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हिंदी से दूर करके बच्चे की जड़ें काट रहे हो || आचार्य प्रशांत (2019)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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प्रश्नकर्ता: हिंदी भाषा का जीवन में क्या महत्व है? युवाओं में हिंदी भाषा के प्रति पूर्ण सम्मान व स्वीकार क्यों कम देखने को मिलता है? भारत की संस्कृति में हिंदी भाषा का क्या महत्व व योगदान रहा है?

आचार्य प्रशांत: देखिए, आपका बच्चा भारतीय संस्कृति सीखे, ना सीखे, यह कोई बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न नहीं है, संस्कृति तुलनात्मक रूप से बहुत छोटा मुद्दा है अध्यात्म के सामने। पर जब मैं बच्चों को देखता हूँ कि छठवीं, आठवीं में आ गए हैं और हिंदी बोलना नहीं आया - राम को 'रामा' और कृष्ण को 'कृष्णा' बता रहे हैं - तो मैं यह भी समझ जाता हूँ कि ये बच्चा अब जीवन में कभी गीता को सम्मान नहीं देने वाला। इनका सम्बन्ध है, दोनों का। हम जिस जगह पर रहते हैं, जिस समय में रहते हैं, वहाँ पर इन दोनों बातों का सम्बन्ध निश्चित रूप से है।

आपका बच्चा अगर ऐसे माहौल में शिक्षा पा रहा है जहाँ कृष्ण, 'कृष्णा' हो जाते हैं, या 'कृष' हो जाते हैं, तो अब उस बच्चे ने मात्र हिंदी को ही नहीं त्यागा है, उसने गीता को भी त्याग दिया। कुछ है सम्बन्ध हिंदी और गीता के बीच। आप अगर अपने बच्चे को ऐसी परवरिश दे रहे हैं कि वो हिंदी से दूर रहे, तो समझ लीजिएगा आपने अपने बच्चे को गीता से भी दूर कर दिया।

और माँ-बाप की छाती फूल जाती है यह बताने में कि - "मेरे बच्चे की हिंदी ज़रा कमज़ोर है।" क्या गौरव की बात है! बताते हैं कि - "वो अंग्रेजी ही ज़्यादा समझता है।"

बात अगर सिर्फ़ हिंदी की उपेक्षा या अवहेलना करने की होती तो मैं किसी तरह बर्दाश्त भी कर लेता, पर यहाँ बात सिर्फ़ हिंदी की भी नहीं है। जब आप अपने बच्चे को अंग्रेज़ी-परस्त बनाते हैं, तो आप उसके भीतर बिलकुल अलग तरह के मूल्य स्थापित कर देते हैं, और वो मूल्य आध्यात्मिक नहीं हैं इतना मैं आपको बताए देता हूँ। क्योंकि बच्चे को आप अंग्रेज़ी-परस्त इसलिए नहीं बना रहे कि अंग्रेज़ी बड़ी सुन्दर भाषा है, बच्चे को आप अंग्रेज़ी-परस्त इसलिए बनाते हैं क्योंकि अंग्रेज़ी भाषा में आपको पैसा और भौतिक सुख दिखाई देता है।

अगर माँ-बाप ऐसे हों कि शेक्सपियर और मिल्टन से प्यार करते हों, और इस नाते उन्होंने बच्चों को शुरू से ही अंग्रेज़ी पारंगत करा, तो मैं कहूँगा बहुत अच्छी बात है। पिता शेक्सपियर से प्यार करते थे, माता अंग्रेज़ी की लेखिका थीं, तो उनके घर का जो बच्चा है वो बचपन से ही अंग्रेज़ी में सिद्धस्थ है, तो ये बड़ी अच्छी बात है। पर ऐसा नहीं है। यहाँ तो बच्चों को दूध के साथ अंग्रेज़ी पिलाई जा रही है, इसलिए नहीं कि अंग्रेज़ी बड़ी प्यारी भाषा है, बल्कि इसलिए क्योंकि लालच है कि अंग्रेज़ी सीखेगा तो शायद रुपया ज़्यादा बनाएगा, शायद भौतिक तरक़्क़ी ज़्यादा करेगा। आप उसको सिर्फ़  एक भाषा नहीं दे रहे, आप उसको बता रहे हैं कि तरक़्क़ी का अर्थ क्या होता है। आप उससे कह रहे हैं कि - "जीवन में आगे बढ़ने का मतलब है रूपया-पैसा इक्कट्ठा कर लेना, और भौतिक रूप से समृद्ध हो जाना।" आप उसके भीतर ये मूल्य प्रविष्ट करा रहे हैं।

