ा शौक था फाइव- स्टार लेने का। वो बनाती थीं अपना पूरा समय लेकर। (इशारों में) ऐसे बनता था, एक ऐसे त्रिभुज और फिर उसको काटकर उसपर एक और ऐसे। बड़े बड़े फाइव- स्टार, बड़ा अच्छा लगता था! जिस दिन काम अच्छे से कर रखा होता था उस दिन इंतज़ार करते थे कि हमारी कॉपी कब चेक होगी, आज फाइव- स्टार मिलेगा।

चेक होने से दिक्कत क्या है?

प्र: नहीं बस लगता है कि ज़रूरत क्या है?

आचार्य: नहीं ज़रूरत क्यों नहीं है? अगर सब ठीक है तो होने दो न चेकिंग।

सरकारी दफ्तरों में फ्लाइंग-स्क्वॉड होते हैं, उड़न- दस्ते। वो औचक निरीक्षण करते हैं। अचानक पहुँच जाते हैं और देखते हैं क्या चल रहा है। उनसे सबसे ज़्यादा घबराता कौन है?

प्र: जो चीटिंग (नक़ल) कर रहे होते हैं।

आचार्य: अरे, ये क्या बोल दिया इसने?

कोई चेक कर रहा है तो अच्छी बात है; तुम शान से बोलो कि, "आओ, करो चेक!"

जितनी हमारी सामर्थ्य है उतना कर रहे हैं। अब जितनी हमारी सामर्थ्य ही नहीं है उससे ज़्यादा तो नहीं कर पाएँगे न। जितना ज्ञान है, जितनी कुशलता, जितनी काबिलियत, कर रहे हैं भाई। अपनी ओर से हम ईमानदार हैं, अब उसके बाद भी कुछ गड़बड़ाता हो काम, तो उसकी (ऊपर की ओर इशारा करते हुए) मर्ज़ी।

महामानव तो नहीं पैदा हुए हैं। शरीर भी थकता है, ज्ञान भी कम है, ऐसा भी नहीं है कि काम में बड़े सिद्धहस्त हो गए हैं। लेकिन अपनी ओर से बेईमानी नहीं करी है, चीटिंग नहीं करी है।

जिसने चीटिंग नहीं करी है वो चेकिंग से भी नहीं घबराएगा। तो चेकिंग से घबराना नहीं है, और खुल्ला कहना है, “आइए आइए हमारा तो देखिए। आइए हमारा भी देखिए!"

अपना ज़मीर साफ़ रखो, मन अपने आप साफ़ रहेगा, उसमें अंड- बंड चीज़ें फिर नहीं डोलेंगी। ठीक है?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
Categories