तुम्हारी सहमति के बिना ठगे नहीं जा सकते तुम || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2015)
कबिरा आप ठगाइये, और न ठगिए कोय|
आप ठगे सुख होत है, और ठगे दुःख होय||
~संत कबीर
वक्ता: इसको समझने के लिए एक दोहा और लिखिए इसके साथ:
माया तो ठगनी भयी, ठगत फिरत सब देश|
जा ठग ने ठगनी ठगी, ता ठग को आदेश||
मुक्ति सर्व आयामी और… read_more