छोटे आदमी की सज़ा ये कि उसकी ज़िंदगी में सब छोटे-छोटे मुद्दे होंगे। यही मुद्दा होगा कि इतने से इतने बजे तक पानी आता है, पोछा लगाया कि नहीं लगाया, भैंस का दूध लेना है कि गाय का दूध लेना है, नौकरी में फलाने को नीचा कैसे दिखाना है, ऊपर वाले तल पर जो वो बिट्टी रहती है वो कल बाहर किस लड़के के साथ घूम रही थी, सब्जी में कौन-सा ऐसा नया मसाला डाल दें कि लज़्ज़त थोड़ा और आया करे, पैंट ख़रीदनी है फ़लानी जगह पर १५% की सेल है २०% की सेल कहाँ लगी हुई है, और ये मुद्दा उसके दिमाग में चल रहा है। हफ़्तों चल रहा है, महीनों चल रहा है। “तीन महीने बाद साली की शादी है और साली की शादी में मुझे तो सबको चकाचौंध कर देना है कपड़े कहाँ से सिलवाऊँ?” इधर-उधर से जानकारी इकट्ठा की जा रही है ख़ुफ़िया।
ये हास्य कथा मात्र नहीं है, ये अधिकांश लोगों की ज़िंदगी है। रूह काँप जाए ऐसी ज़िंदगी को जी कर!
पूछो अपने-आपसे – सुबह से शाम जो कुछ कर रहे हो, वो कर क्यों रहे हो?
और तुम्हें जवाब ये मिलता है कि सुबह से शाम तुम बस रोटी कमा रहे हो, आमदनी कमा रहे हो, तो ऐसी ज़िन्दगी तुम जी क्यों रहे हो?