सावधान! खतरा बाहर से ज़्यादा भीतर से है || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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सावधान! खतरा बाहर से ज़्यादा भीतर से है || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: तो ले देकर एक नए तरह के अध्यात्म और एक नए तरीके के धर्म का निर्माण किया जा रहा है चोरी-छुपे। एक ऐसे अध्यात्म का निर्माण किया जा रहा है जिसमें धर्मग्रंथों के लिए कोई स्थान नहीं है। जिसकी कोई आत्मा ही नहीं है। उसमें किस चीज़ के लिए स्थान है? उसमें स्थान है 'लोकबुद्धि' के लिए, जिसको आप कहते हैं साधारण बुद्धि, कॉमनसेंस। उसमें वो बातें चलती हैं जो सब जनसामान्य को पता हैं। बस जो बातें जनसामान्य में पहले ही प्रचलन में है, उन्हीं बातों को थोड़ा और सुधार करके बोल दो तुम गुरु कहला जाओगे। जिस केंद्र से सब जनता पहले ही संचालित हो रही है तुम भी उसी केंद्र पर रहो, अगर तुम इस नए धर्म के गुरु हो या इस नए धर्म के प्रवक्ता हो तो तुम भी उसी केंद्र पर रहो जिस केंद्र पर जनता पहले ही बैठी हुई है बस बातें थोड़ी-सी साफ़-सुथरी भाषा में कर दो। ख़बरदार कोई ऐसी बात मत बोलना जो किसी और केंद्र से आती हो! जो बात ही दूर की हो! उदाहरण के लिए- अगर तुम किसी कंपनी के कर्मचारियों, एंप्लाइज़ के साथ बैठे हो तो उन्हें ये सिखाओ कि कैसे उन्हें अपनी उत्पादकता बढ़ानी है, प्रोडक्टिविटी !

'धर्म' का ये काम नहीं होता! न धर्मगुरु का ये काम हो सकता है कि वो इस बात पर सत्र ले, प्रवचन दे कि "कंपनी के कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी कैसे बढ़े?" धर्म का काम है- 'मूलभूत सवाल उठाना'। मूलभूत सवाल ये होगा कि, "तुम यहाँ काम कर ही क्यों रहे हो? क्या तुम्हें इस कंपनी में होना भी चाहिए?" लेकिन ये जो नया धर्म प्रचलित हो रहा है यह भोग का धर्म है! यह गहरी ईमानदार खूंखार जिज्ञासा का धर्म नहीं है। इसमें शेर की दहाड़ नहीं है, इसमें तो सियार का अवसर-वाद है, ऑपरचुनिज़्म !

बात समझ में आ रही है?

इस समय पर ख़ासतौर पर सनातन धर्म के लिए बहुत आवश्यक है कि उसे इस नए धर्म से बचाया जाए, जो बोलता है कि, "हमें कोई ग्रंथ वगैरह स्वीकार नहीं।" किसी भूल में मत रहिएगा जो लोग बड़ा आक्रोश करते हैं और बड़ा प्रदर्शन करते हैं और बड़ी सक्रियता दिखाते हैं कि हिंदू धर्म खतरे में है। वो गलतफ़हमी में है, वो सोच रहे हैं हिंदू धर्म को खतरा अन्य धर्मों से है। नहीं साहब! सनातन धर्म को खतरा अन्य धर्मों से नहीं है, सनातन धर्म को इस वक्त सबसे बड़ा खतरा इन झूठे धर्मगुरुओं से है। जो भीतर-भीतर हैं और सनातन धर्म की नींव खोदे दे रहे हैं। हम गलत दुश्मन पर निशाना साध रहे हैं। जो हिंदू हित के पैरोकार हैं, वो सोचते हैं कि इस्लाम दुश्मन है सनातन धर्म का या उनको लगता है कि ईसाईयत दुश्मन बनी बैठी है। अरे इस्लाम-ईसाईयत तो दोनों खुद ही खतरे में है। जितने भी मूल, पुराने धर्म थे या मज़हब वो सब खतरे में हैं। वो एक दूसरे को तो बहुत ज़्यादा खतरा दे ही नहीं सकते। सनातन धर्म पर ये खतरा खासतौर से मंडरा रहा है। सबसे ज़्यादा भीषण खतरा सनातन धर्म पर है, क्यों? क्योंकि सनातन धर्म में सहिष्णुता की बड़ी परंपरा रही है, टॉलरेंस ! यहाँ आकर कोई भी अपनी बात कह सकता है, कुछ भी कहा जा सकता है, और कोई जाँच पड़ताल नहीं होती, कोई ऐसी संस्था, कोई व्यवस्था कोई इंस्टिट्यूशन नहीं है जो जाँचे कि, "अगर कोई गुरु बनने का दावा कर रहा है तो उसमें ज्ञान कितना है? उसने स्वाध्याय कितना करा है?" ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है। तो कोई भी कुछ भी कह सकता है।

