
प्रश्नकर्ता: रीवा से हैं, अमन चतुर्वेदी। डर का सामना कैसे करें? ये लगातार दिमाग में बना रहता है। भले ही मैं जाकर अपने डर का सामना करूँ, जैसा कि आपके वीडियो में बताया गया है, फिर भी हर बार अपने आप को असंतुलित पाता हूँ। मुझे हर बार किसी भयावह स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ता है। मैं एक वर्ष से सोशल एंग्ज़ायटी में जी रहा हूँ। जीवन स्वस्थ है पर ये मानसिक असंतुलन दूर नहीं होता। ये कठिन है पर आदत बन चुकी है। मैं इससे बाहर निकलना चाहता हूँ।
आचार्य प्रशांत: इसमें जो ख़ास बात है, वो ये है कि डर बहुत रहता है। सोशल एंग्ज़ायटी रहती है और फ़ियर बहुत ज़्यादा है। बार-बार फ़ियर का ही अनुभव होता है। ख़ास बात ये है कि अठारह साल के हैं और अठारह साल में अमन ने ये महसूस किया है।
अमन, तुम भी वास्तव में पूछो तो दूसरों की करनी का फल भुगत रहे हो। तुम्हारी ये जो पूरी पीढ़ी है न, अठारह हो, टीनएजर हो, हम तो जब थे तब जेन एक्स ही बोल देते थे, अब तो जेन एक्स, जेन वाई, जेन ज़ेड ये सब पीछे छूट गया, ये तो मिलेनियल्स हो गए न ये लोग? खैर जो भी हो तुम, तुम्हें वास्तव में वो चीज़ दी ही नहीं गई है जो ज़िंदगी में पाने लायक है।
जो पाने लायक होता है न, वो जब तुम्हारे पास आता है तो तुम्हें डराता नहीं है। वो तुम्हें एक ग़ज़ब विश्वास से भर देता है। और जब तुम्हारी पूरी पीढ़ी को ही ऐसी चीज़ें दे दी गई हैं जो ज़िंदगी में होनी ही नहीं चाहिए, तो ज़िंदगी ऐसी चीज़ों से भर जाती है जो तुम्हें बिल्कुल डरा कर, दबा कर रखती हैं।
सोशल एंग्ज़ायटी कह रहे हो। सोशल एंग्ज़ायटी बेटा इसलिए है क्योंकि तुम्हारे पास जो है, वो बस सोशल ही सोशल है — सोशल मीडिया है, सोशल इन्फ़्लुएंसर्स हैं, सोशल लाइफ़ है। और ये जितने लोग तुम्हारी सोसाइटी में हैं जो तुम्हारे इन्फ्लुएंसर्स बने हैं, जो तुम्हारे रोल मॉडल बने हैं, ये सब तुम्हें गलत सोच से, जीने के गलत तरीकों से लगातार भरे हुए हैं। उन्हीं गलत विचारों और गलत तरीकों का अंजाम है डर।
इन्होंने तुम्हें बता दिया है कि ज़िंदगी में सबसे कीमती वो चीज़ें हैं जो तुम्हें दूसरों ने दी हैं। माने कि अब इस उम्र में अठारह, तुम जा रहे हो और तुमको ग्रुप एक्सेप्टेंस अगर मिल रही है तो तुमको लगता है कि मैं तो एकदम सुपरस्टार हो गया। और वही जब नहीं मिलती तो तुम्हें तमाम तरीके के तनाव हो जाते हैं। एंग्ज़ायटी, डिप्रेशन भी हो जाता है।
तुम्हारे आदर्श ऐसे होने चाहिए थे जो तुम्हें बताते कि तुम्हारे पास सच का एक अंदरूनी केंद्र होना चाहिए।
लेकिन वैसे आदर्शों से तुम्हारा किसी ने कोई परिचय ही नहीं कराया।
