Patriotism

राष्ट्रवाद: वेदांत के ज्ञान से सेना के सम्मान तक
राष्ट्रवाद: वेदांत के ज्ञान से सेना के सम्मान तक
36 min

प्रश्नकर्ता: मैं मूलतः बिहार से हूँ, पर पिछले पंद्रह वर्ष से दिल्ली में हूँ। मेरे छोटे बेटे ने अपनी अधिकांश शिक्षा दिल्ली से ली है, और अब वो दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ रहा है। हमारे पिताजी सेना में थे, युद्ध भी लड़े थे, और हमारे घर में फ़ौज और सेना

What is patriotism? || Acharya Prashant, with youth (2013)
What is patriotism? || Acharya Prashant, with youth (2013)
12 min

Questioner (Q): Sir, how to differentiate between these two things – being patriotic, and to not to identify with an identity?

If we say that we are patriotic to our country, this means that we are involved with an identity that is – being an Indian. So how to differentiate

Non-violence is to fight that which makes you forget the Truth || On Advait Vedanta (2019)
Non-violence is to fight that which makes you forget the Truth || On Advait Vedanta (2019)
8 min

Questioner: The Sikh Gurus gave swords to the Khalsa to protect their religion. Gandhi Ji used non-violence to get freedom for the Indians. Jainism, too, gives a lot of emphasis to non-violence. I don’t understand the concept of non-violence in this context. Kindly give me clarity.

Acharya Prashant: Non-violence is

What Makes India a Nation?
What Makes India a Nation?
9 min

Questioner (Q): Sir, in what ways the youngsters of today have lost the love for the nation?

Acharya Prashant (AP): You cannot love someone or something you know very little of. The nation at its root represents a community of people united through certain values. For someone to

Why does man make countries? What is patriotism? || Acharya Prashant, with youth (2014)
Why does man make countries? What is patriotism? || Acharya Prashant, with youth (2014)
12 min

Listener: Sir, can you give your views on nationalism and patriotism?

Speaker: See, man always requires something to separate him from others. In this separation is the protection of his ego. If I were just the same as you, how will you say that I am ‘I’ and you are

आचार्य विनोबा भावे - जीवन वृतांत
आचार्य विनोबा भावे - जीवन वृतांत
4 min

🔥 “मैं तुम्हें प्यार से लूटने आया हूँ” 🔥

देश को आज़ाद हुए 4 साल ही हुए थे, और 75% आबादी कृषि संबंधित कार्यों से जीवनयापन कर रही थी।

लेकिन एक बहुत विचित्र बात थी : कृषि क्षेत्र में काम कर रहे अधिकतर लोगों के पास अपनी ज़मीन ही

भगत सिंह - जीवन वृतांत
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3 min

भगत सिंह कहते थे "बहरे कानों तक अपनी आवाज़ पहुँचाने के लिए अक्सर धमाकों की ज़रूरत पड़ती है। "

लेकिन उनको कहाँ पता था कि लोगों की स्मृति इतनी कमज़ोर है कि उनके जाने के बाद वे सिर्फ़ उनका 'धमाका' ही याद रखेंगे। और उनको भूल जाएँगे, उनके

आज भगतसिंह क्यों नहीं पैदा होते?
आज भगतसिंह क्यों नहीं पैदा होते?
39 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम!

आचार्य प्रशांत: जी।

प्र: अभी रात के बारह बज गये हैं। शहीद दिवस शुरू हो चुका है। और पिछले कुछ दिनों से मैं भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु — इनके विषय में पढ़ने की कोशिश कर रहा था। तो मेरे पास एक किताब आई जिसमें भगत सिंह

भारत या इंडिया? (और मानसिक गुलामी के 5 लक्षण) || आचार्य प्रशांत (2023)
भारत या इंडिया? (और मानसिक गुलामी के 5 लक्षण) || आचार्य प्रशांत (2023)
1 min

प्रसंग:

भारत या इंडिया? इंडिया से नाम बदलकर भारत रखना चाहिए क्या? क्या इंडिया नाम विदेशियों ने दिया है? क्या है इंडिया और भारत का इतिहास? क्या देश का नाम बदलना आवश्यक है? कॉलोनाइजेशन और डी-कॉलोनाइजेशन क्या हैं? क्यों कहा जाता है कि भारत का कॉलोनाइजेशन हुआ है? भारत को

क्या भारत अपने सिद्धांतों के कारण पड़ोसी देशों से पिछड़ गया? || (2020)
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34 min

प्रश्नकर्ता: रोज़मर्रा की ज़िंदगी में ऐसे तमाम उदाहरण मिलते रहते हैं जो साबित करते हैं कि छल, कपट, बेईमानी के साथ भी सुख से जिया जा सकता है। मैं पड़ोसी देश पाकिस्तान को देखती हूँ तो पाती हूँ कि उसने हमेशा ही छल, कपट, बेईमानी, झूठ का सहारा लिया है

भारतीय युवाओं में अपनी संस्कृति के प्रति अज्ञान और अपमान क्यों?
भारतीय युवाओं में अपनी संस्कृति के प्रति अज्ञान और अपमान क्यों?
48 min

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, हम भारतवासी अपनी संस्कृति और विरासत को लेकर गौरव क्यों नहीं अनुभव करते? खासकर युवा पीढ़ी में तो गौरव छोड़िए बल्कि अपनी संस्कृति और अतीत को लेकर थोड़े अपमान का भाव है।

आचार्य प्रशांत: आप पूछ रहे हैं भारतवासी अपनी संस्कृति को और अपनी विरासत को

हिंदी को नहीं अपनी हस्ती को अपमानित कर रहे हो
हिंदी को नहीं अपनी हस्ती को अपमानित कर रहे हो
27 min

हिंदी की क्या औकात? अपमानित भाषा! तो भौतिक कारण समझ में आ रहा है? नल की टोटी ठीक करने की शिक्षा भी अंग्रेजी में हीं मिलेगी। डॉक्टर तो डॉक्टर तुम कंपाउंडर भी अंग्रेजी में ही बन सकते हो और यदि बहुत हठ दिखाओगे तो 'भाषायी-आतंकी' कहलाओगे। "देखो इनको! ये भाषा

विदेशी कंपनियाँ और बाज़ारवाद: पतन भाषा, संस्कृति व धर्म का || आचार्य प्रशांत (2020)
विदेशी कंपनियाँ और बाज़ारवाद: पतन भाषा, संस्कृति व धर्म का || आचार्य प्रशांत (2020)
18 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, नमस्ते। इतिहास है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के कारण हमने बहुत ग़ुलामी झेली। आज अनेकों विदेशी कंपनियाँ हैं बाज़ार में, क्या वो भी ग़ुलाम बना रही हैं हमें? आर्थिक पक्ष तो एक तरफ़ है, मैं आपसे समझना चाहता हूँ कि इन कंपनियों का हम पर मानसिक और

क्या राष्ट्रवाद हिंसक है, और सेना हिंसा का माध्यम?
क्या राष्ट्रवाद हिंसक है, और सेना हिंसा का माध्यम?
36 min

स्वयंसेवी: अनिल ठाकुरी और अनिकेत तमराकर से दो अलग-अलग प्रश्न हैं, जिनको संयुक्त कर दिया गया है। कह रहे हैं कि हाल में आपका वीडियो सुना, शीर्षक था: "वेदान्त के ज्ञान से, सेना के सम्मान तक"। मेरे मन में कई प्रश्न उठ रहे हैं। पहला, देशों की और जमीन के

कुछ लोग राष्ट्रवाद को बुरा क्यों मानते हैं? || आचार्य प्रशांत (2020)
कुछ लोग राष्ट्रवाद को बुरा क्यों मानते हैं? || आचार्य प्रशांत (2020)
14 min

प्रश्न: नमस्कार, राष्ट्रवाद के बारे में आपका क्या कहना है?

आचार्य प्रशांत: शब्द एक है, राष्ट्रवाद, पर मोटे तौर पर इसके अर्थ दो हैं। दोनों को अलग-अलग समझना पड़ेगा।

इंसान के पास हमेशा दो रास्ते होते हैं न, वैसे ही समझ लो बहुत सारे शब्द हैं जिनके उन्हीं दो रास्तों

हिंदी से दूर करके बच्चे की जड़ें काट रहे हो || आचार्य प्रशांत (2019)
हिंदी से दूर करके बच्चे की जड़ें काट रहे हो || आचार्य प्रशांत (2019)
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प्रश्नकर्ता: हिंदी भाषा का जीवन में क्या महत्व है? युवाओं में हिंदी भाषा के प्रति पूर्ण सम्मान व स्वीकार क्यों कम देखने को मिलता है? भारत की संस्कृति में हिंदी भाषा का क्या महत्व व योगदान रहा है?

