Saint Charandas

जब चाहो तब मुक्ति || आचार्य प्रशांत, संत चरणदास पर (2014)
जब चाहो तब मुक्ति || आचार्य प्रशांत, संत चरणदास पर (2014)
15 min

काहू से नहि राखिये, काहू विधि की चाह। परम संतोषी हूजिये, रहिये बेपरवाह।।

~ संत चरणदास

आचार्य प्रशांत: सवाल इसमें है कि अगर सत्य की चाह बनी रहती है, पढ़ने की चाह बनी रहती है, तो ये भी तो एक तरह की परवाह है न? अभी बेपरवाही तो आई नहीं?

Related Articles
कैसे जानें कि प्यार सच्चा है या नहीं?
कैसे जानें कि प्यार सच्चा है या नहीं?
39 min
हमें प्रेम से तो कोई मतलब ही नहीं रहा; हमारा ज़्यादा वास्ता अब प्रेम से संबंधित छवियों से हो गया है। कोई मुस्कुरा दिया, तो हमें लगा कि प्यार ही करता है। और किसी ने ज़रा रुखाई से बात कर दी, तो तुरंत हम कह देंगे कि प्यार नहीं करता। प्रेम का अर्थ किसी व्यक्ति के प्रति किसी विशेष प्रकार का व्यवहार नहीं होता। सर्वप्रथम आपको ये देखना होगा कि आपके मन में दूसरे के हित की कामना है या नहीं। सच्चे प्रेम का एक ही लक्षण है — सत्य से मुलाक़ात करवा रहा है या नहीं।
Fight Hard, Forget About Victory
Fight Hard, Forget About Victory
4 min
The prerequisite is love, and love is an openness. Love is a vulnerability. Without that, all you will have is dry and meaningless and violent argumentation that yields nothing.
Should I Express My Emotions?
Should I Express My Emotions?
19 min
Expression is a relationship you establish with the world. It becomes a gift you give to others. What gets expressed, gets amplified. Anger expressed is anger amplified; attachment expressed is attachment multiplied. Do you want to gift chains and shackles, or something that helps and liberates?
'कूल' कैसे दिखें?
'कूल' कैसे दिखें?
19 min
फटी हुई जींस पहनने, और बाल रंगवाने से कोई कूल नहीं हो जाता। कूलनेस बहुत अच्छी चीज़ है, परंतु कूल हो नहीं, और ख़ुद को कूल कहो — यह समस्या है। कूल होना आध्यात्मिक बात है। कूल होने का असली मतलब है कि तुम श्रीकृष्ण का ज्ञान जानो। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा — तू विगत-ज्वर हो जा। जिसे ज्वर न चढ़े, जो आवेश और आवेग से मुक्त हो, वही वास्तव में कूल है।
दूसरों से प्यार क्यों नहीं मिलता?
दूसरों से प्यार क्यों नहीं मिलता?
28 min
दूसरों से प्रेम पाने की इच्छा सबसे ज़्यादा उन्हीं में देखी जाती है, जो स्वयं को प्रेम नहीं कर सकते। अगर जीवन में सच्चाई और ऊँचाई नहीं है, तो आप अपने आप को प्रेम नहीं कर पाएँगे। दूसरे आपके दिल के कटोरे में कितना भी प्यार डाल दें, वो कटोरा खाली ही रह जाना है। आप ज़िन्दगी भर यही कहते रह जाओगे कि प्यार नहीं मिला। प्रेम मत माँगो, पात्रता पैदा करो। पात्रता पैदा कर लोगे, तो अपने ही इश्क़ में पड़ जाओगे। ऐसों को फिर बाहर भी बहुत आशिक़ मिल जाते हैं, लेकिन उन्हें उनकी ज़रूरत नहीं रह जाती।
प्रेम किसे कहते हैं?
प्रेम किसे कहते हैं?
12 min
प्रेम किसी घटना का, किसी अफ़साने का, किसी व्यक्ति का नाम नहीं है। "प्यार तो सिर्फ़ एक एहसास होता है न, एक भीतर की भावना; तो हमें भी हो गया है" — नहीं, ऐसा नहीं है। प्रेम तुम्हारी चेतना की मूल तड़प का नाम है। जिस रास्ते पर चलकर तुम ज़िन्दगी की ऊँचाइयाँ हासिल कर सको, तुम्हारी चेतना साफ़-से-साफ़ और ऊँची-से-ऊँची जगह पर पहुँच सके, 'प्रेम कहावे सोय,' — उसको प्रेम कहते हैं।
Are You Ready For True Love?
Are You Ready For True Love?
11 min
The wise ones say, “Love arrives only when the right, clean, and honoured space has been prepared for it.” So, you can never find love — you can only rid yourself of all that blocks it; all that is needlessly and coincidentally present in your mental space. And you can’t predict how love will arrive, but you can do your homework to clear the inner clutter.