मैं आज तुमसे पूछ दूँ कि आर्यभट्ट के बारे में कुछ बताना। मैं तुमसे लियोनार्डो दा विंची के बारे में ही कुछ पूछ दूँ। मैं तुमसे पिकासो के बारे में कुछ पूछ दूँ। वापस भारत पर आकर तुमसे सुश्रुत के बारे में कुछ पूछ दूँ। नहीं पता। हाँ, एक से एक फूहड़ और गलीच इधर-उधर के दो कौड़ी के घूम रहे होंगे, उनका तुम्हें खूब पता होगा। तुम इसीलिए डरे हुए हो क्योंकि तुम्हें गलत लोगों के बारे में बहुत कुछ पता है और जिनके बारे में पता होना चाहिए उनका तुम्हें कुछ पता नहीं है।
एक अभी मिला, वो ऐसे ही बिल्कुल एकदम लुज़ुर–पुज़ुर हालत में लगा, गिर पड़ेगा तो बात हो रही। मैं उससे पूछ रहा था, साल–डेढ़ साल पहले की बात है। मैंने कहा, तुम्हारे आदर्श कौन हैं? बोला, व्हाट इज़ आदर्श? मैंने कहा, रोल मॉडल। तो बोलता, एमसी रॉन। मैंने कहा, गाली क्यों दे रहा है? मैं कहा, कौन? बोला, एमसी रॉन। मैंने कहा—भाई तू रॉन बोल ले, तू बार–बार एमसी–एमसी क्यों? बोल रहा, 'नहीं, एमसी रॉन।' मेरे को समय लगा समझने में कि ये जो भी ये एमसी वाले लोग होते हैं, यही अब रोल मॉडल हैं। तुम रोल मॉडल हो ही नहीं सकते अगर तुम एमसी नहीं हो।
मैंने ये नई पीढ़ी की बात कर रहा हूँ। बात समझ आ रही है? करता क्या है? बोलता है, रेपिंग। मैंने कहा, तेरी उम्र बहुत छोटी है, नहीं तो मेरा हाथ अभी बहुत बड़ा हो जाता, पटाक से पड़ता। फिर उसने मुझे सुनाया, कि देखो ये करता है। और वो जो रैप संगीत था, वो म्यूज़िक भर नहीं था, वो अपने आप में पूरी फ़िलॉसफ़ी थी ज़िंदगी की। “ज़िंदगी जुआ है, खेल जाने दे। ज़िंदगी दारू है, पी जाने दे।" ये पता नहीं ये क्या है (हाथ को हिलाते हुए)। जुए का इससे क्या संबंध है और दारू का क्या संबंध है इससे। सहलाने से दारू में फ़रमेंटेशन ज़्यादा होगा या जुआ जीत जाओगे? कुछ होगा एमसी वाला काम, मैं नहीं जानता। इन खुराकों पर तुम्हारी हस्ती बड़ी और खड़ी हुई है।
इस तरह की चीज़ें मानसिक रूप से सोख के, खा के, पी के तुम सोलह साल के, अठारह साल के, बीस के, शायद और पच्चीस-तीस के भी हो रहे हो। अब तुम्हारी ज़िंदगी लड़खड़ाती हुई सी नहीं रहेगी तो कैसी रहेगी, मुझे बताओ। मैंने पूछा, लाल बाल पाल कौन थे, बताना? और मैंने कोई बहुत ख़ुफ़िया बात नहीं पूछ दी है और ये ऐसा भी नहीं कि तुम यूपीएससी की तैयारी करोगे तो ही पता रहेगा। ये साधारण किसी भी बोर्ड की इतिहास की किताब में आठवीं, नौवीं, दसवीं में रहता है।
“व्हाट ए नाइस मैन लाल बाल पाल।”
मैं तो नहीं कह रहा अमन कि तुम ऐसे हो, पर थोड़ी देर पहले कहा था न, गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है। जब एक पूरी की पूरी पीढ़ी ही बर्बाद हो गई हो तो उसमें कितना बचे रहोगे, और उसमें तुम्हारा दोष नहीं।
