गुरु तुम्हारी बीमारी के कारणों का कारण जाने || (2015)

Acharya Prashant

6 min
77 reads
गुरु तुम्हारी बीमारी के कारणों का कारण जाने || (2015)

आचार्य प्रशांत: जो अपने मन को जान जाता है, वो जो यह पूरा विस्तृत मन है, इसको भी जान जाता है। इतना तो हम समझते ही हैं, कई बार बात कर चुके हैं कि एक विशाल तंत्र है, और उस विशाल तंत्र में सब कुछ एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। अगर कोई यह कह सकता है कि – “काम मेरी मर्ज़ी से हो रहा है”, तो समूचा तंत्र यह कह सकता है एक साथ।

ऐसे समझ लो, एक समुद्र है, उस समुद्र में एक लहर उठ रही है कहीं पर, और एक लहर उससे चार हज़ार किलोमीटर दूर कहीं उठ रही है। बात समझ रहे हो? एक छोटी-सी मछली यहाँ पर अपने आने-जाने का, हिलने का प्रबंध कर रही है, और पाँच हज़ार मील दूर एक दूसरी छोटी मछली कुछ कर रही है। अब देखने में क्या लगता है? देखने में यही लगता है कि ये लहरें अलग-अलग हैं, देखने में यही लगता है कि मछलियाँ अलग-अलग हैं, पर वो सब उसी विशाल व्यवस्था में हैं।

यह भी कहना ग़लत होगा कि वो उसके हिस्से हैं। यह बात जो कही जाती है न कि – मनुष्य परमात्मा का अंश है, यह बहुत ग़लत बात है। हिस्सा-विस्सा कुछ नहीं है, सब एक है। हिस्से के तो अर्थ ये हुए कि डिविसिबिलिटी है, विभाजन है। डिविसिबिलिटी जैसी कोई चीज़ नहीं है।

यकीन मानो, अगर इतने समुद्र हैं, सब जुड़े हुए हैं। किसी एक समुद्र से, मान लो भारतीय महासागर से, तुम एक मछली निकाल लो, तो बिलकुल यकीन मानो कि किसी दूसरे महासागर में, मन लो अटलांटिक महासागर में, या प्रशांत महासागर में इसका असर पड़ेगा। इसका असर वहाँ तक पड़ेगा।

बात समझ में आ रही है? सब इतना जुड़ा हुआ है, एक तंत्र है पूरा। उस तंत्र में कोई कुछ नहीं कर रहा, क्योंकि जो भी जो कुछ कर रहा है, वो उस तंत्र से ही निर्धारित हो रहा है। तुमने मछली निकाली। तुमने मछली क्यों निकाली? क्योंकि तुम्हारे पीछे दस कारण थे, उन दस कारणों के पीछे दस कारण थे, और जितने कारण थे सब उस तंत्र के अन्दर के थे। सारे कारणों को इकट्ठा कर लो, तो जो बनता है उसका नाम है – बड़ा तंत्र, जाल, नेटवर्क।

बात समझ में आ रही है? बिलकुल नहीं आ रही है? कल्पना कर पा रहे हो क्या कह रहा हूँ? सेस्मिक वेव्स जो चलती हैं, वो इतनी सूक्ष्म होती हैं कि कहा गया है कि जापान में बैठ कर तितली पंख फड़फड़ाए तो…?

प्रश्नकर्ता: अमेरिका में भूचाल आ जाता है।

आचार्य: तो अमेरिका में भूचाल आ सकता है। आ जाता है नहीं, आ सकता है। थोड़ी-सी प्रोबेबिलिटी (संभावना) है, इतनी जुड़ी हुई हैं सारी चीज़ें। अब तितली ने पंख क्यों फड़फड़ाए? क्योंकि एक छोटा बच्चा उसकी ओर उसे पकड़ने आ रहा था। छोटा बच्चा पकड़ने क्यों आ रहा था? क्योंकि उसकी बहन ने घर से निकाल दिया था। बहन ने घर से क्यों निकाल दिया था? क्योंकि बहन जेलस (ईर्षालु) थी। बहन जेलस क्यों थी? क्योंकि उसने पड़ोस के घर में देखा था कि जब छोटा भाई आता है, तो बड़ी बहन पर ध्यान नहीं दिया जाता। पड़ोस के घर में यह क्यों हो रहा था? क्योंकि उनके जीन में था। जीन में क्यों था? क्योंकि पूरा समय का चक्र है।

कहीं कोई आख़िरी कारण मिल ही नहीं रहा। कारणों से कारण जुड़े हुए हैं, और सबकुछ एक विशाल व्यवस्था है। पृथक होना संभव ही नहीं है। तुम चाहो कि एक छोटा हिस्सा निकाल लें, पृथक कर दें, अलग करके नहीं देख सकते। तो किसका हुक्म है? पूरी व्यवस्था का हुक्म है, एक अकारण व्यवस्था का हुक्म है। इससे बहुत सारी बातें समझ में आ जाएँगी, जिसने इस बात को समझ लिया।

पहला – कर्ताभाव झूठा है, यह समझ में आ जाएगा। कोई कुछ नहीं करता, बड़े-से-बड़ा सिद्ध, बड़े-से-बड़ा योगी जो भी कर रहा है, सब कर्तत्व तो हमेशा कंडिशन्ड (संस्कारित) है, यह पहली बात। दूसरी बात – जब सब कुछ एक-दूसरे का कारण है, तो इनके भीतर कोई प्रथम कारण नहीं हो सकता, क्योंकि जिसको ही तुम प्रथम कारण बोलोगे, उसके पीछे भी दस-पाँच कारण इधर-उधर मौजूद होगें, तंत्र में। बात समझ में आ रही है?

तो प्रथम कारण को फिर इस पूरी व्यवस्था से, जिसको हम ‘संसार’ कहते हैं, इससे बाहर ही होना पड़ेगा, वो एक अलग आयाम है। अब इसमें तुम्हें श्रद्धा की ज़रूरत नहीं है, ये बात बहुत साइंटिफिक (वैज्ञानिक) है, लॉजिकल (तार्किक) है। बात समझ में आ रही है?

हम जब पहाड़ों पर जाते हैं, हम देखते हैं लैंडस्लाइड (भूस्खलन) हो रखा होता है। लैंडस्लाइड कैसे शुरू होता है? कल्पना करो। एक ज़रा-सी चींटी ने छोटा-सा तिनका गिराया, उस तिनके ने एक जो बिलकुल इक्यूलिब्रियम (साम्यावस्था) पर बैठा हुआ इतना बड़ा पत्थर था, उसको हिला दिया। पत्थर अगर इक्यूलिब्रियम पर बैठा है, और उस पर एक तिनका भी गिरे, तो क्या होगा?

प्र: पत्थर गिरेगा।

आचार्य: पत्थर गिरेगा। और उस गिरते हुए पत्थर ने एक बड़े पत्थर को गिराया, और फिर चट्टान दर चट्टान, दर चट्टान, और हो गई लैंडस्लाइड * । किसने की * लैंडस्लाइड ?

श्रोतागण: चींटी ने।

आचार्य: जो इस बात को समझेगा, वो मन को जानता है। मन को जानने का यही अर्थ है कि – संसार के तरीकों को जानना, कि एक इतना-सा बटन दबाने से इतने बड़े काम हो जाते हैं। चींटी का इस्तेमाल करके बड़ी लैंडस्लाइड लाई जा सकती है। समझ रहे हो न? आध्यात्मिक आदमी जो होता है, वो दुनिया का राजा होता है, बादशाह होता है। सन्यासी बहुत सशक्त होता है। ‘शिव’ यानि ‘शान्ति’ केंद्र में होते हैं। जब केंद्र में शिव हैं, सत्य है, तो बाहर क्या होता है? बाहर क्या होती है? क्या होती है?

श्रोतागण: शक्ति।

आचार्य: शक्ति होती है न। या ये कहा गया है कि दुर्बल्य होता है?

श्रोतागण: शक्ति होती है।

आचार्य: जिसके दिल में शिव बैठा है, उसके बाजुओं में क्या होगी?

श्रोतागण: शक्ति।

आचार्य: शक्ति होनी चाहिए न। और बाजुओं में अगर शक्ति नहीं है, तो यह किस बात का संदेश है? कि दिल में ‘शिव’ नहीं हैं। अब आप दावा तो करते हो – “शिव, शिव, शिव, शिव, शिव” – और हाथ-पाँव ऐसे हैं जैसे लकवा मारा हो, कोई शक्ति नहीं, तो बात सीधी है कि आप ‘शिव’ को नहीं जानते।

‘शिव’ को जानते होते, तो जीवन में ‘शक्ति’ होती। ‘शिव’ को जानने का अर्थ यही है कि – चींटी का इस्तेमाल करके बड़ी चट्टानें हिला दूँगा। यही है मन को समझना, यही है गुरु का उपाययुक्त होना कि – चींटी का इस्तेमाल करता है, और बड़ी चट्टानें हिला देता है।

यही है ‘गुरु’।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories