योग बिना वियोग नहीं || आचार्य प्रशांत, संत धरनीदास पर (2014)
'धरनी' पलक परै नहीं, पिय की झलक सुहाय।
पुनि-पुनि पीवत परमरस, तबहूँ प्यास न जाय।।
~ संत धरनीदास
आचार्य प्रशांत: “पुनि-पुनि पीवत परमरस, तबहूँ प्यास न जाय” धरनीदास के वचन हैं, सवाल है कि 'प्यास बुझेगी क्यों नहीं, प्यास बुझती क्यों नहीं?' प्रेम अनंत है। अनंत का क्या अर्थ है?… read_more