Yog Vashisth

ज़िन्दगी की किताब कैसे पढ़ें?
ज़िन्दगी की किताब कैसे पढ़ें?
15 min
जो सीखने को तैयार है, उसके लिए तो समूचा अस्तित्व ही गुरू है। पर तुममें पहले सीखने की वो महत् आकांक्षा तो उठे। पहले तुम ये मानो तो, कि जीवन बड़ा सूना है, बड़ा व्यर्थ जा रहा है, तुम्हारे भीतर एक छटपटाहट तो उठे। तुम तो झूठे संतोष में जी रहे हो, तुम तो माने बैठे हो कि ये तो ठीक है, मुझे पता ही है। हाँ! हाँ! ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए, सब ठीक है। मस्त रहो! बस ऐसा है, सन्तुष्ट रहो, “संतोषं परमं धनम्।” जिसमें तड़प नहीं है, उसके लिए तो अध्यात्म की शुरुआत ही नहीं हो सकती।
Bondage, freedom and fear of death || Acharya Prashant, on Yogavasishtha (2016)
Bondage, freedom and fear of death || Acharya Prashant, on Yogavasishtha (2016)
15 min

आज्ञाभयसंशयात्मगुणसङ्कल्पो बन्धः ।

ājñābhayasaṁśayātmaguṇasaṅkalpō bandhaḥ

Bondage is to imagine that Ātman has qualities like doubts, fear, etc.

~ Niralamba Upanishad, Verse 25

✥ ✥ ✥

Acharya Prashant (AP): “Bondage is to imagine that Ātman has qualities like doubts or fear etc. Bondage is to imagine that Ātman has doubt or

The timeless Truth is in all time—past, present and future || NIT Jamshedpur (2020)
The timeless Truth is in all time—past, present and future || NIT Jamshedpur (2020)
4 min

Questioner: You have said that the future is not controlled by God; in reality, various forces are acting simultaneously creating unpredictable future events. When I read Yoga Vasistha , I have found that there are chapters where Guru Vasistha talks about the conversation between Krishna and Arjuna to Rama. How

Does Spirituality advice men to renounce women? || Acharya Prashant, on Yoga Vasishta Sara (2016)
Does Spirituality advice men to renounce women? || Acharya Prashant, on Yoga Vasishta Sara (2016)
25 min

Listener (L):

Yog Vasistha Sara, Chapter 3, Verse 18:

“He who does not, like one blind, recognise(lit. leaves far behind) his relatives, who dreads attachment as he would a serpent, who looks upon sense-enjoyments and disease alike, who disregards the company of women as he would a blade of grass

How to test whether your wisdom is growing? || Acharya Prashant, on Yoga Vasishta (2017)
How to test whether your wisdom is growing? || Acharya Prashant, on Yoga Vasishta (2017)
5 min

All the arts acquired by men are lost by lack of practice, but this art of wisdom grows steadily once it rises.

~ Yoga Vasishth Sara, Chapter 1, Verse 13

Questioner: Acharya Ji, what is the litmus test to determine whether one’s wisdom is rising, or is it new clothes

Can the Truth ever be experienced?
Can the Truth ever be experienced?
20 min

यत: सर्वाणि भूतानि प्रतिभान्ति स्थितानि च| यत्रैवोपशमं यान्ति तस्मै सत्यात्मने नम:|| ~ योगवाशिष्ठ: (वैराग्यप्रकरण श्लोक 1)

Translation: Salutations to that calm effulgence which is endless and unlimited by space, time, etc., the pure consciousness which can be known by experience only. ~ Yogvashishtha Vairagya Prakaran Verse 1

Acharya Prashant: The

ब्रह्मलीन होने का अर्थ क्या है? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
ब्रह्मलीन होने का अर्थ क्या है? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
26 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। आज के पाठ से अध्ययन का आनंद हुआ। कैसे हुआ, किसे हुआ, यह नहीं कह सकते, बस आनंद ही था। जब हम केवल ब्रह्म-अनुभूति में रम जाते हैं, मन अमन होता है, तब भी संसार का व्यवहार तो द्वैत में ही होगा, मान्यताएँ भी होंगी, वृत्तियाँ

मनोविजय के साधन || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
मनोविजय के साधन || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
39 min

मनीषियों का साथ, आवृत वृत्तियों का त्याग, आत्म जिज्ञासा और श्वास का नियंत्रण — ये मनोविजय के साधन हैं। —योगवासिष्ठ सार

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम। श्वास के नियंत्रण से और आवृत वृत्तियों के त्याग से क्या अभिप्राय है?

