वीगनिज़्म कोई सिद्धांत नहीं, आत्मा की बात है || आचार्य प्रशांत, श्रीमद्भगवद्गीता पर (2022)

Acharya Prashant

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वीगनिज़्म कोई सिद्धांत नहीं, आत्मा की बात है || आचार्य प्रशांत, श्रीमद्भगवद्गीता पर (2022)

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, मेरा प्रश्न ये था कि स्पिरिचुअल वीगनिज़्म क्या होता है?

आचार्य प्रशांत: ये तो प्रश्न है ही नहीं आपका।

प्र: ऐक्चुअली मैं वीगनिज़्म में, एक्टिविज़्म में काफ़ी दिलचस्पी रखती हूँ आजकल, और अहमदाबाद के काफ़ी ग्रुप्स में मैं इन्वॉल्व हो गई हूँ। और एक बुकलेट डिज़ाइन कर रही थी, तो उसमें गाय के बारे में पूरा, गाय की पूरी लाइफ़ के बारे में पूरा था। और उसका जो लास्ट पेज था, उसमें गाय मर जाती है, उसको काट देते हैं, ऐसा फ़ोटो ढूँढ रही थी मैं नेट पर। तो फ़ोटो बहुत देर तक ढूँढ रही थी, मिला नहीं।

फिर उसके बाद मैंने यूट्यूब पर वीडियोज़ देखे उसके बारे में, और फिर मैं सो गई और मेरे को सपने में आया कि मेरे सामने एक गाय कट रही है और मैं उसकी फ़ोटो खींच रही हूँ। तो मैं उठ कर बहुत रोई, और मेरे को लगा कि इतनी हिंसा जो है, वीगनिज़्म उससे एक तरह का एक एंटरटेनमेंट नहीं बोल सकती, लेकिन वो एक एनर्जी देता है। तो यहाँ आकर मेरे को दो दिन इतना अच्छा लगा कि शांति से बातें हो रही थीं, और मेरे को लगा मेरा पूरा वीगनिज़्म ... उसमें स्पिरिचुअलिटी कैसे लाऊँ?

आचार्य: वीगनिज़्म अगर असली है, तो उसका आधार आध्यात्मिक ही होगा, और सिर्फ़ तभी वो टिक सकता है। अगर वीगनिज़्म सिर्फ़ एक विचार है, एक आइडियोलॉजी है, तो उसमें बहुत दम नहीं होगा, बहुत दूर तक नहीं जाएगा, और व्यापक नहीं होगा; वो जीवन के बस एक हिस्से में सीमित रह जाएगा, आपके पूरे जीवन को एकरस नहीं कर पाएगा।

वीगनिज़्म माने क्या? बस इतना ही कि जीने के लिए किसी जानवर पर अत्याचार करना ज़रूरी नहीं है, इतनी-सी बात को वीगनिज़्म कहते हैं। ठीक? ये कोई पश्चिमी अवधारणा नहीं है, ये तो वेदों की करुणा है सीधे-सीधे। जो वेदान्त थोड़ा भी जान गया, वो किसी भी जीव के प्रति अब हिंसा का भाव नहीं रख सकता। तो वीगनिज़्म कोई आज की बात नहीं है, भले ही आज उसको एक रूप में मान्यता मिल रही हो, चलन मिल रहा हो, पर वो चीज़ तो बहुत पुरानी है न! आत्मा से उठने वाली चीज़ है वो, तो आत्मा जितनी ही पुरानी है।

तो बस इतना-सा – ‘ये शरीर है, इस शरीर का उपयोग मुझे करना है किसी भले और ऊँचे काम के लिए, इस शरीर को चलाने के लिए किसी दूसरे के शरीर को दुख नहीं पहुँचाऊँगा मैं’ – बस ये वीगनिज़्म है। ‘मैं इस शरीर के पोषण के लिए किसी दूसरे के शरीर से न चमड़ा लूँगा, न दूध लूँगा, न दही लूँगा, माँस और खून तो लेने का सवाल ही क्या है! और सिर्फ़ भोजन की बात नहीं है; मैं घोड़े पर नहीं बैठूँगा, मैं कहीं पर इस तरह का काम होते देखूँगा कि बैलों के साथ अत्याचार हो रहा है, गधे पर ईंटें लादी जा रही हैं, मैं इस चीज़ का भी समर्थन नहीं करूँगा।‘

