पत्नी काबू में रखना चाहती है? || बात को पूरा समझें, आचार्य प्रशांत (2021)

Acharya Prashant

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पत्नी काबू में रखना चाहती है? || बात को पूरा समझें, आचार्य प्रशांत (2021)

स्वयंसेवक: आचार्य जी, अब इन सज्जन को मैं चार-पाँच बार बोल चुका कि आप ये प्रश्न रहने दें पर ज़िद्द कर रहे हैं।

इनका प्रश्न है कि, “मेरी जो बीवी है वो मुझे काबू में रखना चाहती है।“ अब उसके लिए उन्होंने कुछ चीज़ें ऐसी कर रखी हैं जैसे इन्होंने ८-१० चीज़ें लिखकर भेजी हैं, मैं एक-दो ही बता रहा हूँ कि, नियम है इनके घर में कि दोनों ही के जो मोबाइल के पासवर्ड होंगे वो सेम होंगे और नीचे लिखा है कि उन्होंने कुकिंग का शेड्यूल (खाना पकाने का कार्यक्रम) बनाया हुआ है, “जिसमें बहुत चालाकी से चार दिन मुझे दिए हैं और जब-जब दाल और चावल होते हैं वो अपने-आपके लिए रख रखे हैं और जब पराठे और रोटी वगैरह बनानी होती हैं, तो वो मेरे में डाल दिया है।“ ऐसे करके उन्होंने पाँच-छः चीज़ें बताई हैं कि “गाड़ी भी है, स्कूटी भी है, पर मुझे स्कूटी मिलती है, वो गाड़ी चलाती हैं।“ इनका निष्कर्ष यह है कि, “वो मुझ पर काबू करना चाहती है और मैं इससे बहुत परेशान हूँ।“

(श्रोतागण हँसते हैं)

आचार्य प्रशांत: भाई, हमारे लिए ये मज़ाक हो गया है, जिसके साथ हो रहा है वो चार-पाँच बार ज़ोर देकर कह रहा है ‘मैं परेशान हूँ, परेशान हूँ’ तो उसके साथ थोड़ी सहानुभूति रखिए।

देखिए, आप एक महिला की स्थिति समझिए। शारीरिक रूप से वह पुरुष से कमज़ोर होती है और इसमें कोई दो राय नहीं है, जहाँ तक शारीरिक क्षमता की बात है। तो तन से कमज़ोर है, ठीक? मन से वो भावनाप्रधान होती है, प्रकृति ने ही ऐसा बनाया है। और समाज का चक्र कुछ ऐसा रहा है कि स्त्री मन से ताक़तवर हो जाए, ऐसी व्यवस्था बनाई नहीं गई है। बल्कि उसको शिक्षा, संस्कार सब ऐसे ही दिए जाते हैं कि वो मन से भी कमज़ोर ही रहे। भावनाप्रधान वो प्रकृति के कारण थी और मन की ताक़त उसे ना घर पर मिली, ना शिक्षा से मिली, ना संस्कार से मिली। तो अब तन भी उसका कमज़ोर और मन भी उसका कमज़ोर। तो वो जिए कैसे? और उसका महत्व कहाँ रह गया?

भई, दुनिया की आधी आबादी दुनिया की बाकी आधी आबादी से अगर तन और मन दोनों से कमज़ोर है तो वो जिएगी कैसे? गड़बड़ स्थिति हो गई कि नहीं, समझ रहे हो? तो एक सहारा था फिर स्त्री के पास जहाँ से उसको फिर थोड़ी वैधता मिलती थी या ताक़त मिलती थी। वो ये थी कि उसके पास एक शक्ति ऐसी थी जो पुरुष के पास नहीं थी। तन की शक्ति उसकी कम थी, मन की शक्ति भी उसकी कम कर दी गई थी, लेकिन उसके पास प्रजनन की शक्ति थी। बच्चे सिर्फ़ वही पैदा कर सकती थी, तो इस नाते उसको एक ताक़त मिल जाती थी।

अब आज का समय समझो कैसा है। वो जो तीसरी ताक़त थी, उसका महत्व कम होता जा रहा है लगातार, क्योंकि लोग बच्चे कम पैदा करना चाह रहे हैं। और शीघ्र ही वो समय भी सामने दिख रहा है जब बच्चे पैदा करने के लिए किसी जीवित गर्भ की ज़रूरत नहीं रहेगी; माँ के शरीर की ज़रूरत नहीं रहेगी। तो स्त्री की ताक़त का जो ये तीसरा और आख़िरी बचा हुआ स्रोत था, ये भी बंद हो गया। तुम उसकी स्थिति को समझो। शरीर से कमज़ोर, मन से उसे ताक़तवर होने नहीं दे रहे हैं, और जो उसकी प्रजनन की ताक़त थी, अब उसका सामाजिक मूल्य धीरे-धीरे कम होता जा रहा है, तो वो जिए तो जिए कैसे? कैसे जिए? तीन ही ताक़तें थीं।

तो फिर वो इस तरह की चालाकियाँ करती है। उसके पास फिर एक यही तरीका रह जाता है कि कुछ-न-कुछ तरीके लगा करके पुरुष को काबू में रखो। ये डरे हुए और कमज़ोर आदमी की निशानी है कि वो दूसरों को काबू में रखना चाहता है। जितनी कमज़ोर महिला होगी, वो पुरुष को उतना ज़्यादा काबू में रखना चाहेगी। पुरुष पर भी यही बात लागू होती है। जितना कमज़ोर पुरुष होगा, वो महिला को उतना ज़्यादा नियंत्रण में रखना चाहेगा।

तो अगर आप एक ऐसे पुरुष हैं जिसपर कोई महिला नियंत्रण करना चाहती है, कंट्रोल करना चाहती है, तो साफ़ समझ लीजिए कि वो महिला ऐसा अपनी कमज़ोरी के कारण कर रही है। वो डरी हुई है। क्योंकि उसको पता है उसके पास कुछ भी नहीं है। उसके पास कुछ भी नहीं है – ना तन है, ना मन है, ना प्रजनन है। प्रजनन में ऐसा भी हो सकता है कि अब वो बच्चे पैदा कर चुकी हो तो उसको पता है कि अब उसकी कोख का बहुत मूल्य बचा नहीं है। ‘मुझे दो बच्चे पैदा करने थे, मैंने कर दिए।‘ तो अब उसका भी कोई मूल्य बहुत बचा नहीं है। तो अब वो डरी हुई है, क्योंकि उसके पास कोई ताक़त नहीं है।

मन की ताक़त होती है ज्ञान, वो उसने जीवन में अर्जित करा नहीं; तन में माँसपेशियों में कोई ताक़त थी नहीं, प्रजनन वाली ताक़त चुक गई; तो फिर वो अब कौनसी ताक़त के बूते जिए? तो फिर वो इस तरह की तिकड़मों की ताक़त लगाती है। उसको आप बोलना शुरू कर देते हो कि ‘यह तो त्रियाचरित्र है’ और ‘औरत तिकड़मी होती है, फँसाती है, ये करती है, वो करती है’।

वो ऐसा इसलिए कर रही है क्योंकि आपने उसे कमज़ोर कर छोड़ा है। अगर वो मज़बूत होती तो उसे कोई ज़रूरत नहीं होती दंद-फंद करने की, चालाकियाँ करने की।

अब उसे आप मज़बूत किस तरीके से कर सकते थे? ये तीन आयाम हैं उसके वजूद के – तन, मन, प्रजनन।

तन तो आप क्या ही मज़बूत करेंगे! वो तो प्राकृतिक तौर पर ही पुरुष से लंबाई में भी थोड़ी छोटी होती है, चौड़ाई में भी थोड़ी छोटी होती है, वज़न में भी कम होती है। तो आप तन में तो कुछ कर नहीं सकते। अब प्रजनन में आप उसकी क्या मदद करेंगे? ये तो खतरनाक हो जाएगा पूरी पृथ्वी के लिए कि वो और बच्चे पैदा कर रही है, वगैरह-वगैरह। तो वो भी हटाइए।

एक ही तरीका है जिससे कोई भी महिला मज़बूत हो सकती है, वो है मन। मन में वो पुरुष के बराबर ही नहीं हो सकती, पुरुष से आगे भी निकल सकती है। लेकिन खेद की बात ये है कि संयोग ऐसे हैं और संस्कार ऐसे हैं कि स्त्री सबसे कम ध्यान देती है मन को मज़बूत बनाने पर। ऐसा उसे सिखाया ही नहीं जाता है कि 'तुम्हारी पूंजी ज्ञान है’ या 'तुम्हारी पूंजी तुम्हारी कला है या कौशल है'। वो सारा अपना निवेश कर देती है तन में और प्रजनन में। और उसको पता चलता है तन और प्रजनन बहुत दूर तक उसके काम नहीं आ रहे, तो वो फिर डर जाती है बहुत, क्योंकि जो पूंजी ज़िंदगी भर काम आनी है, वो तो उसने कभी कमाई ही नहीं। वो कौनसी पूंजी है? वो पूंजी है आंतरिक गुणों की और ज्ञान की। गुणों की और ज्ञान की पूंजी तो उसने कभी कमाई ही नहीं। ना माँ-बाप ने उसे प्रेरित किया, ना शिक्षा ने उसे प्रेरित किया, कॉलेज-स्कूल ने नहीं किया, ना समाज ने और संस्कार ने उसे प्रेरित किया।

तो अब वो डरी है। अब उसे लगता है कि ‘पति मुझे कभी भी छोड़ कर जा सकता है’ तो वो फिर बहुत सारे तिकड़मी तरीकों से पति को फँसा कर रखने की कोशिश करती है। अगर वो ख़ुद ही समर्थ होती और काबिल होती तो वो क्यों इतना डरती कि ‘पति कहीं छोड़ कर ना चला जाए’? वो कहती, ‘छोड़कर चला जाए तो चला जाए, मेरी बला से। मेरा बिगड़ेगा क्या?’

अभी उसको पता है कि पति अगर चला गया तो सबकुछ बिगड़ जाएगा क्योंकि उसके पास ना तन की ताक़त है, ना मन की ताक़त है। उसे पता है अगर पति चला गया तो बर्बाद हो जाएगी। जितना उसको ये लगता है कि ‘अगर पति छोड़कर चला गया, मैं बर्बाद हो जाऊँगी’, वो उतना ज़्यादा पति को अपने शिकंजे में रखने की कोशिश करती है।

आने वाला समय और खतरनाक होने वाला है क्योंकि जो प्रजनन की ताक़त थी, प्रजनन से जो प्रीमियम मिलता था महिला को, वो और कम होने वाला है। अब वो किस ताक़त का इस्तेमाल करेगी बताओ?

भई, और हो ना हो, आप स्त्री के सामने इस नाते सर झुका देते थे, बोलते थे 'माँ', ठीक है न? अब आने वाले समय में तो माँ का महत्व भी कुछ रह नहीं जाने वाला। पहली बात तो बच्चे कम और दूसरी बात वो बच्चे भी प्रयोगशाला में पैदा हो जाएँगे, तो अब किस नाते उसके सामने सिर झुकाओगे? माँ वाला जो फैक्टर था वो चला गया, तन पहले से ही कमज़ोर था, अब तो एक ही नाते उसके सामने सर झुका सकता है कोई पुरुष कि उसमें ज्ञान हो, गुण हों और कौशल हो। और महिलाओं को अगर शांतिपूर्वक और सम्मानपूर्वक जीना है दुनिया में, तो यही उनके पास एकमात्र रास्ता शेष है – तन को छोड़ो ज़रा।

जिस तरीके से विज्ञान आगे बढ़ रहा है न, अगर मीट फैक्टरी (माँस कारखाना) में पैदा हो सकता है – बात समझ रहे हो? कौनसे मीट की बात कर रहा हूँ? वो फैक्टरी नहीं जिसमें जानवर काटे जा रहे हैं – लैब मीट (प्रयोगशाला में निर्मित माँस)। तो स्त्री का शरीर भी तो पैदा हो सकता है न फिर वहाँ पर आदमी की वासना की पूर्ति के लिए? कौन बीवी का झंझट पाले? एक बढ़िया स्त्री का शरीर खरीद कर ले आओ, लैब से बनाया गया है, उसी के साथ अपनी वासना पूरी कर लो!

तो स्त्री को जो प्रीमियम (लाभ) मिलता था, जो ताक़त मिलती थी इस नाते कि ‘देखो, अगर तुमने मेरी बात नहीं सुनी तो मैं तुम्हें अपना शरीर नहीं दूँगी’, वो मिलनी भी बंद हो जाएगी। प्रजनन के कारण उसको जो महत्व मिलना था, वो मिलना बंद हो जाना है। शारीरिक आकर्षण के कारण जो महत्व मिलता था, वो मिलना भी बंद हो सकता है। तन से वो कभी भी बलिष्ठ बहुत थी नहीं।

तो अब ले-दे करके एक ही चीज़ बचनी है जिससे स्त्री को स्थान और सम्मान मिल सकता है – अंदरूनी तौर पर कुछ बन कर दिखाओ। कुछ ऐसे हो जाओ कि तुम्हारे सामने पूरी दुनिया का सर – चाहे स्त्री हो, चाहे पुरुष हो – सबका सर तुम्हारे सामने आदर से झुके। ऐसे नहीं बनो कि दुनिया की आँखें तुम्हें देखकर वासना से दहक उठें।

और बहुत स्त्रियों के लिए ताक़त की यही परिभाषा है, कि ‘जितने पुरुष मुझे देख करके उत्तेजित हो जाते हों, मैं उतनी ताक़तवर हुई।‘ ये ताक़त बहुत दिन चलती ही नहीं। मान लो, प्रयोगशाला से नहीं भी निर्मित हुआ स्त्री का शरीर, तो भी तुम जिस शरीर को दिखा कर पुरुषों पर हुक्म चला रही हो, वो शरीर तुम्हारा १०-२०-१५ साल से ज़्यादा तो चलना नहीं है। उसके बाद क्या करोगी? फिर तुम डरी हुई रहोगी, क्योंकि तुम्हें पता है कि अब तुम्हारे पास कुछ भी ऐसा नहीं है जो कीमत का हो, जो मूल्यवान हो। अब तुम और डरी हुई रहोगी।

ना डरने का वही तरीका है –

‘कबीरा सो धन संचय, जो आगे को होए।’

असली कमाई करो, असली कमाई। ये सब कॉस्मेटिक्स (प्रसाधन सामग्री) और, ये बाल लम्बा कराना, सीधा कराना, रंगवाना, लिप-ग्लॉस और शरीर को नुचवाना, और बोटॉक्स, ये नहीं काम आने के।और पुरुषों को बोल रहा हूँ – आपकी ज़िंदगी में अगर कोई महिला हो, और आप नहीं चाहते कि वो आपको नोंच-नोंच कर खाए, तो उसे सशक्त करो। अगर आपकी ज़िंदगी में महिलाएँ हैं जो आपको बहुत परेशान कर रहीं हैं, तो इसका मतलब यह है कि आपने उन्हें बहुत कमज़ोर रखा है।

वो इतनी कमज़ोर हैं कि आपको परेशान कर रहीं हैं, वो इतनी कमज़ोर हैं कि आपको काबू में रखना चाहती हैं।

अपने-आप को बचाना चाहते हो तो उसको मज़बूती और आज़ादी दो। और रिश्तों में पारस्परिक आज़ादी का सूत्र भी यही है। अब ख़ुद आज़ादी चाहिए तो दूसरे की आज़ादी के कारण बनो। तुमने अगर किसी को अपने पर आश्रित बना लिया, तो मुझे बताओ, वो तुम्हें छोड़ कैसे देगा? वो तुम्हें ऐसे पकड़ कर रखेगा न?

अब ये, ये है, मुझे इसकी बहुत ज़रूरत है, मुझे उसकी बहुत ज़रूरत है। (मेज़ पर रखे कलम का उदाहरण देते हुए) इसके बिना तो मेरी रोटी नहीं चलने की, इसके बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं, मेरी पूरी आइडेंटिटी (पहचान) इसी से आती है। ये पति है मेरा, मेरा तो नाम भी इसी से आता है, उपनाम तो कम-से-कम इसी से आता है। रोटी भी इसी से आती है, घर भी इसी से आता है, सबकुछ इसी से आता है, मैं छोड़ सकता हूँ इसको? “ये अगर इधर-उधर थोड़ा भी होना चाहेगा, मैं इसको ऐसे पकड़ कर रखूँगी, ऐसे-ऐसे (ज़ोर से पकड़ दिखाते हुए)। इसलिए नहीं कि मुझे प्रेम है, इसलिए कि इसको छोड़ा नहीं कि मैं बर्बाद हो जाऊँगी।"

आपके जीवन में जो भी महिलाएँ हैं, उनको ताक़त दीजिए। उनको इस लायक बनाइए कि वो आपकी अनुपस्थिति में भी सशक्त तौर पर खड़ी रह सकें। कम-से-कम उन्हें अपने ऊपर आश्रित तो मत ही बनाइए। और जहाँ तक मन के आयाम की बात है, याद रखिए, मन के आयाम में महिला पुरुष के समकक्ष ही नहीं है, पुरुष से आगे भी जा सकती है। सिर्फ़ उसी आयाम में। और उसी आयाम पर महिला की सारी उम्मीद टिकी हुई है। जो महिला मन के आयाम पर आगे नहीं बढ़ रही है, वो अपने लिए बहुत खतरनाक भविष्य तैयार कर रही है।

तन आपके काम नहीं आने का। ना कामवासना, ना प्रजनन, ये काम आने के। काम तो अंततः अंदरूनी गुण ही आएँगे, उन्हें विकसित करो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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