और बहुत सारे इस वक्त पर गुरु और प्रवचन कर्ता हैं जिनका काम ही ये बताना है कि किताबों को छोड़ो और हमारी सुनो और कई तो ऐसे हैं कि पुरानी किताबों का अर्थ ही उल्टा करके उनमें अद्भुत नए-नए तरह के अर्थ बता रहे हैं। इनसे असली खतरा है सनातन धर्म को। अगर आपको विरोध करना ही है तो दूसरे धर्मों का विरोध करना छोड़ो हिंदू धर्म को पहले इन भितर-घातियों से बचाओ। जो भी आपको व्यक्ति मिले जो कहे, "मैं फलाने धर्म का अनुयायी हूँ लेकिन अपने धर्म की मैंने कोई किताब वगैरह नहीं पढ़ी है।" समझ लेना ये व्यक्ति उस धर्म का अनुयायी ही नहीं है। ये वास्तव में किसी नए अन्य धर्म का मानने वाला है। उस नए धर्म को तुम सीधे-सीधे नाम दे सकते हो - कंज़्मप्शनिज़्म। उस नए धर्म का क्या नाम है? भोग धर्म, कंज़्मप्शनिज़्म या इगोइज़म , अहंकार धर्म या हैप्पीज़्म , सुख धर्म, प्लेज़रिज़्म। ये है नया धर्म जो दुनिया के सब धर्मों, पंथों, मज़हबों को खाये जा रहा है। और इस धर्म के जो नए-नए गुरु निकल रहे हैं वो साफ़ बताते नहीं कि वो वास्तव में कंज़्मप्शनिज़्म के पुजारी हैं और कंज़्मप्शनिज़्म के प्रचारक हैं। वो कहते हैं, "नहीं हम तो सनातन धर्मी ही हैं" और वो, मैंने कहा तो, छवियाँ, मूर्तियाँ, प्रतीक, भाषा ये भी लेते सनातन धर्म से ही हैं। भाषा सनातन धर्म की होगी, मूर्तियाँ सनातन धर्म की होंगी लेकिन बात बिलकुल सनातन धर्म के विपरीत होगी और इसके लिए फ़िर उनकी मजबूरी बन जाती है कि वो सबसे कहें कि किताबें मत पढ़ लेना क्योंकि तुमने किताब पढ़ी नहीं कि तुम जान जाओगे कि तुम भी गलत ज़िन्दगी जी रहे हो और मैं तुम्हें गलत सीख दे रहा हूँ।

इस समय पर अगर संसार को बचाना है और संसार तमाम तरह की आपदाओं से जूझ रहा है। ठीक है इस वक्त पर जो तात्कालिक आपदा है वो कोविड बीमारी की है। लेकिन वो आपदा अगर टल भी जाए तो जो लंबा और गहन गंभीर संकट है 'क्लाइमेट चेंज ' का वो तो सर पर लटकती तलवार है ही। अगर दुनिया को बचाना है तमाम तरह के संकटों से तो उसके लिए धर्म की पुनरसंस्थापना बहुत ज़रूरी है। धर्म को पुनर्जीवित करना बहुत ज़रूरी है और धर्म को अगर पुनर्जीवित करना है तो धार्मिक ग्रंथों को आम आदमी की ज़िंदगी में वापस लाना बहुत ज़रूरी है।

आपकी संस्था, अपने सीमित संसाधनों के साथ यही काम करने की कोशिश कर रही है। आम आदमी की ज़िंदगी में ग्रंथों को वापस लाना है। जो बात उपनिषदों में और गीताओं में कही गई है वो बात 'कालातीत' है उस बात को जन-जन तक पहुँचाना है क्योंकि अगर वो बात आपकी जिंदगी में नहीं है तो, आपकी जिंदगी जानवर समान है। यही काम संस्था कर रही है बस अभी हाथों की कमी है और संसाधनों की कमी है। हाथ मिल जाएँ, संसाधन मिल जाएँ तो देखिए कैसे एक-एक घर तक जितना भी अनुपम 'बोध साहित्य' है उसको हम पहुँचाएँगे। जनजागृति लाएँगे और लोगों को वो काबिलियत देंगे कि वो खुद समझ पाएँ कि कैसे जीना है और कैसे नहीं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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