उत्कृष्टता ही जीवन का ऐश्वर्य है || श्रीमद्भगवद्गीता पर (2020)

Acharya Prashant

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उत्कृष्टता ही जीवन का ऐश्वर्य है || श्रीमद्भगवद्गीता पर (2020)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आपने ‘ऐश्वर्य’ शब्द के बारे में मुझे थोड़ा-सा कहा था कि जीवन में ऐश्वर्य होना चाहिए और जब मैंने ये आध्यात्मिक ग्रंथ घर पर और यहाँ पर भी अध्ययन किया, उसमें ‘ऐश्वर्य’ शब्द है। और उस वक़्त आपने मुझे जीवन को संगीत में उतारने को भी कहा था, ‘संगीत जीवन में लाओ’, ऐसा आपने बोला था। आपने बताया था वीडियो में कि ऐश्वर्य शब्द ईश्वर से आया है, पर जब मैं ऐश्वर्य शब्द के बारे में सोचता हूँ तो वो संगीत के अलावा ज़्यादातर प्राकृतिक या भौतिक ही होता है। तो मैं यह जो ऐश्वर्य शब्द है, उसको पूरी तरह से समझ नहीं पा रहा हूँ।

आचार्य प्रशांत: ईश्वर से ही आया है ऐश्वर्य शब्द। सांसारिक तौर पर जिस तरह से इसका इस्तेमाल हो जाता है, अध्यात्म में वैसा नहीं है ऐश्वर्य। संसार में तो जब ऐश्वर्य कह देते हो तो वह सुनाई देता है करीब-करीब अय्याशी जैसा, मौज, मज़े, भोग। ऐश्वर्य से इन सब शब्दों का कुछ संबंध लगता है, है न? नहीं? अध्यात्म में जब ऐश्वर्य कहा जाता है तो उसका अर्थ होता है – ऊँचाई, विभुता। विभूति योग है न गीता में। ऊँचाई, विभुता—वही ऐश्वर्य है। जीवन में, चेतना में जो कुछ भी ऊँचे-से-ऊँचा हासिल हो सकता हो, उसको ऐश्वर्य कहते हैं।

तो श्रीकृष्ण कहते हैं कि "शस्त्रधारियों में मैं राम हूँ", तो राम होना शस्त्रधारियों का ऐश्वर्य हुआ। "पक्षियों में मैं गरुड़ हूँ", तो गरुड़ होना पक्षियों का ऐश्वर्य हुआ। वो उच्चतम है, जो उन्हें हासिल हो सकता है। यह इशारों में बात हो रही है, ऐसा नहीं है कि हम कह रहे हैं कि छोटी गौरैया को बड़ा बाज़ बन जाना चाहिए।

तुम्हारी चेतना की जो भी उच्चतम स्थिति तुम्हें संभव है, तुम उसे पाओ—यही जीवन का ऐश्वर्य है।

और उच्चतम स्थिति पर कोई विराम, कोई सीमा नहीं लगी होगी। उच्चतम असीम है, ऊँचा, ऊँचा और फिर और ऊँचा, यही ऐश्वर्य है। ऐश्वर्य का मतलब यह नहीं है कि बहुत सारा भोग लिया, ऐश्वर्य का मतलब है कि तुम्हारे हर अनुभव में गहराई होनी चाहिए। तुम जो कुछ भी कर रहे हो, उसमें तुम अपनी सीमाओं को और अपने बंधनों को चुनौती दो और आगे, और आगे बढ़ो। ऐश्वर्य फ़िर उत्कृष्टता का ही दूसरा नाम हुआ। किसका दूसरा नाम हुआ? उत्कृष्टता का, एक्सीलेंस का।

सुन रहे हो तो सुनने का ऐश्वर्य क्या है? समझना। एक श्रोता का ऐश्वर्य क्या हुआ? बोध, कि ऐसा सुना, ऐसा सुना कि समझ गए, यह ऐश्वर्य है। और ऐसा देखा, ऐसा देखा कि दर्शन हो गए, तो देखने का ऐश्वर्य क्या है? दर्शन। जीने का ऐश्वर्य क्या हुआ? मुक्ति। प्रेम का ऐश्वर्य क्या हुआ? योग। या कह लो कि प्रेम का ऐश्वर्य है ऊँचे-से-ऊँचा जो हो सकता है, उसको चाहना। प्रेम का ऐश्वर्य है कि जो उच्चतम संभव है, दिल तो हमारा उस पर आया है। किसी नीचे वाले से नैन नहीं लड़ा लेंगे, यह ऐश्वर्य है।

