प्रश्न: मानसिक स्पेस कहीं है कि नहीं, खालीपन का?
वक्ता: जब आप शून्यता को प्राप्त हुए हैं, तो किस चीज़ से खाली हुए हैं?
श्रोता: अपने मन से।
वक्ता: और स्पेस कहाँ है? जब मन ही नहीं है, तो स्पेस कहाँ बचा?
श्रोता: मतलब स्पेसलेसनेस ?
वक्ता: नहीं, स्पेसलेसनेस भी नहीं क्यूँकी जहाँ स्पेसलेसनेस है, वहाँ स्पेस तो रहेगा।
शून्यता का मतलब है: शून्यता के बारे में इतनी गहरी विचारणा से मुक्ति।
शून्यता का मतलब है इस गम्भीता से मुक्त हो जाना। जितनी गंभीरता से आप शून्यता के बारे में जानना चाह रहे हो न, तो आप खालीपन को प्राप्त होने की जगह बहुत भर गए हो। किस चीज़ से भर गए हो? खालीपन से। ‘’मैं खालीपन के बारे में विचारों से भर चूका हूँ,’’ यह सही नहीं है!
खाली होने की जगह आप भर गए, खालीपन के विचार से; अब गड़बड़ हो गई। गड़बड़ नहीं हुई? आप फिर गंभीर हैं कि, ‘’ये खालीपन आखिर है क्या? पकड़ लूँ कहीं से।’’
श्रोता: तो क्या मौन भी स्पेस नहीं है?
श्रोता१: मुझे लगता है कि ये हमारे सोचने के तरीके की वजह से है।
वक्ता: ये विचार करने के तरीके की नहीं, विचार का ही चरित्र है; इसे समस्या मत बोलिए। विचार जहाँ भी आएगा, वहाँ स्पेस, टाइम आएँगे ही आएँगे। और आप कोशिश ये कर रहे हैं कि उसके आगे जो है, उसके बारे में विचार कर लें। आप सोचते हो जब भी, तो वस्तुओं के बारे में ही तो सोचते हो? चलो, पूरी जान लगा लो, और कुछ ऐसा सोच के दिखा दो जो स्पेस-टाइम में न हो। चुनौती दे रहा हूँ, कुछ ऐसा सोचो जो स्पेस-टाइम से बाहर का हो, सोचो!
कहा ये जा रहा है कि विचार हमेशा समय और स्थान में ही होता है। विचार और समय, स्थान एक ही हैं। तो जब भी ‘उसकी’ बात हो रही हो, तो उसके बारे में न विचार करना चाहिए, न सवाल करना चाहिए, बस शांत हो जाना चाहिए। देखिये, अहंकार का जो साधन होता है न, वो होता है विचार। आप जितना विचार करते हो, अहंकार उतनी ही तेज़ी से भागता है तो इसीलिए जब भी ये बात आती है कि विचार के परे कुछ है, तो अहंकार को बहुत बुरा लगता है। अहंकार विचार के माध्यम से सत्य को पकड़ना चाहता है। तो कहता है कि, ‘’नहीं, कुछ बता दो इस तरह से कि मैं पकड़ लूँ कि मौन क्या है? ज़रा प्रेम की परिभाषा देना। ज़रा आनंद के गुण बताना। ज़रा निर्गुण के चित्र बनाना।’’ तो ये सब कोशिशें क्यूँ कर रहे हो आप, ज़रा इस पर विचार करो न!
ये सब कोशिशें हम सिर्फ़ इसीलिए कर रहे हैं क्यूँकी अहंकार का दिल दुखता है, जब उसे पता चलता है कि वास्तव में उसके आगे कुछ है।
श्रोता: तो ऐसा क्यूँ है वो?
वक्ता: वो ऐसा है ही। आप उसे जितना रोकोगे, वो उतना भागेगा, वो ऐसा है ही।
शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।