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ब्रह्म की प्राप्ति

Acharya Prashant

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ब्रह्म की प्राप्ति

प्रश्नकर्ता: नमस्कार आचार्य जी। शरीर, मन, बुद्धि, दृश्य व अदृश्य जगत का आधार ब्रह्म हैं और वह ब्रह्म सर्वत्र है, सर्वव्यापी है, विश्वरूप है। उसकी रचना वस्तु में भी ब्रह्म है, तो फिर यह अज्ञान क्यों? क्या हम वह नहीं है या अगला ब्रह्म नहीं है?

दूसरा प्रश्न है, "कुछ ग्रंथ कहते हैं कि सहानुभूति बहुत आसान है - यह हुआ श्रेष्ठ अष्टावक्र का मर्मर्शी और कुछ कहते हैं कि बहुत कठिन साधना करनी होती है, तो सच्चाई क्या है, कृपया बताएं। महेश चंद्र सेठ, भोपाल से।

आचार्य प्रशांत: महेश जी, पहला सवाल - शरीर, मन, बुद्धि, दृश्य, अदृश्य जगत सबका आधार ब्रह्म है और ब्रह्म सर्वत्र है, सर्वव्यापी है, विश्वरूप है, सारी रचनाएं भी ब्रह्म है, तो फिर यह अज्ञान क्यों है कि हम ब्रह्म नहीं है या दूसरे ब्रह्म नहीं है? कहां कोई अज्ञान है? आप अपना नाम रख ले, ब्रह्म कुमार - तो हो गए ब्रह्म।

मज़ाक की बात नहीं है, नाम से ही तो जानते हो न चीज़ों को। चीजों के नाम है और तुम कह देते हो कि जिस चीज का जो नाम है वही उसकी आत्मा है। नाम से भिन्न - आत्मा में, कोई निष्ठा है तुम्हारी? सामने मेज़ रखी है, तो कह देते हो मेज़ है न - समझो बात को। अज्ञान कह रहे हो अज्ञान नहीं है तुम्हें, ज्ञान है - क्या ज्ञान है? कि यह मेज़ है।

अपने आप को आप देखते होगे आईने में, तो क्या बोलते है? मैं महेश हूं। यह अज्ञान है क्या, यह तो ज्ञान है न। और भीतर बैठी है तमसा - वह इस ज्ञान की परख नहीं करने देती, इसका अनुसंधान नहीं करने देती। धारणा है, गवेषणा नहीं है। सिद्धांत पकड़ लेते हो, सोचते भी नहीं। हमारे पास ज्ञान बहुत है और उस ज्ञानसे काम चलता रहता है, तो हमें कोई आवश्यकता नहीं महसूस होती कि उस ज्ञान पर ज़रा कड़ी नज़र डाले।

हम कान पकड़ कर पूछताछ करते ही नहीं। पुलिसवालों को देखा हैं, जब वे मंझे हुए अपराधी को पकड़ते हैं तो क्या करते हैं, क्या करते हैं? सच्चाई उगलवानी हैं तो क्या करते हैं? उनको चाय पिलाते हैं? पुलिसवाले थर्ड डिग्री करते हैं, तुम्हें फोर्थ डिग्री की ज़रूरत हैं; तुरिय टॉर्चर की। तो झूठ सारे सामने आए न!

अभी तो हो रहा है कि, मेज़ आती है और तुमसे बोलकर निकल जाती है कि मैं क्या हूं? मैं मेज़ हूं।

पत्नी आती है, क्या बोलकर निकल जाती है? मैं पत्नी हूं। कान पकड़ कर पूछते हो, तुम पत्नी बनी कब और कैसे बन गई? और तुम पत्नी हो अगर, तो तुम्हारा एक एक कर्म पत्नी वाला क्यों नहीं होता? कार आती है सामने, मैं तो कार हूं; तुमने कभी पूछा कि थोड़ी देर पहले तू तो मिट्टी के नीचे लोहा थी, मिट्टी ही थी, यह तू कार कैसे हो गई?