मैं घर ऐसा बनवाऊँगा कि उसमें चिड़िया कहीं घोंसला भी बना सके, और चिड़िया ने अगर घोंसला बना दिया है मेरे घर में तो मैं वो घोंसला हटा नहीं दूँगा। अगर बहुत ज़रूरत नहीं है, तो मैं कम-से-कम अपने बाग के पौधों पर जो थोड़े-बहुत कीट वगैरह हो जाते हैं, उनको मारूँगा नहीं। अगर वो कीट ऐसे ही हो गए हैं कि वो सब पौधों को चट किए जा रहे हैं, तो फिर तो वो भी एक प्रकार की हिंसा है, तब भले ही कुछ... पर किसी भी जीवन को क्षति पहुँचाने का मेरा कभी कोई इरादा नहीं रहेगा। मेरे भोजन में भी जो सर्वथा न्यूनतम हिंसा है, उतनी रहेगी।

देखिए हम जिस तरीके की अपनी शारीरिक संरचना लिए हुए हैं, हम खाते तो पेड़-पौधे ही हैं, तो उसमें भी एक तरह की हिंसा तो होती ही है। पर जितनी न्यूनतम हिंसा हो सकती है करूँगा, न्यूनतम-से-न्यूनतम हिंसा। फूल-माला भी पहनना क्यों ज़रूरी है, क्यों फूल तोड़े ले रहे हो? ठीक है, फूल दो ही दिन का है, पर दो दिन उसको जी लेने दो, क्यों उसकी जान ले रहे हो? ये फूल-माला पहनने में क्या है!

ये कोई सिद्धांत नहीं है, विचारधारा नहीं है, ये करुणा से ओत-प्रोत एक रवैया है जीवन के लिए; खाने-भर की तो बात बिलकुल भी नहीं है, मात्र पशुओं से सम्बन्धित बात भी नहीं है। इसको आप सीधे-सीधे कह सकते हैं – ‘करुणामय जीवन, कंपैशनेट लिविंग ।' बस।

वीगनिज़्म तो थोड़ा ज़्यादा फैशनेबल नाम है बस। और वीगनिज़्म कोई बहुत अच्छा नाम भी नहीं है, क्योंकि ऐसा लगता है जैसे उसका सम्बन्ध सिर्फ़ आहार से है, डाइट डाइट तो एक बात है। वो (वीगनिज़्म) आत्मा से उठने वाली चीज़ है और उसकी परिधि में पूरा जीवन आता है, आहार-भर नहीं; आहार उसका एक हिस्सा है छोटा, आहार उसका हिस्सा है, उसमें सबकुछ आ जाएगा।

उदाहरण के लिए, आप वीगन बने बैठे हैं, लेकिन आपने चार संतानें पैदा कर दीं। और हम भली-भाँति जानते हैं, मैंने इतनी बार कहा है, आज हर बच्चा हज़ारों-लाखों जानवरों की लाश पर पैदा होता है, कहा है न? तो आप कैसे वीगन हैं जो आप हज़ारों-लाखों जानवरों को मरवा रहे हैं?

एक बच्चा जब आप पैदा करते हो, तो वो अपने जीवन-भर में जो कन्ज़म्पशन करेगा, आप सोचिए तो कि उसमें कितने जानवर मरेंगे! भले ही वो बच्चा स्वयं माँसाहारी न हो, पर सड़क तो चाहिए उसको, घर तो चाहिए उसको, तमाम तरह की और चीज़ों का तो भोग करेगा? कार तो खरीदेगा? वो कार बनानी पड़ेगी उसके लिए। इन सब प्रक्रियाओं में, आज हम जितनी भी प्रगति कर रहे हैं, हमारी प्रगति की एक-एक प्रक्रिया में जीवों का महाविनाश हो रहा है। तो एक तरह से वीगनिज़्म और जिसको आप एंटी-नेटलिज़्म बोलते हैं, वो साथ-साथ चलेगा।

‘करुणा’ – मेरे होने के लिए दूसरे को तकलीफ़ देना ज़रूरी नहीं है, बात ख़त्म। और अगर मेरा जीवन ऐसा ही है कि दूसरे को तकलीफ़ देकर ही चलता है, तो इस जीवन को बदलना होगा।

प्र: जब ये बात हम किसी और को समझाते हैं तो कैसे समझाएँ? आपने जैसे बोला वैसे समझा दें? बट दैट्स नॉट इनफ़ (ये पर्याप्त नहीं है)।

आचार्य: मैं समझता हूँ जिसको एक बार वेदान्त पकड़ में आने लगा, उसे बहुत समझाने की ज़रूरत नहीं रहेगी। ये हो ही नहीं सकता कि आप गीता को समझे हैं और आप फिर भी पशुओं के साथ क्रूरता कर ले जाएँ। और कोई बोलता है कि उसने गीता को समझा है, और उसके बाद भी पशुओं के साथ हिंसक है, तो झूठ बोल रहा है वो, स्वयं से ही झूठ बोल रहा है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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