आचार्य प्रशांत: समझेंगे बात को। आवृत वृत्तियाँ और श्वास का नियंत्रण, इन

सत्य की तलाश में प्रयास साधन या बाधा? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
सत्य की तलाश में प्रयास साधन या बाधा? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
28 min

प्रश्नकर्ता: अद्वैत ज्ञान में अक्सर बताया जाता है कि प्रयास, प्रयत्न, ये सब सत्य प्राप्ति में बाधक हैं। लेकिन योगवासिष्ठ के अध्याय 'मन का विलीन' में प्रयास पर ख़ास ज़ोर दिया गया है। तो प्रयास करें कि न करें? प्रयास लाभप्रद है या हानिप्रद? आध्यात्मिक खोज में जब सत्य लक्ष्य

सत्य का निरंतर अभ्यास कैसे करें? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
सत्य का निरंतर अभ्यास कैसे करें? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
70 min

असली सत्य को यदि तुम जान भी गए हो तो भी तुम्हें निरंतर अभ्यास करना पड़ेगा। कटक फल शब्द के उच्चारण से पानी साफ़ नहीं हो जाता। —योगवासिष्ठ सार

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, निरंतर अभ्यास से क्या अभिप्राय है?

आचार्य प्रशांत: दो बातें हैं जिन्हें ठीक-ठीक समझ लेना बहुत ज़रूरी है।

कुविचार और सुविचार क्या हैं? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
कुविचार और सुविचार क्या हैं? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
14 min

जिस प्रकार हवा से पैदा की गई आग उसी हवा से बुझ जाती है, उसी प्रकार जो कल्पना से पैदा हुआ है, वो कल्पना मात्र से ही मिटाया जा सकता है। —योगवासिष्ठ सार

आचार्य प्रशांत: चिंगारी को ज़रा हवा देते हैं तो आग भड़क जाती है और चिंगारी को फूँक

दुनिया में अपनी भूमिका कैसे निभाएँ? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
दुनिया में अपनी भूमिका कैसे निभाएँ? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
9 min

हे राघव! अंदरूनी रूप से सभी इच्छाओं को त्याग दो, आसक्तियों और आवृत वृत्तियों से मुक्त हो जाओ, सब कुछ बाहरी रूप से करो। इस प्रकार दुनिया में अपनी भूमिका निभाओ। ~ योगवासिष्ठ सार

प्रश्नकर्ता: इस स्थिति में कैसे रहें और दुनिया में क्या भूमिका हो?

आचार्य प्रशांत: यह स्थिति

अनंत चेतना का महासागर || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
अनंत चेतना का महासागर || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
10 min

मुझमें ब्रह्माण्ड की काल्पनिक तरंगों को उठने या गिरने दो। मैं जो अनंत चेतना का महासागर हूँ, मुझमें कोई वृद्धि या कमी नहीं होती। —योगवासिष्ठ सार

आचार्य प्रशांत: "अनंत चेतना का महासागर हूँ मैं।” ये जो 'अनंत चेतना' है, इसको थोड़ा समझना पड़ेगा। चेतना में अनंतता दो तरह की होती

माया का असली रूप || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
माया का असली रूप || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
32 min

हे राम! माया ऐसी है कि अपने नाश से एक अनूठा आनंद उत्पन्न करती है। इसका स्वरुप जाना नहीं जा सकता है और यह ध्यान से देखने मात्र से नष्ट हो जाती है। —योगवासिष्ठ सार

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, इसका भावार्थ बताएँ।

आचार्य प्रशांत: दो-तीन बातें कही हैं। पहला, अपने नाश

आत्मज्ञान माने क्या? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
आत्मज्ञान माने क्या? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
36 min

