योग बिना वियोग नहीं || आचार्य प्रशांत, संत धरनीदास पर (2014)

Acharya Prashant

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दोहा:

धरनी पलक परै नहीं, पिय की झलक सुहाय। पुनि - पुनि पीवत परमरस, तबहूँ प्यास न जाय॥ ~ संत धरनीदास

प्रसंग:

  • योग का असली अर्थ क्या है?
  • क्या योग मात्र शारीरिक विकास के लिए होता है?
  • योग से वियोग की यात्रा कैसे करूं?
This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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