फ़िक्र छोड़ो, बिंदास जियो || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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फ़िक्र छोड़ो, बिंदास जियो || नीम लड्डू

१० साल पीछे जाना और देखना है कि उस समय मन पर कौन से मुद्दे हावी थे, याद करो! कहाँ गए वह मुद्दे? और पीछे जाओ, अब तुम १५ साल के हो, याद करो मन पर कौन से मुद्दे हावी थे, कहाँ गए मुद्दे?

कितने लोगों को दसवीं के बोर्ड के नंबर अभी तक याद हैं? जो जवान हैं, जिन्होंने ५-१० साल पहले ही दिया है, उनको शायद थोड़ा हो, जो ४० पार के हैं, उनको तक़लीफ़ आएगी याद करने में। और वही जब दसवीं का, बारहवीं का परीक्षाफल घोषित होता है तो कितने लोग आत्महत्या कर लेते हैं। और १० साल बाद तुम्हें याद भी नहीं रह जाता कि नंबर कितने आए थे। और, और पीछे चले जाओ, तुम गुड्डे-गुड़िया पर रोये हो, टॉफी-चॉकलेट पर रोये हो। तब वही जीवन-मरण का प्रश्न था न? और तब की बात आज अगर हास्यास्पद लग रही है तो आज की बात भी कल कैसी लगेगी?

तुम आज की बात पर कल हँसने वाले हो; आज ही क्यों नहीं हँस लेते? आज भी जो मुद्दे तुमको बहुत बड़े लगते हैं, वह कल समझ में आएगा कि ओछे थे। बस उन मुद्दों में उलझ कर तुमने समय ख़राब कर दिया। बेख़ौफ़, बिंदास जियो न! क्या मुँह लटकाए इधर-उधर घूमते हो; डरे, डरे सकुचाए, सकुचाए।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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