अतीत को पीछे कैसे छोड़ें? || आचार्य प्रशांत (2018)

Acharya Prashant

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अतीत को पीछे कैसे छोड़ें? || आचार्य प्रशांत (2018)

प्रश्न : अपने अतीत से कैसे बचें? कुछ बातें कभी कभी आ जाती हैं जिनसे हम काफ़ी परेशान हो जाते हैं ।

~ शशांक

आचार्य प्रशांत : वो बातें तो आती ही रहेंगी अगर खाली जगह देखेंगी । मन ऐसा ही है जैसे ट्रेन का जनरल डिब्बा । सीट अगर घिरी नहीं हुई है तो पाँच लोग आ कर उस पर बैठने को तैयार हैं । और जनरल भी कहने की ज़रुरत नहीं, आरक्षित डब्बे में भी ये हो जाता है । घेर के बैठना पड़ता है ना? नहीं तो कोई भी आएगा और कब्ज़ा कर लेगा । फिर तुम याचना करते रहना । ज़ोर लगाते रहना । समय व्यर्थ करोगे, ऊर्जा व्यर्थ करोगे ।

मन के पास अगर वो नहीं है जिसके लिए मन की गद्दी आरक्षित होनी चाहिए, तो फिर मन के पास बहुत सारा कूड़ा कचरा होगा, कोई भी आ कर मन पर कब्ज़ा कर लेगा ।

कभी देखा होगा ना, जिसकी सीट है वो आया नहीं, फिर क्या होता है? अरे! क़तार लगी हुई है, कि वो हमें मिल जाएगी क्या? जिसकी गद्दी है उसको दो । और उसको बुलाओ, कि आपके लिए ही है, आप आइये । आप नहीं होंगे तो दो तरफ़ा नुक़सान है । पहला नुक़सान तो ये कि आप नहीं होंगे, और दूसरा नुक़सान ये कि आपकी जगह बहुत सारे कीड़े-मकौड़े होंगे । वो आ कर के सारी जगह घेर लेंगे ।

बात आ रही है समझ में?

जब भी कभी किसी सत्कार्य में डूब जाओगे, पाओगे कि अतीत लापता हो गया । ना अतीत बचा ना भविष्य ।

पर सही काम में डूबो तो ! सही काम में डूबो, ध्यान में डूबो, जीवन में डूबो, आगा पीछा कुछ नहीं सताएगा । और जो करना चाहिए, वो कर नहीं रहे । जैसे जीना चाहिए, वैसे जी नहीं रहे । तो फिर तमाम चीज़ें परेशान करेंगी । यादें भी, उम्मीदें भी, लोगों की बातें, आते-जाते मौसम, बदलती परिस्थितियाँ, हर चीज़ तैयार रहेगी मन पर कब्ज़ा कर लेने को ।

समझ रहे हो?

जीवन को एक सार्थक दिशा दो । मन को एक समुचित केंद्र दो ।

खाली कुर्सी पर देखा है, धूल कैसे जम जाती है? पवित्र, क्या कह रहे हैं आप?

श्रोता१ : वर्तमान में कैसे जिया जाए? बार-बार ये जो दायें-बायें चले जाते हैं !

आचार्य जी : दायें-बायें कहाँ जाते हैं आप? पहले तो ये बताईये ।

श्रोता : वो विचार जो होते हैं, वो दायें-बायें बहुत जाते हैं ।

आचार्य जी: हाँ, आप ये तब थोड़े ही कहते हैं कि विचार दायें-बायें जाते हैं । आप ही चल देते हैं विचारों के साथ । जातें कहाँ हैं? ये बताइए ।

श्रोता : कभी भूत में चले जाते हैं ।

आचार्य जी: वहाँ क्या है?

श्रोता : शायद मैं ये कर लेता तो वो हो जाता ।

आचार्य जी: अब कोई बैठा है, उससे मेरी बातचीत चल रही है । वो कभी बाहर उधर घूमने जाए, और कभी बाहर उधर घूमने जाए । तो मुझे उससे पूछना पड़ेगा ना, कि भाई कहाँ जाते हो? खेल तो सारा यहाँ चल रहा है, तुम जाते कहाँ हो? आप बताइए आप जाते कहाँ हैं? वहाँ क्या आकर्षण है?

श्रोता : पता नहीं ।

आचार्य जी: अरे! ऐसे थोड़े ही !

श्रोता : मन बार-बार चला जाता है ।

आचार्य जी: तो उससे पूछिए ना, कहाँ जा रहा है?

श्रोता : उसको कैसे साधूँ यही तो पता नहीं चल रहा है ।

आचार्य जी: साधने की बात ही नहीं है । पहले पता तो हो कि जा कहाँ को रहा है? आपका बच्चा है, वो बार-बार घर छोड़ कर कहीं को जाता है, तो आप पता नहीं करना चाहेंगे वो कहाँ को जाता है?

श्रोता : जहाँ उसे लगता है शायद थोड़ा सुकून मिलेगा, शान्ति मिलेगी ।

आचार्य जी : कहाँ जाता है?

श्रोता : भूत, भविष्य ।

आचार्य जी: हाँ, वहाँ कहाँ? भूत काल में कहाँ पर जाता है?

श्रोता : कुछ अच्छे विचारों में चला जाता है । भविष्य में अगर कुछ अच्छी चीज़ ऐसी हो जाए तो !