आचार्य प्रशांत: देखिए, आपका बच्चा भारतीय संस्कृति सीखे, ना सीखे, यह कोई

भारत क्या है? भारतीय कौन? || आचार्य प्रशांत (2020)
भारत क्या है? भारतीय कौन? || आचार्य प्रशांत (2020)
12 min

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम।

हम लोगों का देश के प्रति जो लगाव होता है, जो प्रेम होता है, और जैसा कि हम सब कहते भी हैं कि हमारा देश महान है, मुझे अपने देश के लिए ये करना है, वो करना है—सर्वप्रथम, आख़िर यह देश है क्या?

क्या हमारा देश,

दूसरे देशों के अंधविरोध-बहिष्कार का नाम देशभक्ति नहीं || (2020)
दूसरे देशों के अंधविरोध-बहिष्कार का नाम देशभक्ति नहीं || (2020)
9 min

प्रश्नकर्ता: मैं बचपन से ही देशभक्ति के माहौल में पला-बढ़ा हूँ, और ख़ुद भी देशभक्त हूँ। पर साथ-ही-साथ मेरे मन में विदेश जाने की भी इच्छा रहती थी। मैंने स्वयं को बहुत समझाया और ये विचार अपने मन से निकाल दिया। मैं वेस्टर्न क्लासिकल म्यूज़िक (पाश्चात्य शास्त्रीय संगीत) का बहुत

अगर देश के लिए खेलने का अरमान हो || आचार्य प्रशांत (2019)
अगर देश के लिए खेलने का अरमान हो || आचार्य प्रशांत (2019)
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प्रश्नकर्ता: मैं एक जिला-स्तरीय क्रिकेट खिलाड़ी हूँ। मेरे जीवन में ढर्रे हैं और वो मुझे खेल में आगे बढ़ने से बहुत रोक रहे हैं। तो एक युवा होने के नाते किस तरीके से मैं आगे अनुशासन के साथ इस खेल में उतर सकता हूँ? मैं देश के लिए खेलना चाहता

केसरी फ़िल्म, कैसे और बेहतर हो सकती थी? || (2019)
केसरी फ़िल्म, कैसे और बेहतर हो सकती थी? || (2019)
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, केसरी फ़िल्म के बारे में कुछ कहें। क्या ये फ़िल्म और बेहतर हो सकती थी? कैसे?

आचार्य प्रशांत: वीरता भी यकायक नहीं आती। वीरता भी अभ्यास माँगती है।

आपने अभी केसरी फ़िल्म की बात की।

इक्कीस नौजवान सिपाही यूँही नहीं भीड़ गए होंगे दस हज़ार अफ़गानों से।

वास्तविक स्वतंत्रता राष्ट्र की नहीं, व्यक्ति की होती है || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
वास्तविक स्वतंत्रता राष्ट्र की नहीं, व्यक्ति की होती है || आचार्य प्रशांत, युवाओ के संग (2012)
14 min

प्रश्न : आचार्य जी, हमारे देश कि जो सेना है, उनमें अगर राष्ट्रप्रेम न हो, देश की चिंता न हो, तो हम कोई भी जंग कैसे जीत सकते हैं?

आचार्य प्रशांत : जब तुम अपने छोटे भाई से लड़ते हो तो वो बुरा माना जाता है, जब तुम अपने पड़ोसी

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The entire Bhagavad Gita is devoted to Freedom from the conditioning of the body and the conditioning of the mind. Gita is about letting Arjuna know who he is. In a very liberal way, Shri Krishna says, "If you realize who you are, then you will know what to do. I do not need to instruct you. So Arjuna is not even being motivated, let alone being instructed. He's being illuminated." And that illumination enables him to do what he must.
श्रीमद्भगवद्गीता दूसरा अध्याय २, श्लोक 15-24
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मनुष्य की देह होने भर से आपको कोई विशेषाधिकार नहीं मिल जाता, यहाँ तक कि आपको जीवित कहलाने का अधिकार भी नहीं मिल जाता। सम्मान इत्यादि का अधिकार तो बहुत दूर की बात है, ये अधिकार भी नहीं मिलेगा कि कहा जाए कि ज़िन्दा हो।
Is Pop Religion Compatible With the Gita?
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The center of the Gita is 'Nishkamta'—desireless action stemming from self-knowledge. Whereas popular religion is all about the fulfillment of desire. We go to a supernatural power and beg him to grant our desires. That is popular religion. You can either have the Gita or the entirety of religion as practiced in common culture. They are totally incompatible.
Swami Vivekananda: Struggle, Resilience, and Legacy
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Despite the popular notion that his visit to Chicago in 1893 was universally celebrated, he faced significant opposition, especially from orthodox Indian and American religious groups who criticized his attire, language, and eating habits. In a letter to Haridas Viharidas Desai in 1894, Swami ji sharing his frustration with the destructive behavior of slanderers wrote, “The whole world is full of mischief-makers and faultfinders. Every successful man must have their bands at his heels. These parasites, in the shape of critics, will eat up all that you can do, and in return, will leave you their load of dirt to carry.”
भगवद गीता – अध्याय 2 (सांख्य योग), श्लोक 5-11
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गुरूनहत्वा हि महानुभावान् श्रेयो भोक्तुं भैक्ष्यमपीह लोके। हत्वार्थकामांस्तु गुरूनिहैव भुञ्जीय भोगान्तधिरप्रदिग्धान् ।।५।।

“मैं तो महानुभाव गुरुओं को न मारकर, इस लोक में भिक्षान्न भोजन करना कल्याणकर मानता हूँ, क्योंकि गुरुओं का वध करके मैं रक्त से सने हुए अर्थ और काम रूपी भोगों को ही तो भोगूँगा।“

~ श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक

ऐसे देखो अपनी हस्ती का सच
ऐसे देखो अपनी हस्ती का सच
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कह रहे हैं कि ये तुमने जो तमाम तरह की कहानियाँ गढ़ ली हैं, ये कहानियाँ तुम्हारे अंजन का ही विस्तार हैं, निरंजन की कोई कथा नहीं हो सकती। सारी समस्या तब होती है जब धर्म में कथाएँ घुस जाती हैं। जितनी तुमने किस्से बाज़ियाँ और कहानियाँ ये खड़ी की हैं, इन्होंने ही तुम्हारे धर्म को चौपट कर दिया है। श्रीराम को निरंजन ही रहने दो, श्रीकृष्ण को भी निरंजन ही रहने दो। जैसे ही तुमने गोपी संग गोविंद बना दिया, वैसे ही मामला अंजन का हो गया। गोविंद को गोविंद रहने दो, गोपियाँ मत लेकर के आओ।
ऐसे नहीं प्रसन्न होंगी देवी
ऐसे नहीं प्रसन्न होंगी देवी
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दुर्गासप्तशती का केंद्रीय संदेश यही है — प्रकृति को भोगोगे, प्रकृति को कंज़म्पशन की चीज़ मानोगे तो देवी तुम्हारा वही हाल करेंगी जो चंड-मुंड, मधु-कैटभ और शुंभ-निशुंभ का किया था। महिषासुर कौन है? जो प्रकृति को कंज्यूम करने निकलता है। जो कहता है, मैं मौज करूँगा प्रकृति को भोगकर। वही महिषासुर है। देवी का त्योहार इसलिए थोड़े ही आता है कि हम खुद ही महिषासुर बन जाएँ। आपसे निवेदन करता हूँ आपकी मौज किसी की मौत न बने।
भारत की शिक्षा व्यवस्था इतनी पीछे क्यों?
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आजकल खूब चल रहा है, “भारत विश्व गुरु है।” अरे! जब तुम गुरु हो ही तो तुम शिक्षा लेकर क्या करोगे। ये अगले स्तर का धोखा है कि हम तो पहले ही सबसे आगे हैं, तो अब आगे जाने की ज़रूरत क्या है। और अगर कोई अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट आ जाए जो बता दे, भारत में शिक्षा का स्तर क्या है या मानव अधिकार का स्तर क्या है, तो बोल दो, ‘ये रिपोर्ट तो विदेशी प्रोपेगेंडा है। ये तो सब गोरे लोग हमारी तरक्की से जलते हैं, इसलिए वो दिखाते हैं कि भारत में हालत खराब है। गोरे लोग, गरीब ये, भूख से मर रहे हैं, भारत की खुशहाली से जल रहे हैं ये।
This is what makes India a Nation
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India is a spirit. The spirit that you find in Vedanta, the spirit that does not impose anything on the mind, a spirit that just asks, asks. The spirit that says I want to know. Does not say I already know, does not say my beliefs are correct, says no I'm prepared to question everything. I'll not let any consideration be too much on me. Nothing is bigger than truth and that's why you see India knows love.
छोटे बच्चे की बलि: कितनी जानें लेगा अंधविश्वास?
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पता किसी को नहीं है, खर्च सबको करना है। ये सुपरस्टिशन है। बात सिर्फ़ भूत-प्रेत, डायन, चुड़ैल की नहीं है, दूल्हा-दुल्हन की भी है। या तो उनको ही बोल लो। पर जो कुछ भी तुम्हारी जिंदगी में चल रहा है और तुम्हें कुछ पता नहीं है कि मामला क्या है, वो सब अंधविश्वासी ही है, और बहुत दूर तक जाता है। सोचो सात साल का बच्चा रहा होगा और किसी अनपढ़ ने नहीं मारा, प्रिंसिपल (प्राचार्य) ने मारा है।
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 39-47
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 39-47
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आचार्य प्रशांत: हम देखेंगे कि श्रीकृष्ण अर्जुन के सब भावुक, मार्मिक वक्तव्यों को किस प्रकाश में देख रहे हैं। तो अपनी ही मोहजनित पीड़ा को आगे अभिव्यक्त करते हुए कहते हैं अर्जुन कि

यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतस:। कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।।

कथं न ज्ञेयम स्माभि: पापादस्माननिवर्तितुम। कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यदिर्जनार्दन।।

भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 20-39
भगवद गीता - अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 20-39
54 min

आचार्य प्रशांत: तो शंखनाद होता है दोनों सेनाओं की ओर से। और संजय बताते हैं कि शंखनाद ने विशेषतया धृतराष्ट्र के पुत्रों के, कौरवों के हृदय में हलचल कर दी। मन उनके कम्पित हो गये, हृदय विदीर्ण हो गया। ये सुनने के बाद अब आते हैं दूसरे पक्ष पर। अर्जुन

How to Honor Dead Ancestors?
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12 min
The best way to honor your ancestors is by becoming what they were destined to be — which Shri Krishna calls your Niyati or Liberation. Liberate yourself from ignorance and help the entire planet. That should be the meaning of Shraddh. Instead, it has become an elaborate ceremony of superstition, with beliefs about souls floating in other universes, being hungry, and talk of crows, sparrows, and crude myths.
सोशल मीडिया, पॉडकास्ट और तंत्र-मंत्र का खेल
सोशल मीडिया, पॉडकास्ट और तंत्र-मंत्र का खेल
31 min
आपने कोई किताब नहीं पढ़ी, आप बैठकर पॉडकास्ट देख रहे हो। आप जो-जो बोला जा रहा है, पहले तो आपको पता नहीं चलेगा कि वो जो आदमी वहाँ बैठा है, वो यूँही कोई फ्रॉड, फ़र्जी है या कोई असली आदमी है। ज़्यादातर जो लोग आते हैं, वो फ्रॉड ही होते हैं। और दूसरी बात, अगर वो मान लो असली आदमी भी है जो पॉडकास्ट में बैठा है, तो उसकी बात आपको समझ में नहीं आएगी क्योंकि आपकी अपनी तो कोई प्रिपरेशन, कोई ग्राउंडिंग है ही नहीं। आपने आज तक कोई किताब नहीं पढ़ी, तो वो जो बोल रहा है, वो समझ में भी नहीं आएगा।
शिक्षा के नाम पर ये सब?
शिक्षा के नाम पर ये सब?
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भारत में इतनी सदियाँ, शताब्दियाँ बीती हैं, पुराना राष्ट्र है हमारा। ज्ञान-विज्ञान में निश्चित रूप से कुछ बड़ी उपलब्धियाँ हासिल करी हैं। उनके बारे में बताना एक बात है। आप आर्यभट्ट के बारे में बता रहे हैं, आप वराहमिहिर के बारे में बता रहे हैं, या कि आप महर्षि पाणिनी के बारे में बता रहे हैं, ये एक बात होती है। और आप भारत में क्या-क्या प्रथाएँ परंपराएँ रही हैं और भारतीयों ने क्या-क्या बातें मान्यता के तौर पर मानी हैं, अंधविश्वास के तौर पर मानी हैं, उनको आप बता रहे हैं छात्रों को; ये दो बहुत अलग-अलग बातें हैं।
Is the Concept of Afterlife Just a Fear-Based Belief?
Is the Concept of Afterlife Just a Fear-Based Belief?
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There has to be somebody. The question that Vedanta would ask is for whom? For whom is heaven or for whom is hell? And science today is in a position to answer that. There is actually nobody inside your body. There is just the body. The consciousness that you identify with is actually a product of the body. It arises with the body and it's gone with the body. There is nothing that survives the body. So for whom is heaven and for whom is hell?
भारत को आत्मनिर्भर कैसे बनाएँ?
भारत को आत्मनिर्भर कैसे बनाएँ?
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एक दासता वो है जिसमें कोई बाहरी ताकत आकर आपको अपने अधीन कर लेती है। दूसरी गुलामी वो है जिसमें आप अपने ही अहंकार के गुलाम होते हैं। मालिक सामने दिखाई नहीं पड़ता, तो हमें धोखा हो जाता है कि हम स्वाधीन हैं। अगर भारत को आत्मनिर्भर बनना है, तो बाकी सब सिद्धांतों को छोड़कर सच्चाई मात्र पर चलना पड़ेगा, और वह सच्चाई सबसे स्पष्ट रूप से वेदांत में समझायी गई है। जब भारत की सारी शक्तियाँ उसकी आध्यात्मिक शक्ति का अनुगमन करेंगी, तब भारत वास्तव में आत्मनिर्भर हो पाएगा।
(Gita-8) The Self and the Joy of Immortality
(Gita-8) The Self and the Joy of Immortality
37 min
If all that the Ego wants is liberation from itself, which means coming to see its own non-existence, then the only way to see its non-existence is by paying attention to itself. The more the Ego pays attention to itself, it sees that it does not exist. The more the Ego remains attached to this and that, all the sensory inputs, the Ego feels that is real and this is real.
The Foundation of the Indian Nation
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9 min

Questioner: Acharya Ji, in few days, Republic Day—that is, the 26th of January— will be celebrated, and the work that Foundation is doing is very closely linked with 'The Youngsters'. So, I wish to ask you in what ways the youngsters of today have lost love for the Nation?

Acharya

Does Vedanta Inspire the Indian Constitution?
Does Vedanta Inspire the Indian Constitution?
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We say the Constitution of India is inspired from the outside and lacks indigenous origins. That’s not right. Go close to its spirit and you’ll find nothing alien in it. To know who I am and reach the place of my purity, ‘Justice, Liberty, Equality, and Fraternity’ are needed. The Constitution arises from the very spirit of freedom, which is the only goal of all spirituality, particularly Vedanta.
भारत को महान कैसे बनाएँ?
भारत को महान कैसे बनाएँ?
12 min
लड़ने-भिड़ने, नारेबाज़ी, हुड़दंग, शोर-शराबे इनसे महानता नहीं आती। महानता बड़ी मेहनत और साधना लेती है - आध्यात्मिक तौर पर साधना और भौतिक तौर पर श्रम। अगर भारत को महान कहने में रुचि रखते हो तो खुद महान बनो। तुमसे ही है भारत की महानता। भारत धर्म का पालना रहा है। भारत विज्ञान, गणित और संगीत का भी पालना रहा है, इसीलिए भारत महान था। आज भारत को महान बनाना है तो अपने भीतर लोहा और सच की तरफ़ निष्ठा पैदा करो।
How Did Bhagavad Gita Help Subhash Chandra Bose?
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10 min
There is no revolution possible without wisdom literature. The quest for independence of freedom fighters was actually a manifestation of their inner quest for liberation. What kind of revolution can one do if it's the body that's always at the top of your mind? You require a Gita to tell you that this body is perishable and would anyway go. Gita only teaches you, "Endure and fight."
(Gita-6) The Mind's Battle: Arjuna's Search for Liberation
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27 min
The word for a Guru does not really exist in the English language. So, they have borrowed Guru itself, Guru. But they have borrowed the word Guru and rather misunderstood it and misapplied it. So, anybody who seems to be an expert at anything, can be justifiably called a Guru in the English language. Now that's not the proper usage in spirituality or in Sanskrit.
क्या ज्योतिषी भविष्य बता सकते हैं?
क्या ज्योतिषी भविष्य बता सकते हैं?
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यदि तुम पूर्व-निर्धारित ढ़र्रे पर ही जीते हो तो किसी ज्योतिषी की भी ज़रूरत नहीं है। कोई राह चलता भी तुम्हारी शक्ल देखकर बता देगा कि बाईस तक पढ़ाई, पच्चीस में सगाई, फिर विदाई, फिर दनादन पिटाई। क्योंकि जो ढ़र्रे पर चल रहा है उसका सबकुछ तय है, इसलिए उसका भविष्य निर्धारित किया जा सकता है। परंतु यदि तुम्हारा जीवन आज़ादी में, मुक्ति में, होश में बीत रहा है, तो कोई भी ज्योतिषी नहीं बता सकता, कि तुम्हारा कल कैसा होगा।
भगवान को बच्चा बना दो, और धर्म को खिलौना
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हम इतने छोटे से रह गए हैं और हमारे सामने आ जाएँ बिलकुल कि जैसे सचमुच थे राम और जो सचमुच रौद्र रूप है दुर्गा का तो बात हमें अपमान की लगती है कि ये तो इतने बड़े, हम इतने छोटे तो क्या करते हैं? हम उनको ही छोटा बना देते हैं ताकि वो हमारे हाथ का खिलवाड़ बन जाएँ, हमारे हाथ का खिलौना बन जाएँ। लोग छोटी-छोटी देवी लेकर घुम रहे हैं इस बार। ये देवी हैं कि पहाड़ से भी बड़ी पहाड़, और हम उनको क्या बना रहे हैं? तो यही है ताकि सबकुछ हमारे खिलौने जैसा हो पाए। क्योंकि धर्म को ही हमने अपना खिलौना बना लिया है, “लोगन राम खिलौना जाना।”
गीता नहीं चाहिए, संविधान काफ़ी है! || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)
गीता नहीं चाहिए, संविधान काफ़ी है! || आचार्य प्रशांत, वेदांत महोत्सव ऋषिकेश में (2021)
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, अभी कुछ लोगों से भी सुन रहा था और यूट्यूब पर कमेंट्स (टिप्पणियों) में पढ़ा है, कि “गीता-वगैरह की अब ज़रूरत क्या है? अब तो संविधान ही आज की गीता है।" तो इस बारे में कुछ कहें।

