मिल गई? अब सर पीटो || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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मिल गई? अब सर पीटो || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: कह रहे हैं— ‘फल आशा अनुसार नहीं मिलता तो निराशा हावी हो जाती है’ और आशा अनुसार मिलता है तो क्या हावी होता है? तब ‘फल’ हावी होता है! जब फल आशा अनुसार नहीं मिलता तो कह रहे हैं निराशा बड़ी हावी लगती है, अपने ऊपर से विश्वास हटता है। ऐसा तो नहीं होता कि कभी भी तुम्हें फल मिलता ही नहीं होगा तुम्हारे कर्मों का। कभी-कभार ऐसा भी होता होगा कि जो चाहते हो वो मिल जाता है। ये भी तो बताओ जब चाहते हो और मिल जाता है, तब क्या दुर्दशा होती है तुम्हारी?

सुना है न वो पुराना चुटकुला— एक रिसर्चर (शोधकर्ता) पहुँचा एक पागलख़ाने में, तो वो बोला कि आपके यहाँ के जो एकदम चुनिन्दा, ख़तरनाक, शातिर पागल हों, नामवर पागल, उनसे मिलवाइए।

तो बोले— अच्छा! तो एक के पास ले गए बोले, हैं एक दो हैं आइए ले चलते हैं, एक के पास ले गए और वो बिलकुलएकदम गोरिल्ला बना बैठा था; ये कर रहा है, वो कर रहा है दीवारें तोड़ रहा है निकाल रहा है, सलाखों पर सर मार रहा है। अकेला उसको बन्द कर रखा था, पूछे, क्या है, इतना क्यों पागल हो गया? तो बोले, ये जिसको चाहता था ज़िन्दगी में, वो लड़की मिली नहीं इसको, इसकी सब आशा बर्बाद हो गयी, टूट गया, एकदम, ऐसा हो गया है। बोले— अच्छा, अच्छा, अच्छा।, अच्छा”

वो खोजी भी घबरा गया, बोला— अरे बाप रे! बोला, ठीक है जाते हैं। बोले ‘नहीं’ एक और है उसको देख लीजिए, बोला— एक और को देखकर क्या करेंगे? इससे ज़्यादा पागल कौन हो सकता है?” बोलेकहे— ‘नहीं’, है, उधर है, उसको लेकर गये, उसको तो पागलख़ाने से भी दूर रखा हुआ था। एकदम जो जानवरों का कटघरा होता है, उसके भीतर उसको बन्द कर रखा था, विशेष पिन्जड़े में। वो अन्दर गुर्रा रहा था और हुंकार रहा था। पता ही नहीं चल रहा था जानवर कौन-सा है, हर तरीक़े के जानवर के उसमें लक्षण दिखाई दे रहे थे, पूछा गया ‘इसको क्या हुआ?’ बोले, ‘ये’ इसको जो चाहिए थी लड़की, वो इसको मिल गयी।

तो इतना तो बता दिया कि जब आशा अनुसार फल नहीं मिलता तब बड़ी निराशा होती है, वो तो तुम बता ही नहीं रहे जो तुमने चाहा, और तुम्हें मिल गया है।! उसका ज़िक्र कौन करेगा? और कष्ट तुम्हें उसका तो थोड़ा-बहुत ही हो सकता है जो तुम्हें मिला नहीं क्योंकि जो नहीं मिला वो नहीं मिला, वो तुम्हारी ज़िन्दगी में मौजूद नहीं है; ये दिनभर तुम्हें कष्ट कौन देता है? वो जो नहीं मिला, या वो जो मिल गया?

उसकी बात छुपा गये!, कह रहे हैं कि “निराशा गड़बड़ चीज़ है”, निराशा नहीं गड़बड़ चीज़ है, आशा गड़बड़ चीज़ है।! तुम्हें अगर अपने ऊपर से निराशा ही हो जाये तो तुम मुक्त ही हो गए। दिक्क़तदिक्कत ये है कि तुम्हारी आशा नहीं टूटती। इतनी पिटाई होने के बाद भी आशा बनी ही हुई है।

तुम्हारी आशा से वो थोड़े ही मिलेगा, जो फल तुम्हें वास्तव में चाहिए, वो चीज़ कुछ और होती है, उसके लिए गुण दूसरे चाहिए। उसके लिए समर्पण चाहिए, उसके लिए अध्यात्म चाहिए, मात्र कामना-वासना से काम नहीं चलेगा।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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