सिखाने वालों से सीखो, चिपको नहीं ll आचार्य प्रशांत (2017)

Acharya Prashant

5 min
95 reads
सिखाने वालों से सीखो, चिपको नहीं ll आचार्य प्रशांत (2017)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जैसे मैं पहले ओशो जी और जिद्दू कृष्णमूर्ति जी के रंग में रंगा हुआ था और अब आपके रंग में रंगा हुआ हूँ। मुझे ये समझ नहीं आता कि यह मेरी जिज्ञासा मात्र है, प्रेम है या पागलपन?

आचार्य प्रशांत: जैसे आपने कहा था कि मन में गाने चलते रहते हैं, वैसे ही मन में ये सब लोग भी चलते रहते हैं, कभी ओशो, कभी कृष्णमूर्ति, कभी मैं। इन लोगों में कुछ विशेष नहीं है, आप ये देखें कि इनके माध्यम से आपका मन पाना क्या चाहता है।

जो कुछ भी आपका मन पाना चाहता हो, वो सहज है, सरल है, उसे माध्यम इत्यादि की विशेष ज़रूरत भी नहीं है। उस तक सीधे नहीं पहुँचेंगे तो वो कोई-न-कोई ज़रिया ढ़ूँढ़ता रहेगा।

याद रखिएगा कि ज़रिया अगर टिका ही रह गया समय में, तो फिर वो ज़रिया नहीं अवरोध बन जाता है।

आप एक गाड़ी पर बैठे हैं कहीं पहुँचने के लिए, आप गाड़ी पर टिके ही रह गये तो अब वो गाड़ी वाहन नहीं है, वो क्या है, वो बाधा है। बैठे थे इसलिए कि पहुँच जाएँ, इसलिए नहीं बैठे थे कि बैठे ही रह जाएँ।

मन का भी ऐसा ही है, मन माध्यम तलाशता है चैन पाने के लिए। चैन आसान है, माध्यम मुश्किल है। जहाँ तक हो सके चैन को बिना माध्यम के ही पाएँ।

जब बिलकुल लगे कि फँस ही गये हैं, हो ही नहीं रहा, तब माध्यम अपनाएँ और माध्यम को जब अपनाएँ तो छोड़ने के लिए अपनाएँ, इसलिए नहीं कि माध्यम पर ही अटक गये।

ओशो संकेत हैं, कृष्णमूर्ति संकेत हैं, वो बता रहे हैं कि कुछ है जो उपलब्ध है और आसानी से, स्वभाव है। और कोई बड़ी बात नहीं है, कुछ है, ऐसा लगता है कोई बड़ी रहस्यपूर्ण बात है, ऐसा लगता है बड़ी दूर की है।

जहाँ रहस्यपूर्ण वग़ैरह हुई तहाँ वो अनुपलब्ध हो जाती है। न वो अनुपलब्ध है, न दूर की है। ज़ाहिर सी बात है सबको आराम चाहिए, रातभर बस में बैठकर आएँगे तो सुबह आराम करना है कि नहीं करना है। यही स्वभाव है और कुछ नहीं।

उसको बड़ा गूढ़ मत बना लिया करिए, बात बहुत सीधी है, आराम। दूर की बात नहीं है। ओशो भी उधर को ही इशारा करते हैं, सारे सन्तों-ज्ञानियों ने उधर को ही इशारा किया है, अपनी सीमित क्षमता अनुसार मैं भी उधर को ही बताता हूँ और कोई बड़ी बात नहीं, मन को वही चाहिए।

प्र१: तो फिर धक्का क्यों नहीं दे देते मन को कि शान्त ही हो जाए?

आचार्य: दिये तो जा रहे हैं धक्के और कैसे धक्के दिये जाएँ? धक्के इतने स्थूल थोड़े ही हैं कि शरीर को दिये जाएँगे। धक्का नहीं मिला होता तो आप यहाँ तक कैसे पहुँच जाते, आपको क्या लगता है आप ख़ुद आये हैं? वहाँ से धक्का पड़ा तभी तो आये हैं।

धक्के वग़ैरह सब उपलब्ध हैं, अस्तित्व ख़ुद चाहता है कि आप सुधर जाएँ। धक्के-दर-धक्के लगते ही रहते होंगे, उन्हीं धक्को का तो नाम होता है कि कष्ट मिल रही है जीवन में, ये हो रहा है, वो हो रहा है, सब धक्के ही तो हैं।

तो सबकुछ इसी फ़िराक़ में हैं कि कैसे आपको सुधार दें। एक चींटी भी चल रही होगी न, जब आप सही नहीं होते हैं तो चींटी भी जान जाती है, उसकी भी प्रार्थना यही होती है कि आप सुधर जाएँ।

आपका पालतू कुत्ता होता है, जब आप सही नहीं होते हैं तो उसे भी ख़बर लग जाती है, तो वो भी यही मन्नत माँगता है कि आप सुधर जाएँ। पत्ता-पत्ता, बच्चा-बच्चा यही चाहता है कि सब ठीक रहे।

तो धक्के लग रहे हैं, सबकी मंशा यही है कि आप किसी तरीक़े से स्वस्थ रहें, बढ़िया रहें। आपकी अकड़ और ज़िद की बात है, जैसे ही आप उसको त्यागेंगे, सब ठीक हो जाएगा।

आप अड़े मत रहिए, ज़रा तरल रहिए, ज़रा मुलायम रहिए काम हो जाएगा।

प्र२: हवा, पत्ता, चींटी सब जानते हैं कि कुछ गड़बड़ है लेकिन हमारे माता-पिता नहीं समझते कि कुछ गड़बड़ है तो ठीक कर दें।

आचार्य: वो ये चाहते हैं कि तुम सुधरो ताकि उन्हें सुधार दो। वो ख़ुद भी तो अपने से ही त्रस्त हैं। माँ-बाप अपनेआप से नहीं परेशान हैं? तो उनकी भी तमन्ना यही है कि कुछ ऐसा हो जाए जिससे हम सुधरे। तुम उनके सुधरने का कारण बनो।

प्र२: उनकी कोशिश रहती है कि लगातार गन्दे रहो।

आचार्य: हाँ, उस कोशिश के दरमियान उनकी हालत कैसी रहती है? क्या वो आनन्दित दिखते हैं? वो जो भी कोशिशें कर रहे हैं, वो कोशिशें कर-करके उन्होंने अपना क्या हाल कर लिया है?

वो ख़ुद भी तो त्रस्त है न, जो भी त्रस्त है, जो ही भुगत रहा है, उसी की हार्दिक मंशा यही है कि उसे कोई मिले जो उसे उबार दे, तार दे, सुधार दे। तुम वो कारण बन जाओ, तुम्हारा स्पर्श ऐसा हो जाए कि तुम्हारे घरवाले सब तर जाएँ। वो दूर की बात है, पहले अपना।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories