Saint Dadu Dayal

कैसा है तुम्हारा मन - फूल, या धूल? || आचार्य प्रशांत, दादू दयाल पर (2017)
कैसा है तुम्हारा मन - फूल, या धूल? || आचार्य प्रशांत, दादू दयाल पर (2017)
1 min

प्रसंग:

मन क्या है? कैसा है तुम्हारा मन - फूल, या धूल? मन को माणिक क्यों बोला गया है? मन माणिक कब है? मन को कीमती क्यों बताये है संत दादू दयाल? मन माणिक मूरख राखि रे, जन-जन हाथ न देहु। इस पंक्ति का क्या अर्थ है?

दोहा:

मन माणिक

आप भूल करते नहीं, आप भूल हैं || आचार्य प्रशांत, संत दादूदयाल पर (2014)
आप भूल करते नहीं, आप भूल हैं || आचार्य प्रशांत, संत दादूदयाल पर (2014)
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तुम्हारी प्रकृति है भूल जाना, और स्वभाव भूलकर भी न भूल पाना ||आचार्य प्रशांत, संत दादूदयाल पर (2015)
तुम्हारी प्रकृति है भूल जाना, और स्वभाव भूलकर भी न भूल पाना ||आचार्य प्रशांत, संत दादूदयाल पर (2015)
30 min

मन माणिक मूरख राखि रे, जण-जण हाथ न देऊ।दादू पारिख जौहरी, राम साधु दोइ लेऊ।।71।।

~दादू दयाल

वक्ता: मन के बारे में दो मूलभूत बातें कही गई हैं। दोनों दिखने में अलग-अलग हैं, कदाचित ये भी लगे की विपरीत है। लेकिन दोनों एक साथ चलती हैं। इसी विचित्रता, इसी संगम

बिखरे मन के लिए संसार में टुकड़े ही टुकड़े || आचार्य प्रशांत, दादू दयाल पर (2014)
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स्वाति बूंद केतली में आए, पारस पाये कपूर कहाए । दर्पण फूटा कोटि पचासा, दर्शन एक सब में बासा ।। ~ संत दादू दयाल

वक्ता: आप एक स्थान पर खड़े हैं और आपके चारों तरफ असंख्य शीशे हैं—ऊपर, नीचे, दसों दिशाओं में शीशे हैं; हर रंग, हर आकार और हर

तुम ही सुख-दुःख हो || आचार्य प्रशांत, संत दादू दयाल पर (2014)
तुम ही सुख-दुःख हो || आचार्य प्रशांत, संत दादू दयाल पर (2014)
13 min

*जिसकी सुरती जहाँ रहे, तिसका तहाँ विश्रामभावै माया मोह में, भावै आतम राम – संत दादू दयाल*

वक्ता : क्या कहते हैं कबीर भी?

“जल में बसे कुमुदनी, चंदा बसे आकाश जैसी जाकी भावना, सो ताही के पास”

यह बिल्कुल वही है जो अभी दादू न कहा । तुम

दुःख - सुख कि स्मृति || आचार्य प्रशांत, संत दादू दयाल पर (2014)
दुःख - सुख कि स्मृति || आचार्य प्रशांत, संत दादू दयाल पर (2014)
10 min

*सुख का साथी जगत सब, दुख का नाही कोय ।*दुःख का साथी साइयां, ‘दादू’ सदगुरु होय ॥

-दादू दयाल

प्रश्न: संसार में जो सुखों के सहभागी हैं, वो दुखों में भी प्रस्तुत रहते ही हैं, फ़िर ऐसा क्यों कहा जा रहा है कि सुख का साथी जगत सब और

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दूसरों से प्रेम पाने की इच्छा सबसे ज़्यादा उन्हीं में देखी जाती है, जो स्वयं को प्रेम नहीं कर सकते। अगर जीवन में सच्चाई और ऊँचाई नहीं है, तो आप अपने आप को प्रेम नहीं कर पाएँगे। दूसरे आपके दिल के कटोरे में कितना भी प्यार डाल दें, वो कटोरा खाली ही रह जाना है। आप ज़िन्दगी भर यही कहते रह जाओगे कि प्यार नहीं मिला। प्रेम मत माँगो, पात्रता पैदा करो। पात्रता पैदा कर लोगे, तो अपने ही इश्क़ में पड़ जाओगे। ऐसों को फिर बाहर भी बहुत आशिक़ मिल जाते हैं, लेकिन उन्हें उनकी ज़रूरत नहीं रह जाती।
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धर्म आपके शरीर की रक्षा थोड़ी करेगा। रक्षा शब्द की जब बात आती है तो ये समझना पड़ेगा कि आपको बड़ा ख़तरा क्या होता है। ख़तरे के संदर्भ में ही रक्षा शब्द का कुछ अर्थ है ना। ख़तरा हो तभी रक्षा की बात होती है। ख़तरा ही नहीं तो रक्षा शब्द अर्थहीन है। हाँ तो सबसे पहले तो ये जानना पड़ेगा कि हमें ख़तरा क्या है? एक मनुष्य को सबसे बड़ा ख़तरा क्या है? क्या मृत्यु? क्या किसी इंसान को सबसे बड़ा ख़तरा ये होता है कि उसका शरीर गिर जाएगा, मृत्यु हो जाएगी — ये होता है? किसी इंसान को सबसे बड़ा ख़तरा ये होता है कि मृत्यु आने से पहले वो मुक्त नहीं हो पाएगा। ये होता है ख़तरा।
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का जाति:। जातिरिति च। न चर्मणो न रक्तस्य न मांसस्य न चास्थिनः। न जातिरात्मनो जातिर्व्यवहारप्रकल्पिता॥१०॥

शरीर (त्वचा, रक्त, हड्डी आदि) की कोई जाति नहीं होती। आत्मा की भी कोई जाति नहीं होती। जाति तो व्यवहार में प्रयुक्त कल्पना मात्र है।

~ निरालंब उपनिषद (श्लोक क्रमांक १०)

आचार्य प्रशांत: आज जो

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Question: What do I do to cross the river? To me, it is such a challenge.

Acharya Prashant: Crossing the river is easy. Just hold the hand of someone who knows the other side, and cross. You have already crossed the river a thousand times with me. Your failure is

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The wise ones say, “Love arrives only when the right, clean, and honoured space has been prepared for it.” So, you can never find love — you can only rid yourself of all that blocks it; all that is needlessly and coincidentally present in your mental space. And you can’t predict how love will arrive, but you can do your homework to clear the inner clutter.
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असली के साथ रहे आओ, नकली से लड़ने की भी ज़रूरत नहीं पड़ेगी, वो झड़ जाएगा। तुम्हें पता भी नहीं चलेगा, वो जीवन से कहाँ चला गया। उसका खयाल आना बन्द हो जाएगा। जिनकी ज़िन्दगी में मोहब्बत आ जाती है, यकीन मानो, उनका पीना अपने आप छूट जाता है। उन्हें पता ही नहीं चलता कहाँ चला गया। और जिनकी ज़िन्दगी से प्रेम चला जाता है, तुम गौर करोगे, वो तुरन्त शराब की ओर भागते हैं। तो शराब क्या है? प्रेम का अभाव।
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The same suffering that we hide behind so many things— entertainment, even knowledge, so-called distractions, achievements, pleasures, accumulations, prestige, sanctions, and approvals from all around. We hide that fact of human suffering behind all these things. So, it's a big problem. It's a big problem that we want to address. So now, I want to look at — why am I suffering? Why am I suffering?
माँ का वास्तविक अर्थ क्या है?
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‘माँ’ शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं। एक अर्थ निकलता है नासमझी से और दूसरा अर्थ निकलता है समझ से। पहली माँ के पास मात्र ममता होती है, दूसरी माँ के पास मातृभाव होता है। ममता तो पशुओं में भी होती है, पर मातृभाव कोई-कोई माँ ही जानती है। मातृभाव का अर्थ है - वास्तविक रूप से जन्म देना - एक जन्म शरीर का और दूसरा जन्म ज्ञान का। ममता में प्रेम नहीं होता; इसमें मात्र हॉर्मोन्स होते हैं। वास्तविक माँ वो जो प्रेम जाने। उसके लिए माँ को स्वयं बोधयुक्त होना पड़ेगा।
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धर्म की दिशा सबसे पहले भीतरी होती है। दूसरों को काफ़िर कहकर मार देना धर्म की दिशा नहीं है। धर्म जब गलत दिशा ले लेता है, तो ऐसी व्यापक तबाही करता है जिसकी कोई इंतहा नहीं होती। धर्म दोधारी तलवार है — अगर सही से समझा गया, तो ऊँचाइयों पर ले जाएगा; और नहीं समझा गया, तो ऐसा गिराएगा कि उठना असंभव हो जाएगा।
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पर एक साधारण सी बात है कि दूसरों की गंदगी बताने से पहले अपनी गंदगी तो साफ करूँ और मेरी गंदगी साफ होगी। उसके बाद कोई आकर के मुझसे बात करना चाहेगा उसके घर की गंदगी के बारे में। तो मैं प्रस्तुत हूँ। भई आखिरकार तो आप इंसान हो और हर इंसान से आपका सरोकार है। बात पंथ, मज़हब, संप्रदाय की तो नहीं होती है। कोई भी आकर आपसे बात करेगा और वो साफ होना चाहता है। बेहतर होना चाहता है तो आप बिल्कुल खुलकर बात करोगे। उसमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन सबसे पहले तो आप अपनी बात करोगे ना। अपना भीतर झाँक कर देखोगे।
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Love is always dedicated to the purpose of liberation, whereas desire forgets the highest and remembers only the object. If, in the process of love, desire, or attraction, you find that you have never lost sight of the Truth — rest assured, you are loving. But if the object becomes so dominant that you have totally forgotten the Truth, know that this is not love.
