दया और करुणा में क्या अंतर है? || आचार्य प्रशांत, केदारनाथ यात्रा पर (2019)

Acharya Prashant

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दया और करुणा में क्या अंतर है? || आचार्य प्रशांत, केदारनाथ यात्रा पर (2019)

प्रश्नकर्ता : मैं करुणा के बारे में पूछना चाहता था कि करुणा का रिलेशन (सम्बन्ध) दया के साथ कैसे है। मतलब मुझे कई बार लगता है, करुणा नाम की मेरे अन्दर कोई चीज़ है ही नहीं। और दया कई बार मुझे बड़ी आ जाती है, मुझे समझ में नहीं आता, भई ये कहाँ से होता है, क्या होता है।

आचार्य प्रशांत : दो बातें हैं, जो करुणा और दया में भेद करती हैं। पहली तो ये कि दया में दूसरे के दुख को तुम वास्तविक समझते हो। उसके दुख को तुम वास्तविक समझते हो क्योंकि तुम अपने दुख को वास्तविक समझते हो। तो इसलिए तुम्हें दूसरे के साथ सह अनुभूति होती है, सहानुभूति।जो ख़ुद सुख-दुख का झूला झूल रहा है, जो अपने ही दुख-सुख को बड़ी क़ीमत देता है, बहुत असली समझता है, वही दूसरे के दुख को देखकर बड़ा द्रवित हो जाता है, कहता है, ‘अरे! अरे! बेचारा!’ । और दया में ये भी कहते हो कि दुख उसको मिला हुआ है, कम-से-कम अभी मैं दुख से दूर हूँ। दूसरा बेचारा है, मैं नहीं हूँ। दूसरा तो मेरी मदद का पात्र है क्योंकि मेरी स्थिति उससे बेहतर है तो मैं उस पर दया कर रहा हूँ। तो दया में एक श्रेष्ठता का भाव भी होता है।

करुणा नहीं कहती कि दुख वास्तविक है। करुणा कहती है, ‘अच्छे से पता है कि दुख झूठा है, आँसू झूठे हैं। ये जितने सन्ताप का तुम अनुभव कर रहे हो, ये यूँही हैं, आधारहीन। जैसे कोई सपने में डर गया हो ऐसी तुम्हारी हालत है कि डर का अनुभव तो हो रहा है पर डर का आधार कुछ नहीं है, सपना मात्र।‘ और दूसरी बात, करुणा श्रेष्ठता का दम्भ नहीं रखती। करुण व्यक्ति कहता है कि भले ही आँसू झूठे हों तुम्हारे, मैं फिर भी पोछूँगा क्योंकि इस दशा से मैं भी गुज़र चुका हूँ। और मुझे मालूम है कि तुम्हारी ये दशा झूठी है इसीलिए इस दशा के आगे भी बहुत कुछ है। तुममें अपार सम्भावना है। सपने में रो रहे हो तुम। सपने से उठ गये तो तुम भी करुण बुद्ध जैसे ही हो। इसलिए किसी बुद्ध की करुणा होती है।

करुणा दोनों बातें एक साथ कहती है। पहली बात, आँसू झूठे हैं। दूसरी बात, झूठे तो हैं, मैं फिर भी पोछूँगा। बीमारी नकली है, नकली तो है, मैं फिर भी इलाज करूँगा।करुणा है बीमारी का यथार्थ जानना। इसीलिए करुणा इलाज भी कर पाती है। दया और सहानुभूति में तो बीमारी को ही नहीं समझा गया तो इलाज क्या होगा। दुख यदि बीमारी है तो दया उस बीमारी को समझती ही नहीं। इसीलिए दया से दुख का इलाज नहीं होता, दया से दुख बढ़ और सकता है। करुणा से दुख का इलाज होता है क्योंकि करुणा दुख को समझती है।

करुणा में बोध निहित है। दुख में कोई बोध नहीं, दया में कोई बोध नहीं। बोध के साथ-साथ बढ़ती है करुणा तो अगर कह रहे हो कि करुणा नहीं है तुम्हारे भीतर तो बोध नहीं है। बोध बढ़ेगा, करुणा अपनेआप आएगी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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