जन्मदिवस पर, जन्मदाता को

Acharya Prashant

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जन्मदिवस पर, जन्मदाता को

अपने पर्व पर मुझे जन्म दिया लगा मुझे मैं कृतकृत्य हुआ

पर जैसे-जैसे समझ बढ़ी वैसे-वैसे प्रश्न उठा जो जगत तुमसे ही छल करता उसमें मुझे भेजा क्यों भला

जिस संसार में दुर्पयुक्त होता तुम्हारा ही निशान है उस संसार में बोलो फिर मेरा क्या स्थान है?

हे अचिन्त्य!

देखो तुम्हारे बारे में सौ किस्से वो गढ़ रहे

हे अभीरु!

देखो तुम्हारे नाम पर भय का व्यापार कर रहे

हे पशुपति!

तुम्हारा ही नाम लेकर वो पशुओं का पीड़न कर रहे

हे बोधमूर्ति!

देखो तुम्हारे नाम पर अंधविश्वास प्रचारित हो रहे

हे शेखर!

ये स्वार्थवश तुम्हें शिखर से नीचे खींच रहे

हे आशुतोष!

पूरी दुनिया खाकर भी संतोष ये ज़रा न कर रहे

इस संसार में मुझे यदि भेजा तो भेजना था श्रद्धाहीन बुद्धिहीन सर उठा न सकूँ ऐसा पौरुषहीन पर जैसा मुझे भेजा है मुझमें विद्रोह है ललकार है आह है तुम्हारे लिए सब लीला है मेरे लिए ज्वाला है अंतर्दाह है

मुझे किस असंभव युद्ध में डाल दिया? तुम्हारी माया के पास तुम्हारा ही नाम है और मेरे पास तुम्हारा दिया काम है वो हार सकती नहीं मैं हार मानूँगा नहीं अपनी सीमाओं के बीच संघर्ष करता मैं एक साधारण इंसान हूँ न हार सकता न जीत सकता मैं सर से पाँव तक लहूलुहान हूँ

हे नटराज!

अब मुक्ति दो संताप से व्याधि से उठो आज समाधि से अपने नाम पर चल रहे पाखंड का अंत करो करो आज तांडव और पाप को प्रलय दो

मिटे पाप मिटे अनाचार मिटे क्रूरता मिटे व्याभिचार करोड़ों नन्हें जीव जो रोज़ मारे क्यों मिट न जाए ऐसा संसार? मिटूँ मैं मिटे सब पीड़ा मिटे अधर्म का पूरा विस्तार मिटे पृथ्वी मिटे मर्मभेदी हाहाकार

यदि मेरे अंतस में तुम रहे हो हे अघोर!

तो आज तुम्हारे पर्व पर वरदान माँगता हूँ नाश हो! नाश हो!

अनंत प्रेमगीत नहीं अंतिम विध्वंसगान माँगता हूँ

~ प्रशांत

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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