आचार्य प्रशांत: सौ से अधिक संविधान-संशोधन हो चुके हैं, सौ

आदर्श, शिक्षित, सुसंस्कृत उत्तर भारतीय घर || आचार्य प्रशांत
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13 min

आचार्य प्रशांत: तो हमें बेटियों की चिन्ता हो रही है, होनी भी चाहिए। लेकिन बेटियों की चिन्ता का जो कारण आपके पास है, शायद बेटियों पर जो ख़तरा है वो किसी दूसरे कारण से है। जिस कारण से है, उसकी बात कर लेते हैं।

आप जब कहते हैं कि भारत

निष्कामता ही श्रेष्ठ जीवन है  || आचार्य प्रशांत, श्रीमद्भगवद्गीता पर (2022)
निष्कामता ही श्रेष्ठ जीवन है || आचार्य प्रशांत, श्रीमद्भगवद्गीता पर (2022)
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नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन। न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः ।।१८।।

इस संसार के कर्मों के अनुष्ठान से निष्कामी मनुष्य को कोई प्रयोजन नहीं रहता फिर, और ऐसे मनुष्य को कर्मत्याग की कोई आवश्यकता नहीं रहती। ऐसे मनुष्य के लिए संसार में किसी प्रयोजन की सिद्धि हेतु आश्रय करने योग्य भी

दुनिया जलती है हमसे, इसीलिए भारत को नोबेल प्राइज़ नहीं मिलता
दुनिया जलती है हमसे, इसीलिए भारत को नोबेल प्राइज़ नहीं मिलता
24 min
जब समाज और सोच और संस्कृति ही दीमक के चाटे हुए हैं, जहां लोक धर्म में वास्तविक धर्म के लिए कोई जगह नहीं है, वहां कैसे जिज्ञासा होगी और जिज्ञासा नहीं होगी तो कैसे खोज होगी? हमारे यहां तो संस्कृति का मतलब होता है परंपरा और विश्वास और आस्था और मानना मान्यता। और नोबेल प्राइज तो मिलता है ‘ना मानने पर।’ हम मानते नहीं है। हम जानने के लिए खोजते हैं। तब मिलता है नोबेल प्राइज।