माँ का वास्तविक अर्थ क्या है?
माँ का वास्तविक अर्थ क्या है?
14 min
‘माँ’ शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं। एक अर्थ निकलता है नासमझी से और दूसरा अर्थ निकलता है समझ से। पहली माँ के पास मात्र ममता होती है, दूसरी माँ के पास मातृभाव होता है। ममता तो पशुओं में भी होती है, पर मातृभाव कोई-कोई माँ ही जानती है। मातृभाव का अर्थ है - वास्तविक रूप से जन्म देना - एक जन्म शरीर का और दूसरा जन्म ज्ञान का। ममता में प्रेम नहीं होता; इसमें मात्र हॉर्मोन्स होते हैं। वास्तविक माँ वो जो प्रेम जाने। उसके लिए माँ को स्वयं बोधयुक्त होना पड़ेगा।
When Peace Looks Like War
When Peace Looks Like War
21 min
Before the Mahabharata war, Shri Krishna himself had tried his utmost to prevent war because that was the right action in that moment. But on the battlefield, he goes beyond his brief as a charioteer and rushes towards Bheeshma to attack. You don't think this is an image of peace — but it is. Peace is not about adjustment, reconciliation, or diplomacy. It is about the action that takes us towards the Truth — action that comes from clarity and love. Peace is about the right action.
Love Versus Desire
Love Versus Desire
9 min
Love is always dedicated to the purpose of liberation, whereas desire forgets the highest and remembers only the object. If, in the process of love, desire, or attraction, you find that you have never lost sight of the Truth — rest assured, you are loving. But if the object becomes so dominant that you have totally forgotten the Truth, know that this is not love.
प्रेम हिंसा में क्यों बदल जाता है?
प्रेम हिंसा में क्यों बदल जाता है?
13 min
दूसरों से दो ही तरह के संबंध हो सकते हैं — या तो प्रेम के, या फिर कामना के। कामना के रिश्ते उम्मीदों पर बनते हैं, जिनके पूरे न होने पर क्रोध आता है, और वही क्रोध फिर हिंसा बनता है। तुम्हारे भीतर यह गहराई से बैठा दिया गया है कि जीवन का अर्थ भोग है; और जिस रिश्ते की बुनियाद भोग हो, वहाँ प्रेम नहीं — हिंसा होती है। प्रेम में न कुछ चाहिए होता है, न भोगना होता है। प्रेम तब है जब बिना वजह, निःस्वार्थ, यूँ ही जुड़ जाते हो। अपने में जो पूरा है — सिर्फ वही प्रेम में स्वस्थ संबंध बना सकता है।
Should You Trust Your Feelings?
Should You Trust Your Feelings?
7 min
When feelings surge in your mind and body, be careful and pay attention! This is the moment when you lose the plot. The initial surge of energy that a feeling has is beyond your consciousness and control; it is determined mostly by your conditioning and partly by your genes. So, don't add conscious energy to the unconscious uprising. The most important mark of a wise man is that he does not live by feelings.
सच्चे प्रेम की पहचान
सच्चे प्रेम की पहचान
28 min
सच्चा प्रेमी ज़िंदगी में चुनौती बनकर आता है। वो आपको बेहतर होते देखना चाहेगा—बढ़ते, बदलते। उससे असुविधा होगी, मन में आएगा कि ये ज़िंदगी में आया ही क्यों? ये परेशान करता है, मेहनत करवाता है, चुनौती देता है। पर हम तो उन प्रेमियों को ढूंढ़ते हैं, जो बस सुख दें, झूठी तसल्ली दें, तारीफ़ें करें। तो परखना है कि प्रेम सच्चा है या नहीं—तो देखो, वो तुम्हें दे क्या रहा है? सुख या होश?
क्या लव एट फर्स्ट साइट होता है?
क्या लव एट फर्स्ट साइट होता है?
32 min
लव एट फर्स्ट साइट सबसे सशक्त प्रमाण होता है कि तुम गिरने जा रहे हो। इसीलिए उसके बाद होता है फॉलिंग इन लव। वास्तविक प्रेम होने में बहुत समय लगता है। सही व्यक्ति जब ज़िंदगी में आता है, तो कुछ भीतर चिढ़ेगा, और कुछ भीतर धीरे-धीरे प्रेम में पड़ता जाएगा। तुम अपने आप को बेहतर बनाने की कोशिश करते रहो। एक दिन पाओगे, सही दिशा में चलता हुआ कोई हमसफ़र मिल गया है।
श्रीकृष्ण सोलह हज़ार रानियों के साथ एक साथ कैसे?
श्रीकृष्ण सोलह हज़ार रानियों के साथ एक साथ कैसे?
16 min
सबसे पहले तो ये जो सोलह हज़ार का आँकड़ा है, ये प्रतीक है। ये प्रतीक है अनंतता का। सोलह हज़ार माने बहुत, बहुत सारे। गिने ना जा सकें, इतने। और फिर कहा जा रहा है कि ये जो पूरी अनंतता है, इस पूरे को श्रीकृष्ण उपलब्ध हैं और पूरे-के-पूरे उपलब्ध हैं। रानियों की श्रद्धा है। और श्रीकृष्ण ही ऐसे हैं, मात्र श्रीकृष्ण ही, जिनमें सैंकड़ों, हज़ारों, लाखों लोग पूर्ण श्रद्धा रख सकें। कहानी हमसे कहती है कि तुम यदि सत्य के प्रेमी हो, तो सत्य तुम्हें पूरा-का-पूरा उपलब्ध हो जाएगा। ये बात बस तुम्हारे और सत्य के बीच की है। इसमें कोई और शामिल है नहीं।
(Gita-28) The Most Misunderstood Verse of the Bhagavad Gita
(Gita-28) The Most Misunderstood Verse of the Bhagavad Gita
69 min
Obsession with the future is a compulsion with the ego. The only way to be free of the future is to be free of yourself. Be free of yourself and flow like the wind. But will the right things happen to me then? Can you assure me? Is there a guarantee? So desireless, motiveless action and faith, they always go together. Somebody who's asking for guarantees, somebody who is craving for assurances, he is unfit to even touch the Bhagavad Gita. This is only for the courageous ones.
Desire or Surrender? The Hidden Truth of Karma!
Desire or Surrender? The Hidden Truth of Karma!
7 min
Once you know where you are chained, you already have the right desire. The right desire is to break the chain. It begins with an observation, and admission of your own state. The right desire is a desire to be free, to be at ease, to be able to flow. To be without fear, that is the right desire. But when we say the right desire is about being fearless, first of all you have to figure out where your fears are.
हम अपने काम से प्यार क्यों नहीं करते?
हम अपने काम से प्यार क्यों नहीं करते?
12 min
प्रेम ही ज़िंदगी को अर्थ, आज़ादी और सच्चाई देता है, लेकिन हमारे जीवन में किसी भी क्षेत्र में प्रेम नहीं होता। जब मामला Loveless होता है, तो हर आदमी भागना चाहता है—अपने काम से, रिश्तों से और खुद से भी। हमें खुद से भी प्यार नहीं है। हमारा समाज और अर्थव्यवस्था ऐसी नौकरियां देती ही नहीं, जिनसे प्यार हो सके। न कंपनियां प्यार के कारण बनती हैं, न जॉब्स ऐसी होती हैं कि कोई उनसे चाहे भी तो प्रेम कर सके। हम काम से कैसे प्रेम कर लेंगे?
सौ बार गिरे हो, तो भी याद रहे: स्वभाव अपना उड़ान है, घर अपना आसमान है
सौ बार गिरे हो, तो भी याद रहे: स्वभाव अपना उड़ान है, घर अपना आसमान है
51 min
टूटफूट ही वो जरिया है जो आपको बताएगा कि आपके पास कुछ ऐसा भी है जो टूट नहीं सकता। जब सब बिखरा पड़ा होगा उसके बीच ही अचानक आपको पता चलेगा, अरे एक ऐसी चीज है जो नहीं बिखरी बड़ा मजा आएगा। उसके बाद यही लगेगा कि इसको और बार-बार पटको और जितना बार-बार पटको और जितना यह नहीं टूटता उतना इसमें विश्वास और गहरा होता जाता है और आदमी और खुलकर खेलता है। यह सबके पास है। यह सबके पास है। हमें इसका पता इसीलिए नहीं है क्योंकि हमने इसको कभी आजमाया ही नहीं।
वीडियो गेम खेलने वाला कैरियर बना लें
वीडियो गेम खेलने वाला कैरियर बना लें
28 min
हर वो चीज़ जो हमारे भीतर के "जानवर" को अच्छी लगती है, वह तुरंत प्रसिद्ध हो जाती है। आप लोकप्रिय होना चाहते हो? कोई बहुत अच्छा या ऊँचा काम मत करना—कोई एकदम घटिया काम कर दो, तुरंत पॉपुलर हो जाओगे। कोई ऐसा काम करो जो एकदम ही गिरे हुए तल का हो। ऊँचा काम करोगे, तो लोगों को समझ में नहीं आएगा, दिखाई भी नहीं देगा और लोग डर भी जाएँगे—क्योंकि ऊँचाई खतरा होती है और ऊँचाई कुर्बानी मांगती है। कौन ऊँचा चढ़े? श्रम भी बहुत लगता है। तो बिल्कुल, कोई एकदम साधारण या साधारण से भी नीचे का कुछ करने लगो, लोग आकर्षित हो जाते हैं आपकी ओर।
क्या श्रृंगार करना गलत है?
क्या श्रृंगार करना गलत है?
40 min
बेवजह की मान्यता है कि संसारी वह, जो भोगता है, और आध्यात्मिक आदमी वह, जो त्यागता है। अगर मामला राम और मुक्ति का हो, तो आध्यात्मिक व्यक्ति संसारी से ज्यादा संसारी हो सकता है। शृंगार का अर्थ है स्वयं को और आकर्षक बनाना, बढ़ाना—ऐसा जो तुम्हारे बंधन काट दे। जो करना हो, सब करेंगे—घूमना-फिरना, राजनीति, ज्ञान इकट्ठा करना, कुछ भी हो; कसौटी बस एक है—‘राम’। जो राम से मिला दे, वही शृंगार और वही प्रेम।
प्रेम, विवाह, और अध्यात्म
प्रेम, विवाह, और अध्यात्म
8 min
प्रेम तो जीवन में उतरता ही तब है, जब उसका (परमतत्व) आगमन होता है, अगर वो नहीं आया जीवन में तो तुम किस प्रेम की बात कर रहे हो? तुम्हारा सिर अभी अगर झुका ही नहीं उस पारलौकिक सत्ता के सामने, तुम्हारा सिर अकड़ा ही हुआ है, तो तुम किस प्रेम की बात कर रहे हो? तुमने प्रेम जाना ही नहीं है, झूठ बोल रहे हो अपने आप से भी कि तुम्हें प्रेम है, प्रेम है। होगा तुम्हारा बीस साल, पचास साल का रिश्ता, कोई प्रेम नहीं है। प्रेम अध्यात्म की अनुपस्थिति में हो ही नहीं सकता। जिसको अध्यात्म से समस्या है, उसको प्रेम से समस्या है।
प्रेम के बदले नफ़रत क्यों मिलती है?
प्रेम के बदले नफ़रत क्यों मिलती है?
4 min
आपको क्या करना था? प्रेम। और आपने प्रेम कर लिया, अब तकलीफ़ क्या है? आपको सिर्फ़ प्रेम ही भर नहीं करना था, कामना कुछ और भी थी। क्या कामना थी? दूसरे से उत्तर भी मिले, कुछ लाभ भी हो, कुछ मान-सम्मान हो। दूसरा भी नफ़रत इसलिए करता हो क्योंकि उसको पता है कि हम सिर्फ़ प्रेम नहीं कर रहे हैं, प्रेम में उम्मीद छुपी हुई है। प्रेम बड़ी स्वतंत्रता की बात है—'तुझे हक़ है, तू जो करना चाहे, करे।' प्यार देने की चीज़ तो हो सकती है, लेने की बिल्कुल नहीं।
Is Ignoring Grief the Key to Wisdom?
Is Ignoring Grief the Key to Wisdom?
10 min
No wise man will ever take your problem seriously, believe me. For the wise one, all your problems are bad jokes—not even worthy of a sound laughter. But then he says, "You know, I can see through. You cannot. So, I'll give up my right to laugh at you. I'll instead pretend to be serious." "Yes, yes, yes, of course! We have a problem!" He says, "You know, there was a time I was so much like you. These same things were big issues even to me. But I know they can be outgrown.
कमज़ोर की मदद कैसे करें?
कमज़ोर की मदद कैसे करें?
32 min
मदद का एकमात्र अर्थ होता है चेतना को उसके अंजाम तक ले जाना। इसके अलावा मदद का कोई अर्थ नहीं होता। कमज़ोर की सेवा करने का अगर मतलब यह है कि कमज़ोर, कमज़ोर बना रहे, तो यह सेवा नहीं, साज़िश है। कमज़ोर की हमेशा मदद ही नहीं करनी होती, संहार भी बहुत ज़रूरी होता है। दुर्बल की तो एक ही सहायता हो सकती है कि उसको दुर्बल रहने ही मत दो। पर यदि कमज़ोरी ताकत बनना ही नहीं चाहती, तो उसका संहार करना भी सीखो।
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 9
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 9
53 min

