प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम, मेरा प्रश्न यह है कि जैसे हमारे देश में आस्था और धर्म के नाम पर जो दंगे हो रहे हैं। एक समाज द्वारा पत्थर फेंके जा रहे हैं तथा दूसरे समाज द्वारा अज़ान के विरुद्ध पाँच बार हनुमान चालीसा गायी जा रही है। और साथ-ही-साथ डीजे पर अभद्र लोगों द्वारा जय श्रीराम के नारे लगाए जा रहे हैं। और जिसमें कि मुझे कहीं भी राम की प्रति सम्मान और प्रेम दिखाई नहीं देता है। तो अचार्य जी क्या यह अपने अहंकार वश कर रहे हैं, या सच में उनमें भगवान के प्रति प्रेम है? कृपया इस पर टिप्पणी करें।
आचार्य प्रशांत: टिप्पणी की बहुत आवश्यकता ही नहीं है। आप समझ ही गयीं हैं। वही है जो आप कह रही हैं। इसमें किधर से भी धर्म की कोई बात नहीं है। यह बस अपने अहंकार को ही और इंधन दिया जा रहा है। ना अज़ान वालों की ओर से, ना राम वालों की ओर से। इसमें धर्म कहीं भी नहीं है। धर्म कहीं नहीं है।
मैं बिलकुल नहीं कह रहा हूँ कि इस मुद्दे का कोई आध्यात्मिक आयाम हो ही नहीं सकता। बिलकुल हो सकता है, बात हो सकती है। पर इस मुद्दे पर जो लोग उछल-कूद मचा रहे हैं। इस पक्ष से, उस पक्ष से, कहीं से भी, और चाहे राजनैतिक हल्कों से। उनमें से किसी को भी धर्म से कुछ लेना देना है ही नहीं।
वास्तव में यह लोग परेशान हो जाएँगे अगर इनके सामने वास्तविक धर्म रख दिया जाए। यह लोग यहाँ मौजूद हों, और इनके हाथों में उपनिषदों की, या अष्टावक्र गीता की प्रति रख दी जाए, ये बेचैन हो जाएँगे। इनसे पढ़ा नहीं जाएगा।
यह तो बस धर्म के नाम का इस्तेमाल करते हैं अपने स्वार्थ साधने के लिए। और उसका बड़ा दुष्परिणाम एक यह होता है कि जो लोग बिलकुल बीचो-बीच खड़े होते हैं, अनिर्णय की अवस्था में, फ़ेंस सिटर्स (जिसने अभी तक कोई पक्ष नहीं चुना है) जिनको बोलते हैं। जो सोच रहे होते हैं कि, धर्म को जीवन में रखे या त्याग ही दे, धर्म किसी काम का है भी या नहीं। जब वह धर्म का ऐसा विकृत रूप देखते हैं, तो धर्म से दूर हो जाते हैं। धर्म का अर्थ ही बन जाता है दंगेबाज़ी, फ़साद, नारेबाज़ी, घृणा। इन लोगों से पूछो तुम्हारे धर्म में भगवद्गीता है कहीं? एक बार पढ़ी भी है? एक श्लोक का भी अर्थ बता दो? इन्हें कोई मतलब नहीं होगा। इनके लिए धर्म का अर्थ होता है, एक सामुदायिक भावना। एक तरह की गिरोहबंदी। एक कबीलाई मानसिकता। यह मेरा कबीला है, यह तुम्हारा कबीला है, और हम दोनों आपस में लगातार लड़ते रहते हैं, लड़ते रहते हैं।
मैं लड़ाई करने से इनकार नहीं कर रहा। मेरा प्रिय ग्रंथ है, श्रीमद्भगवद्गीता। जिसमें युद्ध ही युद्ध है। मैं बिलकुल नहीं कह रहा कि धर्म की रक्षा के लिए युद्ध मत करो। मैं तो कह रहा हूँ प्रतिपल जीवन युद्ध ही है। युद्ध तो करना ही करना है। युद्ध से पीछे कैसे हट सकते हैं। लेकिन मैं कह रहा हूँ कि यह लोग जिस तरह का युद्ध कर रहे हैं, उसमें धर्म कहीं नहीं है। धर्म की रक्षा के लिए भी युद्ध करे जाते हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि जितने युद्ध हो रहे हैं दुनिया में, वह सब धर्म के ख़ातिर हो रहे हैं।
