बच्चा क्यों चाहिए? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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बच्चा क्यों चाहिए? || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: हम क्यों चाहते हैं बच्चा? और ये ख़तरनाक है सवाल पूछना क्योंकि हमें नहीं पता हम क्यों चाहते हैं। हम सिर्फ़ इसलिए चाहते हैं क्योंकि सबके पास बच्चा है। जैसे कि ये (एक श्रोता की ओर इशारा करते हुए) बोले कि उनके पास भी गुब्बारा है, उसके पास भी गुब्बारा है, मम्मी, मुझे भी गुब्बारा दिलाओ न। अब पूछो, ‘गुब्बारा चाहिए क्यों?’ तो उसके पास कोई जवाब नहीं होगा।

श्रोता: शादी करने में भी वही होता है।

आचार्य: तो शादी भी ऐसे ही होती है। ‘सबकी हो गयी, मैं ही रह गया।’ ‘चल बेटा, दौड़ लगा।’ (श्रोतागण हँसते हैं)

श्रोता: शुरुआत तो वहीं से होती है।

आचार्य: हाँ।

श्रोता: लेकिन आचार्य जी, कन्विन्स (मनाना) कैसे करें?

आचार्य: या तो कन्विन्स कर लो या कंसीव (गर्भधारण) कर लो। देख लो क्या करना है।

श्रोता: पर यह बोला जाता है कि समस्या और बढ़ेगी।

आचार्य: काहे में बढ़ेंगी? जब प्रेगनेंट होओगे तब न बढ़ेंगी।

श्रोता: हाँ।

आचार्य: अब कैंसर हो गया तो और बढ़ेंगी, पर कैंसर हो क्यों? प्रॉब्लम (समस्या) तो तब आएगी न जब प्रेग्नेंट होंगे। होंगे ही नहीं। वो यही तो कहते हैं कि अगर पैंतीस-चालीस के हो गये, फिर प्रेग्नेंसी होगी तो प्रॉब्लम आएगी। तुम कहो, ’प्रॉब्लम तो तब आएगी न जब प्रेग्नेंट होंगे। यहाँ हो कौन रहा है?’

एक तो हम पढ़े-लिखे लोग नहीं हैं। हमें बिलकुल नहीं समझ में आ रहा कि इस वक्त दुनिया की हालत क्या है। दुनिया एक भी नये बच्चे का बोझ अब बर्दाश्त नहीं कर सकती, भई। और ये आध्यात्मिक नहीं, वैज्ञानिक, इकोलॉजिकल (पारिस्थितिक) बात बोल रहा हूँ मैं। तुम बच्चा पैदा कर देते हो, बच्चे के साथ-साथ रोड भी पैदा करोगे? हवा भी पैदा करोगे? मकान भी पैदा करोगे? पानी भी पैदा करोगे? अन्न भी पैदा करोगे? और पृथ्वी पर ये सब नहीं बचे हैं।

बच्चा तो पैदा कर दोगे और वो रहेगा कहाँ? खाएगा क्या? साँस कहाँ लेगा? पिएगा क्या? और फिर मुझे समझ में आता है कि कुछ लोगों के भीतर ये भावना हो सकती है कि हम पिता की तरह काम करें, हम दुलरायें, सहलायें, पुचकारें, भरण-पोषण करें, बच्चे को बड़ा करें। तो मैं कहता हूँ, ‘ये नेक ख़याल है, जाकर के गोद ले लो न।’

कितने बच्चे हैं जो बेचारे अगर गोद ले लिये जाएँ तो उनका भला होगा। गोद क्यों नहीं लेते? ये ज़िद ही बहुत बचकानी है कि जब तक मेरे वीर्य से नहीं पैदा होगा तब तक मुझमें प्रेम ही नहीं आएगा। ये प्रेम का और वीर्य का क्या सम्बन्ध है? इसमें कोई दो राय नहीं, बहुत मसलों को मैं खुला छोड़ देता हूँ। मैं कहता हूँ, ‘आप देखिए, आपके होश की बात है।’ इस मसले को मैं कभी खुला नहीं छोड़ता क्योंकि बात तुम्हारी व्यक्तिगत नहीं है।

ये इस दुनिया के सभी लोगों की बात है और जानवरों के, पक्षियों के, पूरी पृथ्वी के अस्तित्व का सवाल है। तुम जो बच्चा पैदा करोगे वो खाना माँगेगा और उसको खाना देने के लिए जंगल कटेंगे। और मुझे बिलकुल नहीं पसन्द है कि पक्षी मरें और जानवर मरें क्योंकि लोगों को बच्चे पैदा करने हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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