अभी मर जाओ तो तुम्हारी देह को लोग कहेंगे, “वह मिट्टी रखी है, मिट्टी।“ यह हैसियत है हमारी गंभीरता की। यह भी नहीं कहेंगे कि, “वह नवीन रखा है”, क्या कहेंगे? “मिट्टी रखी है; वह मिट्टी।“ और जब तक साँस चल रही है तब तक बड़े गंभीर हो, “अरे! दर्द-ए-दिल, दर्दे-ए-जिगर!”
ऐसा चेहरा बना कर घूम रहे हो, जैसे तुम्हारे लिए ख़ासतौर पर गुरुत्वाकर्षण तीन गुना हो! कंधे भी नीचे को खिंचे जा रहे हैं, गाल भी नीचे को खिंचे जा रहे हैं; बाकी सामान कि तुम जानो। अहंकार है न? अपने दुःख को बड़े गंभीरता से लेना। है न? “हम बड़े महत्वपूर्ण हैं तो हमारे दुःख भी तो महत्वपूर्ण हैं!”