स्वज्ञान (आत्मज्ञान) वो आग है जो इच्छारूपी सूखी घास को जला देती है। —योगवासिष्ठ सार

आचार्य प्रशांत: इच्छा को सूखी घास क्यों कहा है, समझेंगे। इच्छाओं का एक पूरा अन्तर्सम्बन्धित जाल होता है, *नेटवर्क*। कोई इच्छा अकेली नहीं खड़ी होती, वो अपने पीछे भी दस इच्छाएँ लेकर आई होती है,

गुरु पंख देगा, पर उड़ना तुमको ही पड़ेगा || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
गुरु पंख देगा, पर उड़ना तुमको ही पड़ेगा || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
66 min

शिक्षण की प्रथागत विधि का अनुसरण केवल परम्परा हेतु होता है। विशुद्ध चैतन्य शिष्य की समझ की स्पष्टता से प्रतिफलित होता है। —योगवासिष्ठ सार

आचार्य प्रशांत: तो यहाँ पर उन्होंने विशुद्ध चैतन्य की ज़िम्मेदारी पूरे तरीक़े से शिष्य की समझ पर डाल दी है। एक जगह वो कह रहे हैं:

सही वासना कैसी? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
सही वासना कैसी? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
5 min

जो वासना परमार्थ के लिए की जाए, वो शुभ होती है। —योगवासिष्ठ सार

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, वासना यदि सत्य की ओर उन्मुख हो जाए तो वो सही किस प्रकार है?

आचार्य प्रशांत: राम की ओर दिल भागता है। संत कहेंगे कि अच्छा तो यह होता है कि स्थिर ही हो

वैराग्य संसार से नहीं, अपनी हरकतों से होता है || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
वैराग्य संसार से नहीं, अपनी हरकतों से होता है || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
5 min

इस विस्तृत संसार से कभी सुख नहीं मिल सकता क्योंकि इसमें जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे मरने के लिए ही उत्पन्न होते हैं और जो मरते हैं, वे उत्पन्न होने के लिए ही मरते हैं, उनको कुछ भी सुख नहीं मिलता। —योगवासिष्ठ सार

प्रश्नकर्ता: ‘उत्पन्न होने के लिए ही

सत्य का अनुभव कैसे हो? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
सत्य का अनुभव कैसे हो? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
4 min

जो मूर्ख तत्व को नहीं जानते, वे ही अपने बालकपन के कारण संभावित अवस्थाओं से दूर भागते हैं। —योगवासिष्ठ सार

प्रश्नकर्ता: 'बालकपन' कह रहे हैं, अहंकार नहीं कह रहे। ऐसा क्यों?

आचार्य प्रशांत: अप्रौढ़ता। 'बालकपन' कहना उचित भी है। बालकपन मतलब वैसे जैसे तुम पैदा होते हो। कैसे पैदा होते

पूर्व के अशुभ कर्मों को शांत कैसे करें? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
पूर्व के अशुभ कर्मों को शांत कैसे करें? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
6 min

मनुष्य को इतना पुरुषार्थ करना चाहिए कि पूर्व के अशुभ कर्म शांत हो जाएँ। —योगवासिष्ठ सार

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, (श्लोक के सन्दर्भ में) जो भी हमने किया है, उसको पलटना है या समझकर उसको ध्यान से देखना काफ़ी है?

आचार्य प्रशांत: ‘पूर्व के अशुभ कर्म शांत हो जाएँ।’ आप बहुत

प्रयत्न करने का अर्थ क्या? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
प्रयत्न करने का अर्थ क्या? || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
16 min

अपने प्रयत्न के सिवा और कोई तुम्हें सिद्धि देने वाला नहीं है।

—योगवासिष्ठ सार

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रयत्न करने का क्या अर्थ है?

आचार्य प्रशांत: प्रयत्न से यही तात्पर्य है जिसकी हम बात कर चुके हैं – उचित कर्म। कोई कितना भी सिखा ले, अंततः जीना तो तुम्हे स्वयं ही

आत्मज्ञान और कर्म || योगवासिष्ठ सार पर (2018)
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14 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कहा जाता है कि आत्मज्ञान केवल विचार से होता है, तो यहाँ विचार से क्या आशय है?