मैं यह भी नहीं कह रहा हूँ कि आध्यात्मिक व्यक्ति को जीवन में कभी शस्त्र ही नहीं उठाने चाहिए। जब कृष्ण अर्जुन को कह सकते हैं कि उठाओ गांडीव। यह क्या कमज़ोरी है? यह क्या बता रहे हो, कि हाथ पाँव काँप रहे हैं, त्वचा जल रही है, लड़ा नहीं जाएगा, मैं गांडीव रख रहा हूँ, रथ में पीछे जाकर बैठ रहा हूँ। यह सब नहीं चलेगा। उठाओ गांडीव और युद्ध करो। और युद्ध ही भर नहीं बोलते, जब भीष्म सामने है तो कहते हैं, ‘वध करो’। कर्ण सामने है, अर्जुन कहते हैं, ‘मुझसे नहीं होगा। वह रथ से नीचे उतरा हुआ है। उसके हाथ में धनुष भी नहीं है’। कहते हैं, ‘वध करो’। अध्यात्म में ना युद्ध की मनाही है, ना वध की मनाही है। लेकिन अध्यात्म कहीं हो तो सही।
यह पत्थर फेंकने में, यह उल-जलूल नारे लगाने में। और जैसा आपने कहा कि डीजे लगा करके, उल्टे-पुल्टे गाने लगा करके, उसमें राम के, कृष्ण के, शिव के नाम पर नाचने में, इसमें थोड़े ही धर्म कहीं पर है। यह तो धर्म का अपमान है। चाहे वह यह बात हो कि महाशिवरात्रि आई नहीं की रात-रात भर तमाम तरह का नाच-गाना, फिज़ूल फिल्मी गाने चल रहे हैं, उस पर टाँग उठा-उठाकर के नाच रहे हैं। भाँग, गांजा, धतूरा यह सब कुछ शिव के नाम पर हो रहा है। इसमें शिव कहाँ है भाई? क्यों शिव का अपमान कर रहे हो यह सब कुछ करके? यह तो अहंकार अपनी हेकड़ी दिखा रहा है। समझ में आ रही है बात?
आप "जय श्री राम" जब बोल रहे हो, उसमें राम के प्रति आपकी भक्ति और समर्पण और निष्ठा देख रहे हैं या आपके अहंकार की अनुगूंज? और वह अहंकार भी क्या सड़ा हुआ अहंकार। किस बात का अहंकार? कौन हो तुम? क्या तुम्हारे जीवन की आंतरिक उपलब्धियाँ हैं? कितना तुमने स्वयं को जीता है? क्या तुमने संसार में अर्जित किया है? कुछ नहीं। पर अहंकार बहुत बड़ा। यह वह अहंकार है जो दुनिया में कुछ नहीं कर सकता, ना वह अपने आंतरिक जगत में कुछ कर सकता है। तो उसको एक सुविधापूर्ण तरीक़ा मिल गया है, अपने आपको यह बताने का कि हम भी कुछ हैं।
बल, शक्ति दो जगह से आते हैं। जो निचली जगह है वह यह है कि दुनिया में कुछ हासिल कर लो तो ताक़त मिल जाती है। जो ऊँची जगह है वह यह है कि अपने भीतर कुछ हासिल कर लो तो वहाँ से ताकत मिल जाती है। और इन दोनों से भी एक बहुत गई-गुज़री जगह है, वह यह है कि कुछ मत हासिल करो, बस झूठ-मूठ का धार्मिक उन्माद फैलाना शुरू कर दो, “अल्लाह-हू-अकबर” बोलकर, कभी “जय श्री राम” और उससे फिर ताक़त मिल जाती है।
ऊँची-से-ऊँची बात है, धर्म। और यह अक्षम्य अपराध है यदि धर्म का इस्तेमाल किया जाए किसी निचले उद्देश्य को साधने के लिए। निचला उद्देश्य क्या? अहंकार। एक बहुत छोटी-सी, घटिया चीज़ के लिए आपने इतनी ऊँची चीज़ को दाँव पर लगा दिया, उस पर गंदी छींटे डाल दिए। क्या माफ़ करा जाए आपको?
और एक बात और बताता हूँ। जब असली धर्म युद्ध का समय आएगा ना, तब यह सब दंगाई, फ़सादी, यह कहीं नज़र नहीं आएँगे। क्योंकि इनमें दम ही नहीं है असली लड़ाई लड़ने का। शोर मचाना एक बात है, और अर्जुन हो जाना बिलकुल दूसरी बात। अर्जुन हो जाने का मतलब समझते हो? मोह, आसक्ति, जितने भीतर बंधन होते हैं सबको काटना। अर्जुन के बाणों की दिशा बाहर की ओर थी, चोट उसे यहाँ (अपने सीने की ओर इशारा करते हुए) लगती थी। सामने उसके स्वजन थे, मित्र थे, गुरु थे, पितामह थे उनपर बाण चलाना आसान नहीं था। हर बाण के साथ अर्जुन को चोट लग रही थी। जब असली युद्ध का समय आएगा तब यह दंगाई कहीं नज़र नहीं आएँगे। क्योंकि इनमें दम ही नहीं है अपने ऊपर चोट खाने का। अपने ऊपर चोट खाने का मतलब यह नहीं होता कि हाथ पे चोट लग गयी, कंधे पर चोट लग गयी। अहंकार पर चोट लगना। अपना मोह छोड़ने को तैयार हो? कृष्ण की कठपुतली बनने को तैयार हो?
झूठी लड़ाईयों का बड़ा दुष्परिणाम यह होता है कि उनको जीत भी लो तो कुछ हासिल नहीं होगा। और झूठी लड़ाईयों में फँसे रह कर तुम बड़ी और सच्ची लड़ाई कभी लड़ ही नहीं पाते। आज धर्म निसंदेह ख़तरे में है, पर उसको बड़े-से-बड़ा ख़तरा बाहर से नहीं है, भाई। उसको बड़े-से-बड़ा ख़तरा भीतर से है।
आप हिंदू मुसलमान करते हो, न। आप कहते हो, यह सब जो दूसरे धर्मों के लोग हैं, विशेषकर मुसलमान है, इनसे बड़ा ख़तरा आ गया है। आप कहते हो इतने सौ करोड़ हिंदू हैं, और इन को ख़तरा है इतने करोड़ दूसरे धर्मावलंबियों से। मैं पूछ रहा हूँ सौ करोड़ हिंदू कहाँ हैं मुझे दिखाओ?
तुम्हें बात ही नहीं समझ में आ रही। सौ करोड़ हिंदू हैं कहाँ? मुझे दो लाख हिंदू दिखा दो, मैं एहसान मानूँगा। यह है सबसे बड़ा ख़तरा। यह ख़तरा आपको दिखाई नहीं दे रहा। आपको ख़तरा दिखाई दे रहा है मुसलमानों से और ईसाइयों से। मुझे दिखाओ सौ करोड़ हिंदू कहाँ है। यह जो सड़क पर घूम रहे हैं, लड़के-लड़कियाँ आज की पीढ़ी के, और भारत की अधिकांश जनसंख्या तो जवान ही है। यह किस दृष्टि से हिंदू हैं?
अभी हम नॉलेज पार्क में है यहाँ। सब यहीं हैं युवा लोग। नाम के अलावा इनमें हिंदू जैसा क्या है मुझे बताओ? यह हिंदू कैसे हैं? इन्होंने तुम्हारा कौन सा ग्रंथ पढ़ा है? यह तुम्हारी संस्कृति के किन तत्वों से परिचित हैं? बताओ मुझे। इनमें उपनिषदों की प्रति प्रेम है, इनमें गीता, राम, कृष्ण, शिव किसके प्रति प्रेम है, मुझे बताओ? और आपने इनको जो नाम भी दे रखा है ना जिससे भारतीयता की ज़रा सूचना आती है, यह तो इस नाम को भी नहीं रखना चाहते।
कोई भी नाम हो, हो ही नहीं सकता इस समय किसी भी जवान आदमी का कोई पाश्चात्य उपनाम जैसा ना रख दिया हो। वेस्टर्नाइज़्ड निकनेम (पाश्चात्य उपनाम), जवान लोग सुन रहे हैं, समझ में नहीं आएगा पाश्चात्य माने क्या होता है। कोई भी आप नाम बता दीजिए। चलिए कर लेते हैं। किससे शुरू करें? यह बैठा है, हाँ भाई संदीप। संदीप, यह सैंडी है। कोई भी, आप नाम बताइए ना। यह हिंदू है? यह इतना बड़ा ख़तरा आपको दिखाई नहीं दे रहा? हिंदुओं की काया हो सकती है सौ करोड़ की। भीतर-भीतर कोई हिंदू बचा कहाँ है।
बोलो!
भगवान कहाँ है? आप कहते हो भगवान को मानते हैं। भगवान कहाँ है? एक ही भगवान है, सफलता और पैसा। और अगर जवान आदमी है तो सेक्स। कहाँ है? धर्म कहाँ है?
आपका क्या नाम है?
