अगर दिमाग कुछ नया पाने के लिए बेचैन हो || आचार्य प्रशांत (2020)

Acharya Prashant

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अगर दिमाग कुछ नया पाने के लिए बेचैन हो || आचार्य प्रशांत (2020)

प्रश्नकर्ता: अगर दिमाग हर समय कुछ नया जानने के पीछे दौड़ता रहे और कुछ नया ज्ञान न मिलने तक बेचैन रहे तो इस स्थिति में हमें क्या करना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: इस स्थिति में हमें वो पाना चाहिए जो हम वास्तव में पाना चाहते हैं। आपने लिखा है, ‘दिमाग कुछ नया जानने के पीछे दौड़ता रहे।' फिर आगे लिखा है, 'कुछ नया ज्ञान न मिलने तक बेचैन रहे।‘ नहीं! दिमाग कुछ भी नहीं जानना या पाना चाहता। जब आप कहते हैं, ‘कुछ नया’ तो ऐसा लगता है जैसे कि यूँही कुछ इधर का कुछ उधर का ऐसा है जो मन को आकर्षित कर रहा है। नहीं, नहीं, मन को कुछ भी नहीं चाहिए। मन को यूँही नहीं बेचैन रहना है, एक ख़ास चीज़ है जिसकी मन को आवश्यकता है। एक ख़ास बात है जो मन को जाननी है।

कुछ भी साधारण, सामान्य नहीं चलेगा। हाँ! जब वो विशिष्ट चीज़ आप मन को नहीं देते हैं जिसकी मन को आवश्यकता है तब मन हज़ारों छोटी-मोटी व्यर्थ की चीज़ों के पीछे दौड़ने लग जाता है और फिर आपको लगता है कि मुझे ये एक चीज़ चाहिए, ये दूसरी चीज़ चाहिए, तीसरी चीज़ चाहिए। फिर हमको ये लगता है कि अरे! मन तो चंचल है, मन हज़ारों चीज़ों के पीछे भागता है। नहीं, मन हज़ारों चीज़ों के पीछे भागना नहीं चाहता, मन को मजबूर होकर के हज़ार चीज़ों के पीछे जाना पड़ता है क्योंकि वो एक चीज़ जो मन को चाहिए वो हम मन को उपलब्ध करा नहीं पाते। ठीक है?

उस एक चीज़ को समझिए जो मन को चाहिए। कैसे समझते हैं उस एक चीज़ को? शुरुआत करी जाती है ये देखकर के कि क्या है जो मन को तृप्त और सन्तुष्ट नहीं कर पाएगा। सबसे पहले तो उन चीज़ों के पीछे जो हमारी व्यर्थ दौड़ है उसको रोका जाता है। देखा जाता है कि कौन-कौनसे रास्ते हैं जिनको हम पहले ही आज़मा चुके हैं। देखा जाता है कि कितने प्रयोग हैं जो हम पहले ही कर चुके हैं और आसपास के दूसरे लोग भी करके देख रहे हैं। कौन-कौनसे रास्ते हैं जो प्रचलित हैं, समाज स्वीकृत हैं, जिनपर पूरी दुनिया ही चल रही है और चल इसी उम्मीद पर रही है कि उस रास्ते से मंज़िल मिल जाएगी, सन्तुष्टि मिल जाएगी, चैन मिल जाएगा। मिलता नहीं है, न दूसरों को मिलता है, न आपको मिला है। तो सबसे पहले ऐसे रास्तों को बिलकुल बन्द कर देना चाहिए। जो रास्ता आज़माया हुआ है, जिस रास्ते का पता है कि ये कहीं को लेकर के नहीं जाता या जहाँ को लेकर के जाता है, वहाँ मेरे लिए कुछ रखा नहीं है। उस रास्ते से बार-बार उम्मीद बनाए रखना कोई बुद्धिमानी का काम नहीं है। तो शुरुआत नकार के तरीक़े से करनी होगी, बहुत सारी चीज़ों को बिलकुल निषिद्ध कर देना होगा।

ये करने के बाद आप पाएँगे कि आप एक ऐसी जगह पर खड़े हो गये हैं जहाँ आपको सही रास्ता या सही काम या सही ज्ञान मिला नहीं है और जो पुराने आपके सांत्वनाप्रद रास्ते थे, उन रास्तों को आपने बन्द कर दिया है, ये और कठिन स्थिति होती है। क्योंकि इसमें आपको लगता है कि न घर के रहे न घाट के। लेकिन इस स्थिति में कुछ दिन तक रहिए। कोई-न-कोई रास्ता फिर अपनेआप खुलता है और वो ग़लत रास्ता नहीं हो सकता क्योंकि ग़लत रास्तों को आप बन्द कर चुके हैं और ग़लत रास्तों को बन्द करने की अब आप हिम्मत भी अपने भीतर पैदा कर चुके हैं। तो कोई ग़लत रास्ता अब आपके सामने खुलता भी है तो आप उसकी ओर आकर्षित नहीं होते, हिम्मत करके उसको मना कर देते हैं। है न?

इस प्रक्रिया में जो एक चीज़ आपका साथ दे सकती है क्योंकि आपने नया ज्ञान पाने की बात करी है, वो है ‘वेदान्त’। इधर-उधर का बहुत सारा खिचड़ी ज्ञान इकट्ठा करने से कहीं बेहतर है कि आप वेदान्त का ज्ञान थोड़ा पढ़ें। वेदान्त का ज्ञान आपके मन पर और बोझ बनकर नहीं बैठ जाएगा। थोड़ी देर पहले मैंने एक शब्द का प्रयोग किया था ‘नकार’। वेदान्त का काम है, आपके मन में जो पूर्व स्थापित ज्ञान है उसको नकारना, उसकी सीमाएँ दिखाना, उसकी शक्तिहीनता प्रदर्शित कर देना और आपको ज्ञान के नीचे जो ज्ञाता बैठा है, उस तक लेकर जाना, क्योंकि समस्या ज्ञान की बाद में है समस्या तो ज्ञाता के साथ है न। ज्ञान को थोड़े ही बेचैनी या तकलीफ़ होती है, परेशान तो ज्ञाता है न। वेदान्त का काम है आपको ज्ञाता तक लेकर जाना। उस इकाई तक लेकर जाना जो कष्ट का अनुभव करती है। जब आप उस तक पहुँच जाएँगे तो आप पाएँगे कि उस कष्ट की भी असलियत क्या है ये आपने जान लिया।

कष्ट की असलियत को जानना ही कष्ट से मुक्ति बन जाता है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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