मैं तो पूछता हूँ पचास, सत्तर और नब्बे के दशक वाली पीढ़ियों से कि तुमने क्या विरासत सौंपी है आज के इन बच्चों को। क्योंकि ये तो बेचारे नन्हे से ही पैदा हुए थे, इनको जो खिलाया–पिलाया तुमने पिलाया। इनको जो सिखाया–पढ़ाया, तुमने पढ़ाया। ये क्या पढ़ाया है इनको कि ये नस्ल ऐसी निकल गई।
अच्छे लोगों के संपर्क में आना होगा तुम्हें। और अच्छे लोग अमन, तुम जैसे हो गए हो, अच्छे लोग तुम्हें अच्छे नहीं लगेंगे। वो तुमको थोड़े बोरिंग से लगेंगे। वो तुमको थोड़े अजीब से लगेंगे, पर और कोई तरीका नहीं है। तुम्हें अच्छे लोगों के संपर्क में आना होगा — भले ही वो तुम्हें कितने भी “ओ माय गॉड, सो ऑड” लगें। “हॉट” से “ऑड” की तरफ़ बढ़ो। जो तुम्हें हॉट लगते हैं, वही तुम्हारी ज़िंदगी का बोझ हैं। ऑड लोगों की ओर बढ़ो, जो तुम्हें अजीब लगते हों।
किताबें तुम पढ़ते नहीं, तुम तो सात-आठ मिनट के यू–ट्यूब वीडियो देखते हो। तुम्हें किताबों की ओर आना पड़ेगा। ज़्यादातर काम जो तुम्हारी पीढ़ी करती है, उससे तुम्हें हटना पड़ेगा। अगर तुम डर को हटाना चाहते हो तो।
दो दिशाओं में आगे बढ़ो। पहली बात, जो तुम्हारा सामान्य ज्ञान है, उसको गहरा करो। हम कौन हैं? हम कहाँ से आए हैं? इसकी जानकारी इकट्ठा करो।
दूसरी बात, तुम्हारी उम्र अब इतनी है कि तुम “विज़डम लिटरेचर” की ओर बढ़ सको। तुम्हें बढ़ना होगा। शुरुआत करो साधारण आध्यात्मिक कहानियों से। और वो कौन सी किताबें हैं, ये जानना हो तो संस्था से संपर्क करो, नंबर सार्वजनिक है, फोन करो, तुम्हें बता दिया जाएगा।
शुरुआत करो साधारण आध्यात्मिक कहानियों से और उसके बाद धीरे–धीरे हम तुम्हें उपनिषदों तक लेकर जाएँगे। वो डर का आख़िरी इलाज है।
ख़ुद कहते हैं कि हम लिखे ही इसीलिए गए हैं ताकि तुम्हारे तापों का नाश कर सकें। ताप माने हर वो चीज़ जो तुम्हें फीवरिश कर देती है, डरा देती है, तुम्हारा पारा बढ़ा देती है। ताप को गर्मी भी बोल सकते हो और ताप को पीड़ा, माने संताप, ऐसे भी बोल सकते हो। ताप–त्रय का नाश हो सके, उपनिषद् कहते हैं हम लिखे ही इसीलिए गए हैं।
तो डर अंततः तभी हटेगा जब उपनिषदों के पास आओगे। लेकिन उपनिषदों तक आने के लिए तुम्हें थोड़ी सी यात्रा करनी पड़ेगी।
पहला कदम है, जिन लोगों से, जिन विचारधाराओं से, जिस तरह के आदर्शों से जुड़े हुए हो, उनको बर्ख़ास्त करो।
बर्ख़ास्त माने डिसमिस।
दूसरा, कुछ सामान्य ज्ञान अर्जित करो कि ये दुनिया क्या चीज़ है, राजनीति क्या चीज़ है, अर्थव्यवस्था क्या चीज़ है, इतिहास क्या चीज़ है। तीसरा, अध्यात्म की जो साधारण किताबें हैं, प्रवेशिकाएँ हैं, एंट्री–लेवल किताबें हैं, उनसे शुरू करो। और चौथा, अंततः आओ और साथ बैठकर उपनिषद् पढ़ो। अगर वाक़ई तुम गंभीर हो, जो मैं समझता हूँ तुम्हें होना चाहिए, तुम्हें बहुत लंबी ज़िंदगी जीनी है। अभी मात्र अठारह के हो। वाक़ई गंभीर हो तुम, एक अभीत, निर्भय ज़िंदगी जीने के लिए तो।