श्रोता: अंकुर।
आचार्य: ऍंकी। अंकुर हो गया, ऍंकी। आप कुछ थोड़ा सा विचार करिए ना, क्यों ज़रूरी है अंकुर का ऍंकी बनना? यह घृणा है अपनी भारतीयता से, अपनी जड़ों से, अपने धर्म से घृणा है। आपको यहाँ ख़तरा नहीं दिखाई दे रहा।
हमें घर-घर उपनिषद कार्यक्रम क्यों करना पड़ रहा है? उपनिषद कोई विरल, लुप्त ग्रंथ नहीं है। आसानी से मिल सकते हैं। पर हमें थमाने पड़ रहे हैं लोगों के हाथ में। क्योंकि थमाओ नहीं तो कोई पढ़ने को राज़ी नहीं है। आपको यहाँ ख़तरा नहीं दिख रहा? आपको ख़तरा दिख रहा है मस्जिद से आता हुआ? मस्जिद से ख़तरा आ रहा है कि नहीं आ रहा है, यह एक अलग विचार का, विवाद का विषय हो सकता है। वह विचार अलग से कर लेंगे। वह मुद्दा अलग है। लेकिन बड़ा ख़तरा जहाँ है आप उसकी बात क्यों नहीं कर रहे हैं?
हाँ जी, आपका क्या नाम है?
श्रो: अक्षय।
आचार्य: अक्की या एक्स। एस (s) लगा देने से बड़ा कूल हो जाता है सब कुछ, अंत में एस लगा दो। यह यतेंद्र जी थोड़े ही बैठे हैं, ये येट्स बैठे हैं। कोई वजह होगी ना कि यह हो रहा है। पैदा हुए गोरखपुर में, दादा ने नाम रख दिया, गोवर्धन। वो घूम रहे हैं, बता रहे हैं मेरा नाम है, गोवा। गोवा? गोवर्धन गोवा बन गया। यहाँ ख़तरा नहीं समझ में आ रहा?
हमारा हिंदी चैनल है उस पर — मैं तमिल भाषियों की, कन्नड़ भाषियों की बात नहीं कर रहा — हमारे यूपी, बिहार के लड़के-लड़कियों के आते हैं (कमेंट्स), क्या? आप वीडियो का टाइटल (शीर्षक) अंग्रेज़ी में भी लिख दिया करें। हिंदी सुनने में समझ में आती है, हम लेकिन देवनागरी पढ़ नहीं पाते। यह देवनागरी अब पढ़ नहीं पाते।
और यह साधारण लोगों का ही हालभर नहीं है। अभी मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी परसों ही गया था। उन लोगों ने एक समारोह रखा था, अद्वैत समारोह करके। तो उसमें, बड़ा अच्छा कार्यक्रम था, सबसे पहले उनकी प्रशंसा करूँगा। उसमें लेकिन जो उद्घोषिका थीं, वह बच्ची, वह बोल रही है, ‘यह कार्यक्रम किया गया है ताकि आप सबको अध्यात्म से वंचित करा जा सके।’ उसको वंचित और परिचित में अंतर ही नहीं पता। कह रही है ‘आपको वंचित कराने के लिए यह कार्यक्रम किया जा रहा है।’ मैं बैठा हूँ, बगल में खड़ा हूँ, ताक रहा हूँ, ‘अरे!’ यहाँ आपको ख़तरा नहीं दिखाई दे रहा?
बात हँसने की नहीं है। आपके अपने बच्चे स्कूलों में जा रहे होंगे जहाँ पर हिंदी बोलने पर जुर्माना लगता है। और जहाँ हिंदी पढ़ाई भी नहीं जाती। यह अंग्रेज़ी में पढ़ेंगे भगवद्गीता, आपको वाक़ई ऐसा लगता है? लगता है क्या?
कौन से सौ करोड़ हिंदू? कहाँ है? आप पगला जाते हैं अगर पाँच-दस हिंदुओं का धर्मांतरण हो जाए तो। आप कहते हो, ‘अरे दस चले गए, दस चले गए’। यहाँ सौ करोड़ जा रहे हैं, वह आपको नहीं दिखाई दे रहा।
पॅप्स एंड माॅम्स (पिता और माँ)। बड़ा अच्छा लगता है ना, जब बिटिया रानी बोलती है, पॅप्स। वह पॅप्स बोल रही है तो भीतर कोई अलार्म नहीं बजता?
हाँ, यह पढ़लें कि किसी की लड़की ने धर्म परिवर्तन कर लिया, तो लगता है कि बिलकुल अभी बंदूक उठा लेते हैं। धर्म परिवर्तन सिर्फ़ तब है जब कोई औपचारिक घोषणा ही कर दे? जब फॉर्मल अनाउंसमेंट हो जाए तभी होता है धर्म परिवर्तन? और कोई घोषणा ना करे, और भीतर-ही-भीतर धर्म को पूरी तरीक़े से छोड़ चुका हो, तब नहीं हुआ धर्म परिवर्तन?
बोलिए, बोलिए!
किसी ने ऊपर-ऊपर यह लिखना जारी रखा, कि मेरा धर्म है, हिंदू धर्म। लेकिन भीतर से उसने सनातन भाव को कब का त्याग दिया। इसको आप धर्म परिवर्तन नहीं गिनेंगे क्या?