आचार्य प्रशांत: आत्मविचार। रमण महर्षि भी विचार की उपयोगिता पर बड़ा महत्व देते थे। पर वशिष्ठ या रमण अगर विचार कहें, तो जो हमारा साधारण, विक्षिप्त विचार है, उसकी बात

महर्षि वाल्मीकि
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आज महर्षि वाल्मीकि जयंती का सुअवसर है। इससे बेहतर शायद ही कोई मौका मिले भारत के आदिकवि को जानने के लिए। इसलिए आज हम उनके विषय में कुछ महत्वपूर्ण बातें आपके साथ साझा करना चाहते हैं:

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~ भारत व सनातन धर्म में महर्षि वाल्मीकि का योगदान

त्यौहारों के प्रति झूठा आकर्षण
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आचार्य प्रशांतः तरुणा कह रही है कि, "दीवाली का जब से माहौल बना है तब से सी.आई.आर. (संस्था के अंतर्गत होने वाले मासिक कोर्स) अटेंड (भाग लेना) करना और मुश्किल हो गया है। कह रहीं हैं कि जब से सीरीज शुरू हुई थी तब से ही कुछ आंतरिक बाधा सी

पहले पागल थे, या अब हो गए?
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आचार्य प्रशांत: आलोक जी कह रहे है कि आचार्य जी अब कुछ उल्टा होने लगा है। दुनिया महत्वपूर्ण लगने लगी है। मौत का क्यों सोचूं, जीवन भी तो अच्छा ही लगने लगा। आत्मा को खोजने की ज़रूरत ज़रा कम हो गई है, क्योंकि शरीर भी तो बढ़िया चीज़ है। पेड़,

ब्रह्म की प्राप्ति
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प्रश्नकर्ता: नमस्कार आचार्य जी। शरीर, मन, बुद्धि, दृश्य व अदृश्य जगत का आधार ब्रह्म हैं और वह ब्रह्म सर्वत्र है, सर्वव्यापी है, विश्वरूप है। उसकी रचना वस्तु में भी ब्रह्म है, तो फिर यह अज्ञान क्यों? क्या हम वह नहीं है या अगला ब्रह्म नहीं है?

दूसरा प्रश्न है, "कुछ

माँस का त्याग कैसे करें
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, क्या माँस-मदिरा, तंबाकू आदि का यदा-कदा सेवन करना गलत है? मैंने सुना है रामकृष्ण, विवेकानंद, जीज़स आदि मांसाहारी थे, और बुद्ध ने भी प्राकृतिक मौत से मरे जानवरों का माँस खाने के प्रति आपत्ति नहीं की है। तो क्या माँसाहार अध्यात्म में बाधक है? यदि बाधक है