इतने जन्म होते हैं, इतनी मृत्युएं - इनके बाद भी कभी चेतते हो क्या कि नाम और रूप का जो तुमने ज्ञान पकड़ रखा हैं, इनके प्रति जो निष्ठा बैठा रखी हैं, वह कितनी वास्तविक है? ब्रह्म की बात भी बस इसलिए कर रहे हो क्योंकि ब्रह्म का नाम पता हैं; किसीने आ कर बोल दिया ब्रह्म। पुरानी किताबें, ब्रह्म न बोलती, कुछ और बोलती - मर्म बोलती, धर्म बोलती, ब्रह्म शब्द का नामो निशान नहीं होता तो आप उसका ज़िक्र नहीं करते। यह सब आयातित ज्ञान हैं। और हममें इतना हल्कापन नहीं हैं, हममें इतनी तीक्ष्ण मेघा नहीं कि हम इसके भीतर घुस जाए, इसे काट दे; हम आलसी लोग हैं, हम पर तमसा विराजती हैं। हमारा तो ऐसा हैं कि जैसे किसी विद्यार्थी को कोई बड़ी उत्कंठा न हो किसी प्रश्न का उत्तर जानने की, वास्तविक उत्तर जानने की। पर शिक्षक ने उस पर ज़िम्मेदारी दे दी हो कि जाओ पता करके आओ - अब उसके सिर का बोझ है पता करना; अरे पता करना क्यों है, बिना पता किए भी तो काम चाल रहा है। तो इधर उधर पूछेगा, और कोई उसे कोई भी फर्ज़ी उत्तर बता देगा। वह उस उत्तर से तुरंत संतुष्ट हो जाएगा, उसके भीतर कोई विरोध नहीं उठेगा, उसके भीतर से कोई परख पड़ताल नहीं उठेगी। वह परीक्षण नहीं करना चाहेगा। वह तो इसी फिराक में था कि कहीं से कुछ भी उत्तर मिल जाए, काम चले यार। शिक्षक के हाथों में उत्तर थमाएं, हम सोने जाएं, खाएं पीये मौज़ मनाएं; उसे भूख थोड़े ही थी कि मुझे जानना है!

ब्रह्म कह रहे हो न? इस भूख का नाम है ब्रह्म। जिस दिन यह भूख उठ गई कि जानना है, उस दिन सारे नाम अवास्तविक, फर्ज़ी, नकली दिखाई देंगे। उस दिन कहोगे - क्यों झूठ बोल रहे हों, झूठ बोल रहे हो, झूठ है सब।

अभी चीज़े झूठ नहीं लग रही हैं, या झूठ लग भी रही हो तो कहते हो काम तो चल रहा है। जैसे किसी दुकान में जाते हो, फर्ज़ी दुकान, सस्ती। दुकानदार से पूछते हो - यह कपड़ा क्या है? और तुम्हें कपड़ा चाहिए पोछा लगाने के लिए। तुम्हें कपड़े का इतना ही उपयोग करना है कि उससे पोछा लगाना है ज़मीन पर, धूल साफ करनी है। तुम दुकानदार से पूछते हो कि कपड़ा क्या है; दुकानदार बोलता है - सौ प्रतिशत कपास; विशुद्ध कॉटन है जनाब। तुमको पता है कि झूठ बोल रहा है। पर तुम्हें उसके झूठ से कोई ऐतराज़ ही नहीं है - क्यों नहीं ऐतराज़ है? तो पोंछा ही तो लगाना है, झूठ बोल भी रहा होगा तो क्या हो गया! देव मूर्ति थोड़े ही सजानी है, राधा को थोड़े ही अलंकृत करना है इससे; पोछा ही तो लगाना है, तो झूठ भी चलेगा। तुम उसका विरोध भी नहीं करोगे - तुम कहोगे, बहसा बहसी में कौन पड़े। यह कहता है कि शुद्ध कपास है, अरे आधा भी होगा तो भी चलेगा, चौथाई भी होगा तो भी चलेगा; पोछा ही तो लगाना है।

