भगत सिंह कहते थे "बहरे कानों तक अपनी आवाज़ पहुँचाने के लिए अक्सर धमाकों की ज़रूरत पड़ती है। "
लेकिन उनको कहाँ पता था कि लोगों की स्मृति इतनी कमज़ोर है कि उनके जाने के बाद वे सिर्फ़ उनका 'धमाका' ही याद रखेंगे। और उनको भूल जाएँगे, उनके संघर्ष को भूल जाएँगे।
28 सितंबर को भगत सिंह का जन्मदिन है। भगत सिंह पर आधारित कहानियाँ तो हम बचपन से ही देखते आए हैं। आज हम भगत सिंह के जीवन से कुछ तथ्य आपके लिए लाए हैं।
इन सारी घटनाओं के साथ, उस वक्त पर उनकी उम्र पर भी ध्यान दें। और विचार करें कि उस उम्र में आपका जीवन कैसा था।
जन्म: 28 सितंबर 1907, लायलपुर (पंजाब) में जन्म हुआ।
➖ 10 की उम्र में कक्षा 9 तक पढ़ाई पूरी की।
➖ 12 की उम्र में जलियाँवाला बाग हादसा देखा। वहाँ की खूनभरी मिट्टी बोतल में बंद कर घर लेकर आए।
➖ 14 की उम्र में नेशनल कॉलेज, लाहौर गए। पहली बार किसी छात्र को 10वीं किए बिना, प्रतिभा के दम पर कॉलेज में एडमिशन मिला।
➖ 16 की उम्र में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। HRA (बाद में HSRA बना) जॉइन किया।
➖ 16 की उम्र में शादी के लिए दबाव के चलते घर से भागकर कानपुर चले गए।
➖ 16 की उम्र में 'प्रताप' नाम की पत्रिका में लेखन का काम मिला। साथ ही अलीगढ़ के एक स्कूल में हेडमास्टर की नौकरी मिली।
➖ 19 की उम्र में गरिबाल्डी व मज़ीनी की संस्था 'Young Italy' से प्रेरित होकर 'नौजवान भारत सभा' नाम की संस्था शुरू की।
➖ 20 की उम्र में पहली बार जेल गए। 5 हफ़्तों के लिए पुलिस हिरासत में रहे। 60 हज़ार रुपए देकर ज़मानत मिली। शहर से बाहर जाने पर पाबंदी लगी तो कीर्ति, अकाली, महारथी, प्रभा व चाँद जैसी पत्रिकाओं के लिए क्रांतिकारी लेख लिखे।
➖ 21 की उम्र में लाला लाजपत राय जी की हत्या का बदला लिया। लाहौर से वेश बदलकर निकल गए।
➖ 21 की उम्र में 'सेंट्रल असेम्ब्ली' (आज का संसद भवन) में बम व अपने मिशन से जुड़े पैम्फलेट फेंके।
➖ 22 की उम्र में राजनीतिक कैदियों के हितों के लिए 112 दिनों की भूख हड़ताल पर बैठे। साथ में, अपना केस भी लड़ा। केस के दौरान अलग-अलग मौक़ों पर आवाज़ ना सुने जाने पर दो बार फिर भूख हड़ताल पर बैठे।
➖ 23 की उम्र में 23 मार्च 1931 को फाँसी पर चढ़ गए। पार्थिव शरीर के टुकड़े कर, बोरे में भरा और गाँव के बाहर पुलिस कर्मियों द्वारा जला दिया गया।
विलक्षण प्रतिभा के धनी थे: 5 भाषाएँ जानते थे, कॉलेज के दिनों से ही अभिनय में रुचि रखते थे, उनके द्वारा लिखे गए 100+ लेख पत्रिकाओं व अख़बारों में प्रकाशित हुए, मृत्युदण्ड मिलने पर बिना कोई अपील दायर किए फाँसी पर चढ़ गए।