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देखिए, जो प्रकृति का पूरा खेल चल रहा है न, उसका उद्देश्य मुक्ति नहीं है, उसका उद्देश्य तो यही है कि खेल ही चलता रहे। खेल बस चलता रहे, चलता रहे। हाँ, मुक्ति हो सकती है, पर वो अपवाद स्वरूप होती है। थोड़ा ज़मीनी बात करता हूँ। जैसा आप अपने आप को माहौल देने लग जाते हो, इवोलूशनरी थ्योरी कहती है की आपका शरीर भी उसी तरह का होना शुरू हो जाता है। ये विकासवाद है इवॉल्यूशन का सिद्धांत। आप जैसा अपने आपको माहौल देने लग जाते हो न, आपका शरीर भी उसके अनुकूल होना शुरू हो जाता है।
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All three gunas, all said and done, belong to prakriti, and you have to move beyond prakriti, move beyond your association with prakriti, move beyond your consumption of prakriti. Even sattva can become an object of consumption. Don't we know of so many learned and knowledgeable people whose knowledge becomes their identity, who eat their knowledge? Just as it is possible to get trapped in tamas and raja, it is equally possible to get trapped in sattva.
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मासूमियत में बड़ी ताकत होती है क्योंकि मासूमियत के पास कहानियाँ नहीं होती, और इसी को हम मासूमियत की परिभाषा भी कह सकते हैं। जिसके पास जीवन को देखने की सीधी-साफ़ दृष्टि है, जो देखने के नाम पर कहानियाँ प्रक्षेपित नहीं करता। हमारी तो देखने की दिशा ही विचित्र होती है। हम ऐसे थोड़ी देखते हैं कि बाहर क्या है; उसने भीतर प्रवेश किया, हमने उसको देखा। हमारी देखने की प्रक्रिया इससे उल्टी चलती है।
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तो जो लोग अपने आप को और चैतन्य और बेहतर नहीं बनाना चाहते भीतर से, वो जानवर हैं। उनको जानवर की ही ज़िंदगी जीनी है। किसी को धमकी दे देना, किसी पर गुंडई चला देना — नेताजी बन गए हैं, फ़ॉर्चूनर ले ली है — जाकर पान वाले को पेल दिया, उसका खोखा गिरा दिया, क्योंकि वहाँ और तो कोई बड़ी दुकानें होती नहीं। जिस तरह का ये माहौल है, वहाँ पर कोई औद्योगिक विकास तो होगा नहीं, वहाँ पर कोई मेगा मॉल तो स्थापित होगी नहीं; छोटी-मोटी दुकानें होती हैं, उन्हीं पर जाकर अत्याचार कर लो, उनको मारो। वो जो कस्बे के गरीब हैं उनको अच्छे से पीटो-पाटो, उन पर धौंस चलाओ, ये सब जंगल की निशानियाँ हैं।
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The purpose of all instruments of religion, methods of religion is to unblock. The truth is here, there, inside, outside, everywhere. But there is a blockage. That blockage is called the ego. The ego prevents the truth from coming to itself. So, religion is a device, a tool so that Truth can flow to the ego. The ego wants to defend itself against the truth because once the truth flows in, it dissolves the ego.
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मनुष्य की देह होने भर से आपको कोई विशेषाधिकार नहीं मिल जाता, यहाँ तक कि आपको जीवित कहलाने का अधिकार भी नहीं मिल जाता। सम्मान इत्यादि का अधिकार तो बहुत दूर की बात है, ये अधिकार भी नहीं मिलेगा कि कहा जाए कि ज़िन्दा हो।
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A secular person is one who does the right thing irrespective of his religious association. And if you want this, then you should be deeply religious. Because in secularism, you want equanimity, a certain detachment, respect towards divergent opinions, and non-violence; but who teaches these things? Religion. Therefore, if secularism is in strife with religiosity, it means both are misplaced. The religiosity is fake, and the secularism is shallow.
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जो भी कर रहे हो अगर उसके कारण में राम है तो ठीक है। कारण माने उत्पत्ति, मूल। या तो मूल में राम हो या मंजिल में राम हो। मूल ही मंजिल होता है। एक ही बात है। अगर राम के लिए है तो ठीक है। जो भी गति है जीवन की अगर वह राम के लिए है तो गति कैसी भी है, ठीक है। और अगर राम के लिए नहीं है गति तो व्यर्थ है। फिर दुनिया के बाजार में बिकने के लिए तैयार हो रहे हो। बहुत तैयारी करी जा रही है। बहुत शिक्षा ली जा रही है। बहुत ज्ञान संचित किया जा रहा है। चेहरे को बहुत चमकाया जा रहा है। यह सब किस लिए करी जा रही है? राम कसौटी है।
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Immortality, and the meaning of life, is the theme of Kumbh. Seen with clarity, everything in the Kumbh narrative revolves around escaping death.

Another Kumbh festival is here. There are several ancient stories behind Kumbh. If the stories are taken merely as tales or folklore, then religion risks becoming merely

Kumbh: Truth Beyond the Myth
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Amrit is at the center of the story. And where can we get Amrit from? By self introspection. The more a person knows himself, the more he will become free from himself. Free from death. What you think of yourself is known as death. And the more you look at yourself, the more you understand that what I think of myself is all futile. I'm actually not that. Negation, Neti Neti. Amrit does not mean gaining something. Amrit means being free from death.