Meister Eckhart

सबसे शक्तिशाली प्रार्थना कैसी? || आचार्य प्रशांत, माइस्टर एकहार्ट पर (2013)
सबसे शक्तिशाली प्रार्थना कैसी? || आचार्य प्रशांत, माइस्टर एकहार्ट पर (2013)
1 min

तेरहवीं शताब्दी के जर्मनी के प्रसिद्द दार्शनिक - माइस्टर एकहार्ट द्वारा प्रार्थना से सम्बंधित उक्तियों पर आचार्य प्रशांत जी प्रकाश डालते हुए :

The most powerful prayer, one well nigh omnipotent, and the worthiest work of all is the outcome of a quiet mind. The quieter it is the more

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Religion concerns itself with ‘Ego and its liberation!’ That’s all. In the name of religion, if you are talking about planets and stars, about fruits and vegetables, wear this, don’t wear that, eat this, don’t eat that, the house should face this direction, and a thousand other things that you associate with it, then all that is some kind of tribal superstition. Religion has nothing to do with these things.
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धर्म आपके शरीर की रक्षा थोड़ी करेगा। रक्षा शब्द की जब बात आती है तो ये समझना पड़ेगा कि आपको बड़ा ख़तरा क्या होता है। ख़तरे के संदर्भ में ही रक्षा शब्द का कुछ अर्थ है ना। ख़तरा हो तभी रक्षा की बात होती है। ख़तरा ही नहीं तो रक्षा शब्द अर्थहीन है। हाँ तो सबसे पहले तो ये जानना पड़ेगा कि हमें ख़तरा क्या है? एक मनुष्य को सबसे बड़ा ख़तरा क्या है? क्या मृत्यु? क्या किसी इंसान को सबसे बड़ा ख़तरा ये होता है कि उसका शरीर गिर जाएगा, मृत्यु हो जाएगी — ये होता है? किसी इंसान को सबसे बड़ा ख़तरा ये होता है कि मृत्यु आने से पहले वो मुक्त नहीं हो पाएगा। ये होता है ख़तरा।
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Questioner: How should I identify my calling? If I have two options in front of me – I am doing engineering but I want to know and go for film-making. Would it be okay if I go in that direction? I like both the ways, Engineering as well as film-making.

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प्रेम किसी घटना का, किसी अफ़साने का, किसी व्यक्ति का नाम नहीं है। "प्यार तो सिर्फ़ एक एहसास होता है न, एक भीतर की भावना; तो हमें भी हो गया है" — नहीं, ऐसा नहीं है। प्रेम तुम्हारी चेतना की मूल तड़प का नाम है। जिस रास्ते पर चलकर तुम ज़िन्दगी की ऊँचाइयाँ हासिल कर सको, तुम्हारी चेतना साफ़-से-साफ़ और ऊँची-से-ऊँची जगह पर पहुँच सके, 'प्रेम कहावे सोय,' — उसको प्रेम कहते हैं।
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का जाति:। जातिरिति च। न चर्मणो न रक्तस्य न मांसस्य न चास्थिनः। न जातिरात्मनो जातिर्व्यवहारप्रकल्पिता॥१०॥

शरीर (त्वचा, रक्त, हड्डी आदि) की कोई जाति नहीं होती। आत्मा की भी कोई जाति नहीं होती। जाति तो व्यवहार में प्रयुक्त कल्पना मात्र है।

~ निरालंब उपनिषद (श्लोक क्रमांक १०)

आचार्य प्रशांत: आज जो

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अगर लड़की इतनी ही बुरी चीज़ है, तो आप क्यों लड़की हो? वो माँ, जो लड़का पैदा करने के लिए इतनी आतुर हो रही है, सबसे पहले तो जाकर के उसको *चेंज* (परिवर्तन) करना चाहिए। उसका इसको, इसको पुरुष बनाओ क्योंकि इसे स्त्रियों से तो नफ़रत है।और ऐसे जो पिता जी हैं जिनको लड़कियों से इतनी नफ़रत है कि उनको लड़का ही चाहिए। सबसे पहले तो उनके आसपास, इर्द-गिर्द जितनी भी महिलाएँ हों, सबको उनसे दूर किया जाये।
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Questioner: Sir, I have been reading Krishnamurti and Vivekananda for the past three years and having learned from them, I genuinely feel that the teachings of such great teachers should be at the core of our education system. I personally feel that my decisions regarding my career and life would

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दुनिया की गंदगी से बचा लो इन बच्चों को
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ये दुनिया बहुत गंदी है, बच्चे को ऐसे बड़ा करना होता है कि दुनिया का एक भी छींटा उस पर न पड़े। पागल-से-पागल माँ-बाप वो हैं, जो टीवी लगाकर बच्चे को सामने बैठा देते हैं या फिर आपस में बहस कर रहे होते हैं दुनियादारी की। बच्चे को ऊँची-से-ऊँची बातों का — सही किताबें, डॉक्युमेंट्रीज़, ई-बुक्स — इनका एक्सपोजर दीजिए। एक ऐसा बच्चा आपने निकाल दिया, तो वो सूरज की तरह चमकता है, पता नहीं कितनों को रोशनी दे देगा।
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पुरानी कबीलाई रवायतें और इस्लामिक दर्शन — ये दोनों बातें आपस में गुथ गई हैं। बहुत सारी चीज़ें, जिनको आम मुसलमान मज़हब समझता है, वो वास्तव में बस अरब की प्रथाएँ हैं। धर्म के नाम पर जो चल रहा है, वो हज़ारों-लाखों लोगों की मौत बन रहा है। इसके प्रतिरोध में पूरी दुनिया कट्टर होती जा रही है। संसद, न्यायालय, कार्यालय, शैक्षिक संस्थाएँ — हर जगह से मुसलमान नदारद है। इस पिछड़ेपन का कारण अशिक्षा और ग़रीबी है। इसे दूर करने के लिए ज्ञान का प्रकाश चाहिए — विज्ञान, इतिहास, तर्क में शिक्षा चाहिए।
Are You Ready For True Love?
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The wise ones say, “Love arrives only when the right, clean, and honoured space has been prepared for it.” So, you can never find love — you can only rid yourself of all that blocks it; all that is needlessly and coincidentally present in your mental space. And you can’t predict how love will arrive, but you can do your homework to clear the inner clutter.
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‘माँ’ शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं। एक अर्थ निकलता है नासमझी से और दूसरा अर्थ निकलता है समझ से। पहली माँ के पास मात्र ममता होती है, दूसरी माँ के पास मातृभाव होता है। ममता तो पशुओं में भी होती है, पर मातृभाव कोई-कोई माँ ही जानती है। मातृभाव का अर्थ है - वास्तविक रूप से जन्म देना - एक जन्म शरीर का और दूसरा जन्म ज्ञान का। ममता में प्रेम नहीं होता; इसमें मात्र हॉर्मोन्स होते हैं। वास्तविक माँ वो जो प्रेम जाने। उसके लिए माँ को स्वयं बोधयुक्त होना पड़ेगा।
धर्म — उन्नति का मार्ग या विनाश का हथियार?
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धर्म की दिशा सबसे पहले भीतरी होती है। दूसरों को काफ़िर कहकर मार देना धर्म की दिशा नहीं है। धर्म जब गलत दिशा ले लेता है, तो ऐसी व्यापक तबाही करता है जिसकी कोई इंतहा नहीं होती। धर्म दोधारी तलवार है — अगर सही से समझा गया, तो ऊँचाइयों पर ले जाएगा; और नहीं समझा गया, तो ऐसा गिराएगा कि उठना असंभव हो जाएगा।
इस्लाम में सुधार
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पर एक साधारण सी बात है कि दूसरों की गंदगी बताने से पहले अपनी गंदगी तो साफ करूँ और मेरी गंदगी साफ होगी। उसके बाद कोई आकर के मुझसे बात करना चाहेगा उसके घर की गंदगी के बारे में। तो मैं प्रस्तुत हूँ। भई आखिरकार तो आप इंसान हो और हर इंसान से आपका सरोकार है। बात पंथ, मज़हब, संप्रदाय की तो नहीं होती है। कोई भी आकर आपसे बात करेगा और वो साफ होना चाहता है। बेहतर होना चाहता है तो आप बिल्कुल खुलकर बात करोगे। उसमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन सबसे पहले तो आप अपनी बात करोगे ना। अपना भीतर झाँक कर देखोगे।
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Caste is something that the Upanishads actively dismiss. So many of our saints came from the so-called lower castes and tried to purge Hinduism of its nonsense, but still, caste continues for two reasons. First, a human is born with an innate tendency to divide and separate. And second, a light has to be awakened in him, and that effort is called real education. We do not receive that education today.
Love Versus Desire
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Love is always dedicated to the purpose of liberation, whereas desire forgets the highest and remembers only the object. If, in the process of love, desire, or attraction, you find that you have never lost sight of the Truth — rest assured, you are loving. But if the object becomes so dominant that you have totally forgotten the Truth, know that this is not love.
प्रेम हिंसा में क्यों बदल जाता है?
प्रेम हिंसा में क्यों बदल जाता है?
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दूसरों से दो ही तरह के संबंध हो सकते हैं — या तो प्रेम के, या फिर कामना के। कामना के रिश्ते उम्मीदों पर बनते हैं, जिनके पूरे न होने पर क्रोध आता है, और वही क्रोध फिर हिंसा बनता है। तुम्हारे भीतर यह गहराई से बैठा दिया गया है कि जीवन का अर्थ भोग है; और जिस रिश्ते की बुनियाद भोग हो, वहाँ प्रेम नहीं — हिंसा होती है। प्रेम में न कुछ चाहिए होता है, न भोगना होता है। प्रेम तब है जब बिना वजह, निःस्वार्थ, यूँ ही जुड़ जाते हो। अपने में जो पूरा है — सिर्फ वही प्रेम में स्वस्थ संबंध बना सकता है।
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Caste is not in the body, it is just in the mind. If you are interested in somebody’s caste, you are a casteist! You meet someone, the person is standing in front of you — assess him as good, bad, or whatever — but why do you want to know his caste? Caste should have been relegated to the museums and the history books by now. Drop it right now! But to drop it, you will need to have self-knowledge.
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महाभारत में एक दर्जन जगह आया होगा 'अहिंसा परमो धर्म:,’ लेकिन उसमें साथ में आगे कहीं भी नहीं लिखा है कि 'धर्म हिंसा तथैव च।' 'धर्म हिंसा तथैव च' — अहिंसा तो परम धर्म है लेकिन हिंसा भी धर्म है; किसी भी ग्रंथ में कहीं पर भी नहीं लिखा हुआ है। इससे आपके रोंगटे खड़े हो जाने चाहिए कि ये कौन लोग हैं और ये कौन-सी सेंट्रलाइज़्ड जगहें हैं, जहाँ इस तरह की साज़िशें की जा रही हैं। जो उन्होंने जोड़ा है इसी से उनके मंसूबे पढ़िए — वो हिंसा करना चाहते हैं। यहाँ सीधे-सीधे धर्मग्रंथ के साथ पूरी खिलवाड़ ही कर दी गई है।
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‘Pop spirituality’ can include anything — some kriya, snakes, spirits, ghosts — things that can neither be verified nor negated. India had a better name: ‘Adhyatma’, which means ‘self-knowledge’, not ‘spirituality’. And once you realize it's about knowing yourself through self-inquiry, it becomes the ruthless negation of all imaginary products of the ego — with deep respect for facts.
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जाति मानसिक कल्पनाओं और अंधविश्वासों में होती है। आप जैसे ही समझने लग जाते हो कि जाति सिर्फ़ मन का खेल है, फिर जाति पीछे छूटती है। जाति को दो ही चीज़ें तोड़ सकती हैं — पशुता या चेतना। जो ऊँचा उठ गया, वो भी जाति का ख़्याल नहीं करता और जो एकदम गिर गया, वो भी जाति का ख़्याल नहीं करता। अध्यात्म कहता है, सबको इतना उठा दो कि सब एक बराबर हो जाएँ। अध्यात्म ही जाति-प्रथा को मिटा सकता है, और कुछ नहीं।
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Religious violence is not about a handful of terrorists; it's an entire ecosystem of passive toxicity supported by lakhs of people. When toxicity is beamed to you on TV and social media, you don't resist. And one day, it explodes into active violence. This is because we're still animals who live without understanding ourselves — this is called ignorance. Therefore, we need wisdom literature to help us transcend our animal disposition.
धर्म के नाम पर आतंकवाद
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लोकधर्म हमेशा मान्यताओं पर चलता है। एक आतंकवादी अपनी मान्यता के लिए किसी को मार रहा है, क्योंकि जो उसकी मान्यता, उसकी कहानी में विश्वास नहीं करेगा, वो गंदा आदमी है। बहुत सारे बुद्धिजीवी यही कहते हैं कि रिलीजन इज़ वन ऑफ़ द फॉरमोस्ट सोर्सेज ऑफ़ स्ट्राइफ़ एंड कॉन्फ्लिक्ट। धर्म एकता का स्रोत सिर्फ़ तब हो सकता है, जब वो व्यक्ति को सब विभाजनों से दूर कर दे। वेदांत ही शायद एक अकेला है जो ‘ग्रेट यूनिफ़ायर’ है, बाक़ी तो सब तोड़-फोड़ के अड्डे हैं।
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खेल बहुत प्यारी चीज़ है, पर खेल और विज्ञापन दिखाकर सट्टेबाज़ी करने में अंतर है। आज आपको क्रिकेट नहीं, उसके ज़रिए विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं। वही क्रिकेटर और सेलेब्रिटी आपको जुआ खेलने, सट्टा लगाने और पान मसाला खाने के लिए प्रेरित करते हैं। इनका अस्तित्व ही सिर्फ़ इसलिए है कि आपको विज्ञापन दिखाकर लूटते रहें। इससे बचने का एक ही समाधान है—भगवद्गीता, वेदांत और बोध ग्रंथों से जुड़ना।
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There is nothing called ‘positive attitude’ or ‘negative attitude’. All attitudes are enemies of understanding and reality. An intelligent man lives a life free of attitude. Within attitude, you approach reality with a fixed, frozen mindset. When you come to a situation, come to it afresh—not with a ‘positive’ or a ‘negative’ attitude, but with real intelligence.
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We talk about the 10, 20, or 100 indulging in active rioting but not the thousands and lakhs passively supporting them. If those thousands disappeared, would these few rioters survive? Had they known that displaying perverse attitudes in religion’s name would lead to social rejection, would they still dare? We fight because we are animals from jungles, sharing instincts with beasts. We require the Bhagavad Gita to transcend our animal disposition. Otherwise, we will remain violent.