जीवन में कुछ ऐसा करने की ठानो, किसी ऐसे अभियान पर लगो, जिसके लिए विशुद्ध कपास चाहिए हो, अब किसी दुकानदार का झूठ बर्दाश्त नहीं करोगे। तुम्हारे पास कोई ऐसा अभियान है क्या? किसी ऐसे महत्त काम में लगो जहां सिर्फ सच काम आ सकता हो, अब झूठ नहीं खरीदोगे। तुम्हारे पास कोई ऐसा काम है, बोलो है?

एक लुटी-पिटी, जर्जर-खरखर कार है तुम्हारे पास, और तुम्हें जाना कहाँ है? तुम्हें ढाई किलोमीटर दूर मच्छी बाज़ार तक तो जाना है; चल जाएगी, चलेगी। जिन्हें सुरूर अंतरिक्ष की यात्रा करनी हो, वह नास्वीकर करेंगे उस कार को - वह कहेंगे, यह नहीं चलेगी, हमे तो कोई बहुत परिष्कृत यान चाहिए, जिसमें मन की उच्चतम संभावना प्रकट होती हो; ज्ञान विज्ञान के शिखर जिसमें समा गए हों, ऐसा यान दो।

अब तुम्हारे जीवन का लक्ष्य यही है - मच्छी बाज़ार तक जाना, तो तुम करोगे क्या ऐसे यान का? तुम्हें कोई से भी देगा तो तुम्हारे घर पर बोझ बनेगा - इतना बड़ा यान रखा हुआ है।

तुम्हें मारना है मच्छर, और तुम्हें नवीनतम तकनीक का टैंक दे दिया गया है; तुम करोगे क्या उसका? तुम्हारी ज़िन्दगी में मच्छर मारने से बढ़कर कोई उपक्रम है? जिधर देखो उधर ताली बजाते नज़र आते हो, मच्छर ही मच्छर मार रहे हो, ब्रह्म का करोगे क्या? ब्रह्म उनके लिए हैं जिनके पास ब्रह्म का कोई उपयोग तो हो, ब्रह्म की कोई अनिवार्यता तो हो। बिना ब्रह्म के भी जब ज़िन्दगी बीती जा रही है, सब्ज़ी ख़रीदने जाते हो - वह कहता है क्या कि तभी दूंगा जब ब्रह्म दिखाओगे? बताओ, आधार कार्ड बन गया ना बिना ब्रह्म के; फोन का सिम मिल जाता है ना बिना ब्रह्म के; विवाह भी हो गया, बच्चे भी हो गए बिना ब्रह्म के; आजीविका भी चल रही है बिना ब्रह्म के; बिना ब्रह्म के, सब कुछ तो हुआ जा रहा है; वोट देने जाते हो तो कहता है क्या कि ब्रह्म आईडी दिखाओ; ड्राइविंग लाइसेंस में ब्रह्म मांगा था? बड़े नेता बन सकते हो, राष्ट्रपति बन सकते हो, बिना ब्रह्म के। कोई ऐसा प्रयोजन तो पकड़ो जिसमें ब्रह्म की आवश्यकता हो। तब ब्रह्म प्रकट होगा स्वयं तुम्हारे सामने।

दुकान पर भी जाते हो ना अगर, तो एक बात जानना, दुकानदार हैसियत देखकर माल दिखाता है - ब्रह्म भी ऐसा ही है। दुकान पर जाओ तो दुकानदार हैसियत देखकर माल दिखाता है, और चिकित्सालय में जाओ, तो चिकित्सक बीमारी देखकर माल दिखाता है। इतना बड़ा रोग है भीतर, इसका अनुभव तो करो और उसके बाद उतने बड़े चिकित्सक के पास जाओ तो जो कहें कि इतना महत्त रोग है तुम्हारा कि इसकी औषधि मात्र ब्रह्म है, ब्रह्म से नीचे का कोई उपचार चलेगा नहीं, राम-जड़ी चाहिए तुम्हें अब।