आचार्य जी: वो जाता रहेगा, क्योंकि उसे वहाँ दुःख से मुक्ति मिलती है, भले ही क्षणिक ! समझियेगा ।

दुःख, जीवन है आदमी का ! दुःख से मुक्ति दो तरह की होती है – एक होती है दुःख से क्षणिक मुक्ति, उसको कहते हैं, ‘सुख’। और दूसरी होती है दुःख से पूर्ण मुक्ति, उसको कहते हैं ‘आनंद’ । मन को ‘दुःख’ से मुक्ति तो चाहिए ही चाहिए । किसी भी तरीके से चाहिए । ‘सुख’ होता है, भूत में और भविष्य में । *दुःख* से क्षणिक मुक्ति मिलती है, भूत में और भविष्य में । और दुःख से वास्तविक मुक्ति मिलती है, ‘आनंद’ में, जो कि होता है ‘वर्तमान’ में ।

अब मन छटपटा रहा है, मन सबसे निचली हालत में है । सबसे निचली हालत का नाम है? दुःख । उससे ऊपर की हालत का नाम है? ‘सुख’ । और ‘सुख’ कहाँ है? कल्पनाओं में, भूत में, भविष्य में । और सबसे ऊँची हालत का क्या नाम है?

श्रोता : आनंद ।

आचार्य जी: ‘ आनंद’ कहाँ है?

श्रोता : वर्तमान में ।

आचार्य जी: वर्तमान में ।

जो सबसे निचली हालत में है, अगर उसे सबसे ऊँची हालत नहीं भी मिल रही, तो भी वो कहाँ को चल देगा? जो बीच वाली हालत है । वो कहेगा, चलो ऊँचे से ऊँचा कुछ नहीं मिला, कुछ तो मिला । दुःख से पूर्ण मुक्ति नहीं मिली, पर पलभर की राहत तो मिली ! इसलिए मन भागता है । और अगर आप चाहते हैं, कि वो ‘सुख’ की ओर ना जाए, भूत भविष्य की ओर ना जाए, तो फिर एक ही विकल्प है ! क्या?

श्रोता : वर्तमान में रहें ।

आचार्य जी: उसे आपको ‘आनंद’ देना पड़ेगा, वर्तमान में । अगर आप उसे वर्तमान में ‘आनंद’ नहीं देंगे तो वो तो छटपटा रहा है दुःख से मुक्ति के लिए, और वो दुःख से झूठी मुक्ति खोज लेगा, भूत में और भविष्य में ।

एक ही तरीका है, ‘आनंदित जीवन जियें’ । और आनंदित जीवन आता है, किसी महत्त सत्ता को समर्पित हो कर । उसके बिना कोई आनंद नहीं ।

आनंद का अर्थ ही होता है, ‘स्वयं से मुक्ति’ ! ‘हम’ अपने ऊपर बहुत बड़ा बोझ होते हैं । और जब वो बोझ हटता है, तो मस्ती छा जाती है । उसको कहते हैं ‘आनंद’ ।

आप जब अपने से ज़्यादा बड़े किसी लक्ष्य को समर्पित हो जाते हैं तो आनंदित हो जाते हैं आप जब अपनी छोटी छोटी व्यक्तिगत चिंताओं और आशाओं के पार कुछ देख लेते हैं तो आनंद उठता है मन को वो आनंद दीजिये , नहीं तो वो छोटे मोटे सुख के खातिर इधर उधर भटकता ही रहेगा !

वर्तमान को परखिये ! कैसा जीवन जी रहे हैं? क्या उसमें कुछ ऐसा है जो बहुत बड़ा हो, आनंददायी हो?

अगर है, तो मन नहीं भागेगा । अगर नहीं है तो निश्चित भागेगा ।

सुबह से शाम, चौबीस घंटे जो कर रहे हैं ना, उस पर दृष्टिपात कीजिये । पूछिए, इसमें ऐसा है क्या कि इसमें मन लग जाए, रम जाए ?

छोटा बच्चा घर से भागता है न तो माँ बाप को ये सवाल करना पड़ेगा कि मेरे घर में ऐसा कुछ है क्या कि वो घर में टिका रहे?

और घर में अगर मौज है, मजा है, तो वो घर से क्यों भागेगा? घर की ओर गौर से देखिये ! घर माने जीवन ।

चौबीस घंटे में अगर आप, अपने आप को कुछ ऐसा दे रहे हैं जो उल्लासपूर्ण है, विराट है, तो मन आगे पीछे नहीं भागेगा । और अगर आपका जीवन घिरा हुआ है वही छोटी-छोटी बातों से, इसने ये कहा, उसने वो कहा, वही दो रुपया, चार रुपया । ये पा लूँ, ये बचा लूँ, क्या खाना है, क्या पहनना है, कौन बदनाम, दही के दाम, इन्हीं सब बातों से अगर घिरा हुआ है, तो मन तो छटपटा के भागेगा ना? वो कहेगा, यही करना है मुझे? कि आँवले गिन रहे हैं? दही के दाम पूछ रहे हैं? अखबार की छोटी से छोटी खबर, ऐसे पढ़ रहे हैं जैसे दुनिया हिली जा रही हो ! व्यर्थ की बातचीत, गॉसिप में संलग्न हैं । दिन भर क्षुद्रताओं से ही घिरे रहते हैं । अगर जीवन ऐसा है तो मन तो छटपटा के भागेगा ना? कहेगा ये वर्तमान नहीं चाहिए ! मुझे भूत की स्मृतियाँ प्यारी हैं, मुझे भविष्य की आशायें प्यारी हैं । ऐसा वर्तमान नहीं चाहिए, घटिया !

सुन्दर वर्तमान दीजिये अपने आपको । तोहफा । फिर मन नहीं भागेगा । वर्तमान पर गौर करिये, उसमें सौंदर्य कितना है ! उसे सुन्दर करिये !

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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