आचार्य प्रशांत: देखो ये, बादल है। और अभी बादलों को देखकर के ये भ्रम हो जाता है कि जैसे कोई आकृति हो। पर वो भ्रम भी इसीलिए हो पा रहा है क्योंकि उनके पीछे सूरज है। है न?
तो अगर कोई भ्रमित भी है, अगर कोई इल्यूज़न में भी है, अगर कोई कन्फ़्यूज़्ड भी है, तो इसका मतलब यही है कि कहीं-न-कहीं सच्चाई, कॉन्शियसनेस मौजूद ज़रूर है। अगर पूरा ही अन्धेरा हो, कम्पलीट डार्कनेस हो, तो तुमको कोई झूठी आकृति भी कैसे दिखेगी? बताओ। अगर घुप अन्धेरा हो तो इसमें ये तुमको जो तमाम तरह कि आकृतियाँ अभी दिख रही हैं। तो ये (बादल की ओर इशारा करके) तुम देखो, तुम्हें ऐसा लगेगा कि उसमें एक भालू है, एक पेड़ है, एक जहाज़ है। सबकुछ दिख जाएगा न उस बादल में?
और जो कुछ दिख रहा है, वो सब झूठा है। उस बादल को मान लो कि वो माइंड है। उस माइंड में तमाम तरह की चीज़ें उठ रही हैं। और वो सारी चीज़ें झूठी ही हैं। जैसे उन बादलों में तमाम तरह कि आकृतियाँ दिख रही हैं न? वैसे ही माइंड है, उसमें तमाम तरह कि चीज़ें आती रहती हैं। वो सब झूठी होती हैं, व्यर्थ ही होती हैं।
तो जब कुछ झूठ भी उठे मन में, तो यह जान लो कि झूठ भी इसीलिए उठ रहा है कि सच है। उस बादल के पीछे सूरज नहीं होता, तो उन आकृतियों में झूठ नहीं होता। तो इसीलिए फिर समझाने वालों ने कहा है कि भाई, झूठ के पीछे भी सच ही होता है। और श्रीकृष्ण ने कहा है कि ये माया भी जो है ये मेरी ही है। अगर रोशनी न हो, तो झूठी आकृति भी कहाँ से आएगी?
तो, अपने से जो ग़लतियाँ हुई हों, अपने जो इल्यूजंस रहे हों, भ्रम रहे हों, उनको ऐसे नहीं देखना चाहिए कि हाय! बहुत बड़ा गुनाह हो गया। उसको ऐसे देखना चाहिए कि रोशनी आस-पास ही है। रोशनी आस-पास ही है। अंग्रेज़ी में कहते हैं, ”एवरी क्लाउड हैज़ अ सिल्वर लाइनिंग।” इसका क्या मतलब होता है? कि क्लाउड है भले ही, क्लाउड ने ढँक रखा है रोशनी को, लेकिन तुम उसके हाशिए पर देखो। उसके कोनों पर देखो, तो तुमको सिल्वर लाइनिंग दिखाई देगी।
मतलब झूठ के पीछे भी कहीं-न-कहीं सच छुपा होता है। और सच मिलेगा झूठ में ही प्रवेश करके। उसी बादल के अन्दर घुस जाओ एकदम, तो सूरज चमकने लग जाएगा। ऐसा ही है न, सूरज अगर उस बादल के पीछे है। यहाँ से तुम सीधे चले जाओ, और बादल के भीतर ही घुस जाओगे। तो क्या होगा? फिर सूरज चमकने लगेगा।
तो ज़िन्दगी के जो झूठ हैं, उनसे मुँह नहीं चुराना चाहिए, शर्मिंदा नहीं हो जाना चाहिए। अपनेआप को गुनाहगार, अपराधी नहीं मान लेना चाहिए कि मुझसे ग़लती हो गयी, या मैं झूठ पर जी रहा हूँ, या मुझे इल्यूज़न हो गया। जो आपने ग़लती करी है न, बेख़ौफ़ होकर के उसी ग़लती में प्रवेश कर जाओ। साफ़-साफ़ उस ग़लती के क़रीब जाओ और पूछो, ‘हुआ क्या था? क्या है मेरे भीतर जो मुझसे ये सब करवाता है? कल करवाया, परसों करवाया, आज भी करवा रहा है, शायद कल भी करवाएगा। वो टेंडेंसी कौनसी है जो मुझसे ये सब करवाती रहती है?’
तो द वे आउट ऑफ़ डार्कनेस विल इमर्ज इफ़ यू कैन फ़ीयरलेसली मेक योर वे इनटू द डार्कनेस (अन्धेरे से बाहर निकलने का रास्ता दिखेगा अगर आप निडर होकर अन्धेरे में घुस जाएँ)। घुस जाओ उसमें। जो कुछ भी तुम्हारे साथ हो रहा है — तुम्हारे डर, तुम्हारी नाकामियाँ, मुँह नहीं चुराना है। न ये कह देना है कि नहीं साहब, मैं तो असफल, नाकाम हुआ ही नहीं। मानो, हाँ कुछ ग़लत हुआ है। मानो कि उधर (बादल में) जो मुझे भालू दिखाई दे रहा है वो भालू है नहीं। मानो।
और फिर कहो, ‘भालू दिखा कैसे?’ पेनीट्रेट, पेनीट्रेट ऑल योर फ़ेलियर्स एंड दैट्स वेयर सक्सेस लाइज (अपनी सारी असफलताओं को अन्दर तक देखो, और वही जगह है जहाँ सफलता होगी)।
ज़्यादा भारी हो गया? (हँसते हुए) मेरा तो काम है। मुझे बादल दिखेगा तो मैं बादल पर बोलूँगा। मुझे चाँद दिखेगा मैं चाँद पर बोलूँगा। (रिकॉर्डिंग कर रहे स्वयंसेवक को सम्बोधित करते हुए) उधर, उधर करो उदित, कितना खूबसूरत लग रहा है! पूर्णमासी का चाँद। मुझे पहाड़ दिखेगा मैं पहाड़ पर बोलूँगा।
वो रहा बादल, वो रहा पहाड़, उधर चाँद है। वो चाँद, बादल, वो पहाड़ इन्हीं से तो सीखा जाता है। और किससे सीखोगे? प्रकृति से ही तो सीखा जाता है। प्रकृति माने यही सब नहीं, प्रकृति माने हमारी पूरी ज़िन्दगी। इन्हीं से तो सीख सकते हो, और किससे सीखोगे? सीखने के लिए और कोई है ही नहीं।
निर्गुण तक भी जाना है, तो सगुण से ही सीखना पड़ेगा। ये सब सिखाने के लिए ही है। ज़िन्दगी क्यों है? सीखने के लिए। प्रकृति क्यों है? सिखाने के लिए। ये सब खेल कब तक चलता रहेगा? जब तक सीख नहीं जाते।
समझ में आयी बात?
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