हमारी तड़प ही बताती है कि कृष्ण साथ हैं || श्रीमद्भगवद्गीता पर (2020)

Acharya Prashant

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हमारी तड़प ही बताती है कि कृष्ण साथ हैं || श्रीमद्भगवद्गीता पर (2020)

क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत। क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम।।

हे अर्जुन! तू सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ भी मुझे ही जान और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ को जो तत्व से जानता है, वह ज्ञानी है—ऐसा मेरा मत है। —श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय १३, श्लोक ३

प्रश्नकर्ता: जिस ज्ञान की बात श्रीकृष्ण अर्जुन से कर रहे हैं, उसको हम अपने जीवन में कैसे लाएँ? श्रीकृष्ण की उपस्थिति को अपने जीवन में कैसे देखें?

आचार्य प्रशांत: देखिए, दो तरीके से कृष्ण, माने सत्य, जीवन में उपस्थित होता है और दिख सकता है। अगर आप पूर्ण हैं तो आपको कृष्ण दिखेंगे अपने आनंद में, और वे आपको दिखे हैं—ऐसा नहीं है कि आप उनसे सर्वथा अपरिचित हैं, पर बिलकुल ज़रा से दिखे हैं, बहुत दूर से दिखे हैं—हमारा आनंद भी पूरे तरीके से असली नहीं रहा है, क्षणिक रहा है, है न? कोई ऐसा तो हुआ नहीं हमारा कि आनंद आया है और फिर हम आनंदित ही रह गए। हमें आहट मिली है ज़रा-सी बहुत दूर से कि कुछ ऐसा होता होगा, शायद इससे मिलता-जुलता।

हल्के होने के, निर्दोष होने के, सच्चे और मासूम होने के पल सबके जीवन में कभी-कभार तो आते ही हैं न। कभी-कभार तो ऐसा होता ही है कि आप अपना सब स्वार्थ वग़ैरह त्याग करके किसी क्षण में बिलकुल निर्मल होते हैं, होता है न ऐसा? कभी-कभार बिना तैयारी के हो जाता है, अनायास।

वो कृष्णत्व का पल है। पूर्णता का आनंद कृष्ण की उपस्थिति का प्रमाण है। वह जो पूर्ण है, उसको कृष्ण मिलते हैं अपने जीवन में, अपने उल्लास में। और उल्लास वो हुड़दंग पार्टी वाला उल्लास नहीं, वह बहुत सूक्ष्म, आंतरिक उल्लास होता है, पूर्णता का उल्लास। लेकिन पूरे तो हम यदा-कदा ही होते हैं, भाई! तो कृष्ण हमें आनंद रूप में यदा-कदा ही मिलते हैं।

तो फिर बाकी समय कृष्ण हमें कैसे मिलते हैं? बाकी समय कृष्ण हमें मिलते हैं हमारे वियोग के कष्ट में। तो जब आप अधूरे हैं, तब भी कृष्ण आपके साथ हैं, तब वे किस रूप में आपके साथ हैं? तब वे कष्टरूप में आपके साथ हैं।

जब आप पूरे हैं, तब भी कृष्ण आपके साथ हैं, तब वे किस रूप में आपके साथ हैं? आनंदरूप में आपके साथ हैं। और जब आप अधूरे हैं, तो कृष्ण आपके साथ कष्ट के रूप में हैं। अधूरापन कष्ट देता है न? वह कष्ट है ही वियोग का कष्ट। "क्यों मैं वो बन गया जो मुझे नहीं बनना चाहिए था? क्यों मैं वैसा हूँ जैसा मुझे नहीं होना चाहिए?" यह कष्ट आपको हो ही ना अगर कृष्ण आपके जीवन में, मन में ना हों। इसीलिए सबसे ज़्यादा जो कष्ट होता है, वह संतों को होता है।

जो जितना ज़्यादा कृष्ण को साथ रखे है, उसे अपने अधूरेपन का कष्ट भी उतना ज़्यादा होगा, और फिर इसीलिए उसका अधूरापन बहुत चलेगा नहीं।

तो कभी भी यह मत समझिएगा कि आप कृष्ण से दूर हो गए। आप आनंदित हैं तो उस आनंद का नाम है कृष्ण, और अगर आप दुखी हैं तो उस दु:ख का भी क्या नाम है? कृष्ण। क्योंकि वह दु:ख आपको है ही क्यों, क्यों है? कृष्ण से दूरी के कारण ही तो है। और कृष्ण माने क्या? बाँसुरी वाले कृष्ण की बात नहीं कर रहा हूँ, वो जो एक परम सत्य है, उसकी बात कर रहा हूँ, जिसका नाम शांति कह लीजिए, मौन कह लीजिए। उसकी बात कर रहा हूँ। उसको आप आत्मा कहना चाहें, ब्रह्म कहना चाहें।

वह नहीं है जीवन में तभी तो दु:ख रहता है न; उसी के लिए तड़पता है आदमी। वो तड़प ही हमें बताती है कि कृष्ण साथ हैं। कृष्ण साथ हैं, हम कृष्ण के साथ नहीं हैं, इसलिए हम परेशान हैं। हमें हमारे किए की सज़ा मिल रही है। ठीक है?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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