कबीर कहते हैं न - राम वियोगी ना जिए, जिए तो बावुर होए।

उस वियोग का पहले अनुभव तो करो कि जिसकी दवा सिर्फ राम है। फिर राम आएंगे, फिर ब्रह्म मिलेगा। तुम्हारे जीवन में राम की ज़रूरत क्या है, ज़रूरत भी छोड़ो यार, हैसियत क्या है। तुम्हें दे दिए गए राम, तुम्हारे लिए बड़े अनावश्यक होंगे, तुम्हें दिक्कत हो जाएगी कहीं रखने में कि यह क्या चीज़ आ गई हाथ में, इसको रखे कहां इसका करें क्या?

दिल टूटे तो तुम्हारा इतना कि उसको जोड़ने के लिए फिर सिर्फ ब्रह्म चले। हमारा तो दिल भी नहीं टूटता ना! हमें तो छोटी-मोटी खरोचे लगती हैं। उनके उपचार के लिए ब्रह्म की आवश्यकता नहीं। छोटी-मोटी खरोचें, छोटी-मोटी दवा से ठीक हो जाती है। ऐसा दिल टूटे, ऐसा दिल टूटे कि उसे जोड़ने के लिए फिर राम चाहिए हों; तो राम आएंगे, कहेंगे - ज़रूरत है। ऐसा कुछ असम्भव बीड़ा उठाओ, जो तुम्हारे बूते का ना हो तुम से आगे का हो, तो परमात्मा उतरेगा तुम्हारी मदद के लिए। ऐसा कोई असंभव अभियान शुरू किया तुमने?

अभियान भी तो हम सारे वही उठाते हैं न जो हमें लगता है हमारी औकात के भीतर के है; चलो एक मकान बनवा ले, मकान बनवाते हो कहते हो - देखो, इतना पैसा है, इतना बैंक से मिल जाएगा, इतना उधारी ले लेंगे, तो हो गया, मकान बन जाएगा। शादी करने निकलते हो, कहते हो - देखो, यह हमारी जात है, यह हमारी पात है, यह हमारी उम्र है, यह हमारी आर्थिक हैसियत है, इस हिसाब से विज्ञापन दे देते है तो स्त्री मिल जाएगी। नौकरी करने निकलते हो, कहते हो - यह हमारी शिक्षा है, यह हमारी उम्र है, यह हमारी आर्थिक अपेक्षा है, इस हिसाब से खोज लेते है तो नौकरी मिल जायेगी। हर चीज़ तो तुम अपने मानसिक क्षेत्र, अपेक्षित क्षेत्र, जीवन क्षेत्र के अनुसार ही खोजते हो, बड़ा अभियान है कहाँ कुछ? अपने से ऊंचे की आकांक्षा है कहां? ब्रह्म का क्या करोगे? जब सब कुछ अपने दायरे का ही चाहिए तो मिल रहा है। हां, उस दायरे के भीतर भी ब्रह्म ही है, पर इस दायरे के भीतर ब्रह्म के झूठे, फर्जी, नकली नाम है, उनसे काम चल रहा है न तुम्हारा। सब ब्रह्म हैं, पर जब नकली वाले से चलता हो काम, तो असली की क्या ज़रूरत है? माया क्या है - ब्रह्म ही तो है। जब माया से ही काम चल रहा हो, तो ब्रह्म क्या अपना अनादर कराने आएगा, बोलो?