प्रेम हिंसा में क्यों बदल जाता है?
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दूसरों से दो ही तरह के संबंध हो सकते हैं — या तो प्रेम के, या फिर कामना के। कामना के रिश्ते उम्मीदों पर बनते हैं, जिनके पूरे न होने पर क्रोध आता है, और वही क्रोध फिर हिंसा बनता है। तुम्हारे भीतर यह गहराई से बैठा दिया गया है कि जीवन का अर्थ भोग है; और जिस रिश्ते की बुनियाद भोग हो, वहाँ प्रेम नहीं — हिंसा होती है। प्रेम में न कुछ चाहिए होता है, न भोगना होता है। प्रेम तब है जब बिना वजह, निःस्वार्थ, यूँ ही जुड़ जाते हो। अपने में जो पूरा है — सिर्फ वही प्रेम में स्वस्थ संबंध बना सकता है।
When Will Life Be Sorted for Good?
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There has never, ever been anybody 100% sorted. There are always challenges, and those challenges arise from the body itself; your enemy is within you, and it will remain as long as you are alive. So, learn to revel in this situation — it's called life. And instead of asking for a final victory, start asking for a good battle — battles where, even in your pain, you can say, “This one was good!”
'धर्म हिंसा तथैव च' शास्त्रों में लिखा है?
'धर्म हिंसा तथैव च' शास्त्रों में लिखा है?
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महाभारत में एक दर्जन जगह आया होगा 'अहिंसा परमो धर्म:,’ लेकिन उसमें साथ में आगे कहीं भी नहीं लिखा है कि 'धर्म हिंसा तथैव च।' 'धर्म हिंसा तथैव च' — अहिंसा तो परम धर्म है लेकिन हिंसा भी धर्म है; किसी भी ग्रंथ में कहीं पर भी नहीं लिखा हुआ है। इससे आपके रोंगटे खड़े हो जाने चाहिए कि ये कौन लोग हैं और ये कौन-सी सेंट्रलाइज़्ड जगहें हैं, जहाँ इस तरह की साज़िशें की जा रही हैं। जो उन्होंने जोड़ा है इसी से उनके मंसूबे पढ़िए — वो हिंसा करना चाहते हैं। यहाँ सीधे-सीधे धर्मग्रंथ के साथ पूरी खिलवाड़ ही कर दी गई है।
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बल सत्य से आता है। जब आपको सत्य पता ही नहीं तो आप में बल कहाँ से आएगा? आपको किसी ने बोल दिया 'धर्म हिंसा तथैव च।' आपने कहा, 'हो सकता है लिखा होगा।' आपको किसी ने बोल दिया गाँधी जी बहुत अच्छे आदमी थे, राष्ट्रपिता थे। आपने मान लिया। आज आपको बोला जा रहा गाँधी जी और नेहरू से ज़्यादा बुरा कोई नहीं था, इन्होंने देश बर्बाद करा। आपने वो भी मान लिया। तो थाली के बैंगन हैं, जो जिधर को लुढ़काना चाहे लुढ़का सकता है।
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Religious violence is not about a handful of terrorists; it's an entire ecosystem of passive toxicity supported by lakhs of people. When toxicity is beamed to you on TV and social media, you don't resist. And one day, it explodes into active violence. This is because we're still animals who live without understanding ourselves — this is called ignorance. Therefore, we need wisdom literature to help us transcend our animal disposition.
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लोकधर्म हमेशा मान्यताओं पर चलता है। एक आतंकवादी अपनी मान्यता के लिए किसी को मार रहा है, क्योंकि जो उसकी मान्यता, उसकी कहानी में विश्वास नहीं करेगा, वो गंदा आदमी है। बहुत सारे बुद्धिजीवी यही कहते हैं कि रिलीजन इज़ वन ऑफ़ द फॉरमोस्ट सोर्सेज ऑफ़ स्ट्राइफ़ एंड कॉन्फ्लिक्ट। धर्म एकता का स्रोत सिर्फ़ तब हो सकता है, जब वो व्यक्ति को सब विभाजनों से दूर कर दे। वेदांत ही शायद एक अकेला है जो ‘ग्रेट यूनिफ़ायर’ है, बाक़ी तो सब तोड़-फोड़ के अड्डे हैं।
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The distinction between spiritual life and worldly life is a false distinction. Spirituality is not morality or a set of commandments. It is never instructive. You do not need great formulations or special practices. Spirituality is basic honesty. Just see and acknowledge what is going on, and then the right action follows. Nothing else is needed.
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