मैं इसलिए कह रहा हूँ कि - जो हिंदी को छोड़ रहा है, वो अब आध्यात्मिक हो नहीं पाएगा।

माताएँ होती हैं - बच्चा उनका अभी छह महीने, आठ महीने का है, वो बोकैय्या चलता है, दो पाँव पर ठीक से चल भी नहीं पाता, और उससे वो अंग्रेज़ी में बात करने की कोशिश कर रही हैं। बच्चा अभी कोई भाषा नहीं बोल पाता, 'मम मम' करता है बस, और माताजी उसको बता रही हैं - "चिंटू, कम ओवर दिस साइड (चिंटू, ज़रा इधर आओ)।" यह तुम क्या कर रही हो? कितनी बेवकूफ़ हो सकती हो? हमने तो ये ही सुना और माना था कि माँ को बच्चे की कुशलता की चाहत होती है, ये कैसी माँ है जो अपने बच्चे को ज़हर पिला रही है? "*कम ओवर दिस साइड*।"

इतना तो आप समझते ही हैं कि मुझे अंग्रेज़ी से कोई समस्या नहीं है; ख़ूब पढ़ता हूँ अंग्रेजी, ख़ूब बोलता हूँ - समृद्ध भाषा है। लेकिन आमतौर पर आप लोग जिस कारण से अंग्रेज़ी की ओर जाते हैं, वो कारण बहुत ग़लत है।

आप अगर ज्ञान के पुजारी हों और अंग्रेज़ी की तरफ़ इसलिए जाएँ कि अंग्रेज़ी भाषा में ज़्यादा ज्ञान उपलब्ध है, तो मैं कहूँगा अच्छी बात है। पर आप अंग्रेज़ी भाषा की ओर ज्ञान के कारण नहीं जाते, ना उसके भाषाई सौंदर्य के कारण जाते हैं, आप उसकी ओर जाते हैं उसी पुरानी मध्यम वर्गीय हीन भावना के कारण, कि - "हाय राम! हमें तो अंग्रेज़ी आई नहीं, अपने चुन्नू को सिखा दें अब।"

अब आप पूछते हैं कि - "बच्चे को, बताइए आचार्य जी, सही जीवन मूल्य कैसे दें?" मैं कहना चाहता हूँ, सही मूल्य देने की बात तो बहुत-बहुत दूर की है, पहले आप उसे ज़हर देना तो बंद करिए। शायद आप उसे ज़हर देना बंद कर दें, तो सही जीवन-मूल्य देना आसान हो जाए, और बहुत मेहनत भी ना करनी पड़े।

मैं कई बार कह चूका हूँ - किसी की जान लेना अपराध है, उससे ज़्यादा बड़ा अपराध है किसी को पैदा करके बिगाड़ देना। क्योंकि आपने जिसकी जान ले ली उसको कम-से-कम अब आगे दुःख नहीं सहना। आपने उसे एक बार का, एक पल का दर्द दिया, और फिर किस्सा ख़त्म।

पर अगर आप अभिभावक हैं, और आपने बच्चा पैदा करा है, और आपको उसकी परवरिश करनी नहीं आती, तो आपने एक प्राणी को आने वाले साठ साल, अस्सी साल का दुःख दे दिया।

कहिए, ये किसी की जान लेने से छोटा अपराध है या बड़ा?

खिलवाड़ नहीं है माँ होना या बाप होना।

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