यूंही सस्ते तेल से भोजन बन रहा है और क्या न सुगंध उठ रही हैं - संतुष्ट ही नहीं, लालायित हो। अब कोई आ गया शुद्ध तुमको घी बेचने - मैं घी का समर्थक नहीं हूं, मैं वीगन हूं, पर उदाहरण के लिए बोल रहा हूं - और वह कह रहा है कि यह जो घी है, यह इस तेल से कुछ नहीं तो बीस गुना महंगा है; तुम खरीदोगे, बोलो खरीदोगे? तो ब्रह्म तो बड़ा महंगा आता है, तुम घटिया तेल में संतुष्ट हो, तुम खरीदोगे? बोलो? बस इसीलिए ब्रह्म नहीं है।

ब्रह्म के इतने विकल्प हैं हमारे पास कि ब्रह्म की हमे कोई ज़रूरत नहीं। उन सारे विकल्पों को दिल कड़ा करके त्याग दो, फिर देखो कि ब्रह्म उतरता है कि नहीं।

जो दिल कड़ा करवाता है, उसी को ब्रह्म कहते हैं। और वह कड़ा कराने को तैयार है - तुम हामी भरो अभी। भर दो हामी, काम हो जाएगा। तुम्हारी हामी के अलावा काहे की देर है भाई!

यूं पूछते हो, जैसे कोई अचंभा उतरा हो, ब्रह्म नहीं मिल रहा, ब्रह्म नहीं मिल रहा। ब्रह्म परेशान है, हम मिल नहीं रहे - हम यत्र, तत्र, सर्वत्र है; जब हम तुम्हे नहीं मिल रहे, तो उस नहीं मिलने में भी हम ही व्याप्त है, कह रहे हो नहीं मिल रहे!

बताने वालों ने, ब्रह्म की भी फिर इसलिए कोटियां बनाई - किसी ने कहा सगुण ब्रह्म, किसी ने कहा निर्गुण ब्रह्म, किसी ने कहा बीज ब्रह्म, किसी ने कहा फलित ब्रह्म। मैं बोलता हूं - झूठ ब्रह्म। वह भी ब्रह्म की सबसे प्रचलित कोटि है, वहीं वही दिखाई देती है। ब्रह्म माने वह जो दिल ठंडा कर दे, मन शांत कर दे। तुम्हारा दिल ठंडा हो जाता है फर्नीचर खरीद कर। अगर फर्नीचर खरीद कर दिल ठंडा हो रहा है तो अपनी जान तो तुमने ब्रह्म ही घर बुला लिया न; तो झूठ ब्रह्म - दिल तो ठंडा कर ही गया।

जैसे कोई गाड़ी हो, जो पेट्रोल पर चलती हो; जानते हो न पेट्रोल में केरोसीन मिला दो, चल तो देती ही है, रुक थोड़े ही जाती है - हां धुआं मारेगी, इंजन खराब होगा, वह सब तो! तो केरोसीन को केरोसीन क्यों बोले - उसे झूठ पेट्रोल बोलो न, क्योंकि पेट्रोल का ही तो वह विकल्प बनकर आया है सामने।

झूठ से आजिज़ आ जाओ। सच्चाई सामने ही नहीं खड़ी होगी, भीतर खड़ी होगी। उकताओ तो सही, ऊबो तो सही, अपनी गरिमा का ज़रा खयाल तो करो; कोई लूटे जा रहा है, कोई झूठ बोले जा रहा है, तुम उसमें यकीन करे जा रहे हो, तुम ऐसे ही जिए जा रहे हो, कभी तो विद्रोह में मुट्ठी तानो – यार, तुमने बहुत बना लिया बेवकूफ़, बेवकूफ़ बनने की भी इन्तहा होती है। हिम्मत नहीं होती? दिल नहीं करता? समय नहीं आया है? क्या बहाना है तुम्हारे पास? ज़रूरत ही नहीं है, ज़रूरत ही नहीं है तो सवाल क्यों पूछते हो? क्यों सबका समय खराब करते हो? मैं तुम्हारे सवाल को इज्ज़त देता हूं, सवाल पूछ रहे हो तो मान रहा हूं कि ज़रूरत है। घी खरीदो घी - महंगा आता है, कीमत अदा करनी पड़ेगी। कीमत अदा करते समय, दांत से पैसा मत पकड़ लेना।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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