सैनिक का ऐश्वर्य क्या हुआ? जीत जाना, शहीद हो जाना? न विजय, न वीरगति, सैनिक का ऐश्वर्य है उच्चतम संग्राम में जूझ जाना। बात समझ में आ रही है? कि लड़ तो रहे ही हैं, सबसे ऊँची लड़ाई लड़ेंगे, यह ऐश्वर्य है।

दुकानदार का, विक्रेता का ऐश्वर्य क्या है? अरे! मुस्कुरा तो रहे ही हो, बताओ। (एक श्रोता की ओर इशारा करते हुए) बेच तो रहे ही हैं, सबसे ऊँची चीज़ बेचेंगे। बेच तो रहे ही हैं, सबसे ऊँची चीज़ बेचेंगे, यह ऐश्वर्य है। या फिर बेच तो रहे ही हैं, जो उच्चतम मुनाफ़ा कमा सकते हैं बेचकर, वह कमाएँगे, यह भी ऐश्वर्य है। या फिर बेच तो रहे ही हैं, क्यों न बेचते-बेचते ख़ुद भी बिक जाएँ, यह भी ऐश्वर्य है। लोग वो सब बेचते हैं जो उनके पास है, हमने कुछ ऐसा बेचा कि ख़ुद को ही बेच आए, यह ऐश्वर्य है।

कमाने का ऐश्वर्य क्या है? लोग कमाते हैं, सब ज़्यादा-ही-ज़्यादा कमाना चाहते हैं, "थोड़ा और मिल जाए, थोड़ा और मिल जाए!" हमने वह कमा लिया जो कमाकर और कमाने की चाहत ख़त्म हो जाती है, यह ऐश्वर्य है। बात आ रही है समझ में? रुकने का ऐश्वर्य क्या है? कि रुके हुए हैं पर जो दौड़ रहे हैं, उनसे आगे निकल गए। दौड़ने का ऐश्वर्य क्या है? ऐसा दौड़े, ऐसा दौड़े कि अब दौड़ने की ज़रूरत ही नहीं।

पाने का ऐश्वर्य क्या है? इतना पाया कि पाना छूट गया। छोड़ने का ऐश्वर्य क्या है? सब छोड़ दिया कि सब पा लिया। संबंधों का ऐश्वर्य क्या है? दूसरा इतना करीब आया, इतना करीब आया कि मिट ही गया; अब वह दूसरा है ही नहीं, संबंध ही नहीं बचा, योग हो गया। संबंध के लिए तो दो चाहिए न, अकेले हो गए, भाई। जहाँ दो हों, वहाँ पर ऐश्वर्य है दोनों का एक हो जाना या दोनों का अकेला हो जाना। समझ में आ रही है बात?

तो अध्यात्म कोई श्लोक रटने का काम नहीं है, ज़िंदगी की बात है। दुकान पर हो तो वहाँ भी ऐश्वर्य की संभावना है, घर में हो तो वहाँ भी ऐश्वर्य की संभावना है। चल रहे हो, खा रहे हो, जो कुछ भी कर रहे हो जीवित रहते हुए, हर जगह ऐश्वर्य की संभावना है और ऐश्वर्य के लिए ही आदमी जो कुछ भी करता है, वह करता है। देखा नहीं है कि हम संतुष्ट नहीं होते, हम संतुष्ट इसीलिए तो नहीं होते क्योंकि उच्चतम मिला नहीं। जिन्होंने खूब कमा लिया है, वह भी संतुष्ट हैं क्या? उच्चतम नहीं मिला न अभी। अब आया समझ में? यही ऐश्वर्य है।

समझ गए तो ऐश्वर्य है। पर यह ऐश्वर्य वैसा नहीं है कि हीरे-मोती मिल गए या चेक मिल गया या नोट मिल गए तो जेब में डाल लिया, यह ऐश्वर्य वह है जिसे बार-बार कमाना होता है। यही तो आनंद है इसका, तो समझ गए तो ठीक, बार-बार समझो न। लगातार समझो, समझते ही रहो, समझना जीवन बन जाए। यह एक पल की बात ना रहे फिर, वो तुम्हारी अचल स्थिति बन जाए, तब ऐश्वर्य है। ऐश्वर्य में निरंतरता है तो आनंद है और ऐश्वर्य अगर पल भर का है तो पीड़ा है। फिर तो यही कहोगे कि पल भर को भी क्यों मिला, और तड़पा गया।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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