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धन: | तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्ग: समाचर ||3. 9||

अन्वय: यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र (यज्ञ के लिए किए कर्म के अलावा अन्य कर्म में) लोकोऽयं (लगा हुआ) कर्मबन्धनः (कर्मों के बन्धन में फँसता है) कौन्तेय (हे अर्जुन) मुक्तसङ्गः (आसक्ति छोड़कर) तत्-अर्थ (यज्ञ के लिए) कर्म (कर्म) समाचर (करो)

काव्यात्मक अर्थ: बाँधते

Such short attention spans?
Such short attention spans?
5 min
How is it surprising then that nothing really appeals to you, that you don't find anything worthy of—let's come to that word—love? And except for love, what is it that can hold you for long? Greed, attractions, good foods, good clothes, nice odor, prestige, excitement—these are small things that will not be able to keep you for long. However, to compensate for their lack of quality, they proliferate in quantity.
Krishna's Grace vs. Arjuna's Willingness—Which Matters More?
Krishna's Grace vs. Arjuna's Willingness—Which Matters More?
8 min
The question should be which one is relevant to you? What will you do by enquiring about Shri Krishna’s grace? That’s Shri Krishna’s prerogative, right? Shri Krishna will take care of his grace if he has to offer grace. Whatever he has to do, we do not know what grace is. We do not know who Shri Krishna is. How does it concern us to go into matters of his grace? What is it that’s in your control? Your own preparation, your own willingness. So, you take care of that.
ईमानदार रहते हुए अमीर हुआ जा सकता है?
ईमानदार रहते हुए अमीर हुआ जा सकता है?
13 min
हम चाहते हैं कि दुनिया की टॉप कंपनी का नाम, ब्रांड, उसकी पर्क्स-प्रिविलेजेस भी मिल जाए, और साथ ही बिल्कुल साफ़ काम करने की संतुष्टि भी मिल जाए। अगर आपको गरिमा के साथ सही काम करना है, तो फिर इस पूरी व्यवस्था से बाहर निकलकर अपने लिए एक अलग रास्ता बनाना पड़ेगा, नहीं तो आपको पाखंडी होना पड़ेगा। जैसे बड़ी कंपनीज़ पहले पॉल्यूशन करते हैं और फिर CSR का पाखंड।
How Is The Bhagavad Gita Relevant Today?
How Is The Bhagavad Gita Relevant Today?
44 min
The Gita is useful because its setting is extremely relatable. Just like us, Arjuna does not know himself—he's a victim of multiple identities and all kinds of conditioning. Therefore, the Gita is about letting Arjuna know who he is, and this illumination enables him to do what he must. So, first of all, see that you are Arjuna. Then, step by step, verse by verse, there will be some resolution.
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 11
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 11
25 min

देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः। परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ।।

~ श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 11

अर्थ: यज्ञ से देवताओं को आगे बढ़ाओ, तो वो दैवत्य तुम्हारी उन्नति करेंगे। इस तरह परस्पर (आपस में) उन्नति करते हुए तुम परम श्रेय प्राप्त करते हो।

काव्यात्मक अर्थ: *यज्ञ से देवत्व बढ़े देवत्व से

Quiet the Mind to Receive Krishna's Wisdom
Quiet the Mind to Receive Krishna's Wisdom
5 min
No, no, you don't have to be empty of anything. You just have to be empty of the choice to use anything in your defense. You are born with ammunition; you don't have to keep the ammunition aside. Let the gun be there with you—just don't fire at the teacher. That's all that Shri Krishna is saying. You don't have to empty the gun. Keep it loaded; it's all right.
(Gita-27) Krishna's Warning to Arjuna: Everyone is Making This Mistake
(Gita-27) Krishna's Warning to Arjuna: Everyone is Making This Mistake
39 min
Who are the people who never understand Shri Krishna? The ones whose minds are full of Karmakand. If your mind is full of Karmakand, Shri Krishna himself has very clearly said, you will never understand the Gita because Karma Kand deals with desire, because whatever you do, you do for the sake of desire.
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 10
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 10
70 min

सहयज्ञाः प्रजाः सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापतिः । अनेन प्रसविष्यध्वमेषः योऽस्त्विष्टकामधुक् ॥ १० ॥

अर्थ: सृष्टि के आरंभ में ही ब्रह्मा ने कहा था कि यज्ञ के द्वारा ही वृद्धि को प्राप्त करोगे। यह यज्ञ ही तुम लोगों को अभीष्ट फल देगा और कामधेनुतुल्य सर्वाभीष्टप्रद होगा।

काव्यात्मक अर्थ:

सगुण हो बंधन चुना

Why Misinterpretations of the Gita Still Influence Millions
Why Misinterpretations of the Gita Still Influence Millions
7 min
A mind full of desires gets blind. It comes to supremely stupid conclusions, and it refuses to see or acknowledge facts that disrupt or disprove its biases. It's just that the fulfillment of the desire stands zero chance of your fulfillment. But there is definitely some chance that the desire can get fulfilled. And if you are stupid enough and laborious enough, the chance of desire fulfillment can also multiply.
ज्ञान वगैरह से पहले फिजिकली और मेंटली स्ट्रांग बनना पड़ेगा?
ज्ञान वगैरह से पहले फिजिकली और मेंटली स्ट्रांग बनना पड़ेगा?
23 min
हमने ज्ञान को बड़ी एक परालौकिक चीज़ बना दिया है की ज्ञान माने आसमानों पर क्या हो रहा है। वही ज्ञान है। कभी मैंने आपसे कहा कि उपनिषद् साफ-साफ बताते हैं। विद्या और अविद्या दोनों चाहिए। और आसमानों की बात तो बाद में हो जाएगी। उपनिषद् कहते हैं कि जो ज़मीन की बात नहीं समझता, वो अगर आसमानों की बात करे तो दो चांटा लगाओ उसको।
क्या भावनाएँ बंधन हैं?
क्या भावनाएँ बंधन हैं?
30 min
पुरुषों में महत्त्वाकांक्षा और महिलाओं में भावना, उन्हें कहीं का नहीं छोड़ते। समाज, संस्कार, लोकधर्म और देह, ये सब मिलकर चाहते हैं कि आप अपना पूरा जीवन सिर्फ़ देह के कामों में निकाल दो, कोई भी ऊँचा काम न करो। तुम्हारी भावनाएँ बंधन हैं, गहना मत माना करो उन्हें। संघर्ष करना सीखो, कोई भावनात्मक मजबूरी नहीं होती। 'मैं क्या करूँ, मेरे आँसू निकल जाते हैं।' तो फिर, ‘आँसुओं के साथ सही काम करो।’ बात इसमें नहीं है कि भावना उठी, बात इसमें है कि आपने भावना को समर्थन दे दिया क्या?
Why Did Sufi Poets Like Kabir Emphasize Love in Bhakti?
Why Did Sufi Poets Like Kabir Emphasize Love in Bhakti?
5 min
The saints don't display affection at all. Affection actually means disease. Affection means disease. The saints have no affection. The saints have love and love has nothing to do with affection. Affection and affliction go together. It is not affection that characterizes a saint. It is love that characterizes him. Affection and dryness, they go together. Together always. And affection and love, they never go together. So you have to be very clear about what accompanies what.
(Gita-8) The Self and the Joy of Immortality
(Gita-8) The Self and the Joy of Immortality
37 min
If all that the Ego wants is liberation from itself, which means coming to see its own non-existence, then the only way to see its non-existence is by paying attention to itself. The more the Ego pays attention to itself, it sees that it does not exist. The more the Ego remains attached to this and that, all the sensory inputs, the Ego feels that is real and this is real.
Redefine Love This Valentine’s Day
Redefine Love This Valentine’s Day
9 min
The purest definition of love is when the mind is very, very joyful, and that joy shows up in all your relationships. Love is your internal joy spilling over. Love is not about trying to find love. Love is about letting yourself be absolutely free! That is it! Love is not object-based. Love is not about - 'I love this person,' or 'I love this work,' or 'I love this book.' Love is your inner state of mind.
श्रीकृष्ण कब अवतरित होंगे?
श्रीकृष्ण कब अवतरित होंगे?
7 min
जब-जब तुम सच्चाई की ओर नहीं बढ़ते, तब-तब जीवन दुख, दरिद्रता, कष्ट, रोग और बेचैनियों से भर जाता है। अधर्म अपने चरम पर चढ़ जाता है, और विवश होकर तुम्हें आँखें खोलनी पड़ती हैं। तब मानना पड़ता है कि तुम्हारी राह ग़लत थी, और ग़लत राह को छोड़कर तुम्हें सत्य की ओर मुड़ना पड़ता है। अतः जब तुम अंधेरे को पीठ दिखाते हो, तो श्रीकृष्ण को अपने समक्ष पाते हो। यही श्रीकृष्ण का अवतरण है।
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 8
भगवद गीता - कर्मयोग: अध्याय 3, श्लोक 8
52 min

श्लोक: नियतं कुरु कर्म, त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः। शरीरयात्रापि च ते न, प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥3.8॥

काव्यात्मक अर्थ:

कर्म के परि त्याग से, श्रेष्ठ है नि यत कर्म । कर्मयात्रा पर चल पड़े, जि स क्षण लि या जीव जन्म॥

आचार्य जी: श्रीमद्भगवद्गीता गीता, तीसरा अध्याय कर्म का विषय है, पिछले सत्र में

उसे सौंप दो, उसे संभालने दो, तुम रास्ते से हटो
उसे सौंप दो, उसे संभालने दो, तुम रास्ते से हटो
47 min
यह आदमी जो अपने ऊपर हंसना शुरू करता है, यह अकर्ता हो जाता है। नॉन-डूअर हो जाता है। नॉन-डूअर का मतलब यह नहीं कि अब नॉन-डूइंग हो गई। डूइंग तो बहुत होगी! ज़बरदस्त होगी! घनघोर होगी! कल्याणप्रद होगी! ऑसपिसियस होगी! डूइंग होगी, डूअर नहीं होगा। पर कर्ता नहीं होगा। और जो यह कर्ता-हीन कर्म होता है, "द डीड विदाउट डूअर", इसके क्या कहने! यह फिर अवतारों की लीला समान हो जाता है। यह जीवन को खेल बना देता है। यह पृथ्वी पर स्वर्ग उतार देता है। यह बहुत पुराना जो कैदी है, उसे आकाश की आज़ादी दे देता है।
What is 'Nature Worship' in Vedas?
What is 'Nature Worship' in Vedas?
14 min
You cannot worship something with the intent of obtaining favors—that's exploitation. Worshiping a cow while asking for milk is not worship. Worship is when you do not use any dairy product and yet respect the cow. The common man sees everything as an object for consumption. True nature worship is desireless—not based on consumption, with no one left to desire.
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय २, श्लोक 15-24
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय २, श्लोक 15-24
45 min
मनुष्य की देह होने भर से आपको कोई विशेषाधिकार नहीं मिल जाता, यहाँ तक कि आपको जीवित कहलाने का अधिकार भी नहीं मिल जाता। सम्मान इत्यादि का अधिकार तो बहुत दूर की बात है, ये अधिकार भी नहीं मिलेगा कि कहा जाए कि ज़िन्दा हो।
Is Pop Religion Compatible With the Gita?
Is Pop Religion Compatible With the Gita?
38 min
The center of the Gita is 'Nishkamta'—desireless action stemming from self-knowledge. Whereas popular religion is all about the fulfillment of desire. We go to a supernatural power and beg him to grant our desires. That is popular religion. You can either have the Gita or the entirety of religion as practiced in common culture. They are totally incompatible.
प्रेम और मोह में ये फर्क है
प्रेम और मोह में ये फर्क है
12 min
जहाँ प्रेम है, वहाँ मोह हो नहीं सकता, और जहाँ मोह है, वहाँ प्रेम की कोई जगह नहीं है। मोह में सुविधा है, सम्मान है। प्रेम तो सब तोड़-ताड़ देता है—पुराने ढर्रें, पुरानी दीवारें, सुविधाएँ, आपका आतंरिक ढाँचा, और जो सामाजिक सम्मान मिलता है। प्रेम सब तोड़ देता है। प्रेम इतनी ऊँची चीज़ है कि आप उसमें पुरानी व्यवस्था का विरोध नहीं करते, पुरानी व्यवस्था को भूल जाते हो। प्रेम और मोह दो अलग-अलग दुनियाओं के हैं।
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 1-19
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 1-19
49 min

श्रीमद् भगवत गीता प्रथम अध्याय अर्जुन विषाद योग

धृतराष्ट्र उवाच | धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः | मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1.1 ||

धृतराष्ट्र ने कहा, “हे संजय! धर्मक्षेत्र, कुरुक्षेत्र में युद्ध करने के लिए एकत्रित हुए मेरे पुत्रों और पांडवों ने क्या किया?”

आचार्य प्रशांत: जिज्ञासा से आरंभ हो

भगवद गीता – अध्याय 2 (सांख्य योग), श्लोक 5-11
भगवद गीता – अध्याय 2 (सांख्य योग), श्लोक 5-11
22 min

गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके। हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान्तधिरप्रदिग्धान् ।।५।।

“मैं तो महानुभाव गुरुओं को न मारकर, इस लोक में भिक्षान्न भोजन करना कल्याणकर मानता हूँ, क्योंकि गुरुओं का वध करके मैं रक्त से सने हुए अर्थ और काम रूपी भोगों को ही तो भोगूँगा।“

~ श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक