आत्मा न तो शरीर में रहती है, न शरीर का आत्मा से कोई संबंध है || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता (2023)

Acharya Prashant

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आत्मा न तो शरीर में रहती है, न शरीर का आत्मा से कोई संबंध है || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता (2023)

◾ एक ही जाति होती है - वह है "बल"। बल विकसित करो अपने भीतर।

◾ आत्मा का इस पूरे देह व्यापार से कोई लेना देना ही नहीं।

◾ मिथ्याचारी वह है जो आगे के लालच में अच्छा काम करता है।

◾ आत्मा का विकृत सिद्धांत ही भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण है। भारत सत्य की जगह कथाओं का देश होकर रह गया।

◾ शरीर में आत्मा नहीं है। और न ही आत्मा का शरीर से कोई सम्बन्ध है। आत्मा अनंत और निरंजन है।

◾ मेरी-तेरी आत्मा जैसा कुछ भी नहीं होता। हम जिसको आत्मा मान रहे हैं, वह बहुत बड़ा झूठ है।

◾ जीवात्मा माने जीव जिसको आत्मा मानता है - वह है अहंकार। जैसे अहंकार मिथ्या है, वैसे ही जीवात्मा मिथ्या है।

◾ जिसको तुम चेतना कहते हो, वह जड़ से अलग नहीं। जिसको तुम चेतन कहते है उसको परा प्रकृति बोलो, और जिसको तुम जड़ कहते हो उसको अपरा प्रकृति बोलो। लेकिन हैं दोनों प्रकृति ही।

◾ जब जड़ यह जान ले कि वह जड़ है - तब आत्मा है। अगर तुम ये देख पाओ कि तुम पूरे ही जड़ हो, तो तुम जड़ता से मुक्त हो जाओगे।

◾ आत्मा अनासक्त है, अस्पृह है, शांत है। आत्मा की परिभाषा ही यही है कि आत्मा सदैव शांत है।

◾ नाम-रूप, वेश-देश, आकार-प्रकार अलग-अलग होते हैं। आत्मा तो वह महान तत्व है जिसमें परम ऐक्य है।

◾ एकता चाहिए तो उसके पास जाओ न जो एक ही है। जब आत्मा एक है, तो कोई तुमसे छोटा-बड़ा कैसे हो गया?

◾ मन मैला होता है। आत्मा असंग, अद्वितीय और अनंत है। आत्मा मैली नहीं हो सकती।

◾ सब अंतरों को जो पाट दे, उसको कहते हैं आत्मा निरंतर।

◾ अपने मिथ्यात्व को जान लेना ही आत्मा है। और जिस अहम् ने यह जान लिया, वह अहम् ब्रह्म हो गया।

◾ वेदांत में आत्मा और मौन को एक कहा गया है। जब तक हलचल है तब तक मन है, जब सब हलचल मिट जाए तब आत्मा है।

◾ मुक्ति क्या है? इस भ्रम से आज़ाद हो जाना कि तुम हो - यह मुक्ति है। तुम जीवित नहीं हो, तुम मिट्टी हो - यह जानना ही मुक्ति है।

◾ अच्छा काम इसलिए किया जाता है क्योंकि वह अच्छा है - यही गीता का निष्काम कर्म है।

◾ यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके लिए आपको जीव बनना पड़े।

◾ ज्ञान आग है। जैसे अग्नि सब जला देती है; वैसे ही ज्ञान का काम है शुद्ध करना, सब कचड़ा जला देना। ज्ञान एकमात्र तरीका है मुक्ति का।

~ आचार्य प्रशांत 🙏🏻

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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