Nitnem Sahib

The Great Magic of Scriptures || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
The Great Magic of Scriptures || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
7 min

Question: Acharya Ji, Pranaam! While reading and meditating on Nitnem, something happened within me which is difficult to explain. And this happening is same while we were reading Ashtavakra Gita and Upanishads.

These words do not create any images, but they take away my chains and cut me down. Whatever

Repeated slips in the spiritual path? || Acharya Prashant,on Nitnem Sahib (2019)
Repeated slips in the spiritual path? || Acharya Prashant,on Nitnem Sahib (2019)
10 min

एह वसतु तजी नह जाई नित नित रखु उरि धारो ॥

Ėh vasaṯ ṯajī nah jāī niṯ niṯ rakẖ ur ḏẖāro.

This thing can never be forsaken; keep this always and forever in your mind.

Raag Mundaavanee, Fifth Mehl

Rahras Sahib, Nitnem ( Guru Granth Sahib, Page 1429)

Question: Pranaam

You must worry about this One thing || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
You must worry about this One thing || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
11 min

ऊडे ऊडि आवै सै कोसा तिसु पाछै बचरे छरिआ ॥ Ūde ūd āvai sai kosā ṯis pācẖẖai bacẖre cẖẖariā. The crane flies hundreds of miles, leaving its young one behind.

तिन कवणु खलावै कवणु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ ॥३॥ Ŧin kavaṇ kẖalāvai kavaṇ cẖugāvai man mėh simran kariā. ||3||

Must the mind worry so much? || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
Must the mind worry so much? || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
12 min

sir sir rijak sambaahay thaakur kaahay man bha-o kari-aa.

~ Rehraas Sahib, Fifth Mehala (Nitnem)

The Lord and provides sustenance to everyone, t hen why should you worry my mind?

~ Rehraas Sahib, Fifth Mehala (Nitnem)

सिर सिर रिजक सम्बाहय ठाकुर कहाय मन भाओ करीआ

~ रहरास साहिब, पाँचवा महला

Can the Guru assure you of liberation? || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
Can the Guru assure you of liberation? || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
6 min

अउध घटै दिनसु रैणारे ॥ मन गुर मिलि काज सवारे ॥१॥ रहाउ ॥ जा कउ आए सोई बिहाझहु हरि गुर ते मनहि बसेरा ॥

~ राग गौरी पूरबी, पाँचवा महला, सोहिला साहिब

Translation:

The life passes day and night. My mind, meet the Guru so that he sets things right.

How to know God’s will? || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
How to know God’s will? || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
5 min

जो किछ कराय सो भला कर माने-ई हिकमत हुक्म हुक्म चुकाइये

~ तिलांग, पहला महला, शब्द हज़ारे (नितनेम)

Those God-Oriented people will tell that to attain God, we should accept as good whatever He does, and stop our own cleverness and will.

~ Tilang, 1st Mehla, Shabad Hazare (Nitnem)

Question:

What is liberation from the cycle of birth and death? || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
What is liberation from the cycle of birth and death? || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
7 min

ਕਰਮੀ ਆਵੈ ਕਪੜਾ ਨਦਰੀ ਮੋਖੁ ਦੁਆਰੁ ॥

karmee aavai kaprhaa nadree mokh du-aar

By good karma, the Saropa, which is this body, the robe of honor, is obtained, and by His kindness, the door to salvation opens.

~ Guru Granth Sahib 2-5 (Japji Sahib, Nitnem)

✥ ✥ ✥

Questioner (Q):

Watch where your time is going || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
Watch where your time is going || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
12 min

गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥ Gobinḏ milaṇ kī ih ṯerī barīā. This is your chance to meet the Lord of the Universe.

अवरि काज तेरै कितै न काम ॥ Avar kāj ṯerai kiṯai na kām. Other efforts are of no use to you.

मिलु साधसंगति भजु केवल नाम

What is luck? How to get lucky? || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
What is luck? How to get lucky? || Acharya Prashant, on Nitnem Sahib (2019)
5 min

आयहू हर रस कर्मी पाइआ सतगुर मिलाई जिस आय

~तिलांग, पहला महला, शब्द हज़ारे ( नितनेम)

The Essence: Name of the Lord, His love, is obtained by good luck, good deeds,

when the True Guru: the True Master, meets and tells you to recite the Name of God.

~ Tilang,1st

ज़िन्दगी जीने के दो तरीक़े || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक देव पर (2014)
ज़िन्दगी जीने के दो तरीक़े || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक देव पर (2014)
34 min

संजोगु विजोगु दुइ कार चलावहि लेखे आवहि भाग। ~ जपुजी साहिब (नितनेम)

आचार्य प्रशांत: फ़्री विल (मुक्त इच्छा) भी एब्सोल्यूट्ली फ़्री (पूर्णत: मुक्त) है। आपकी जो फ़्री विल है, वो भी इस मामले में तो बाउन्डेड (सीमित) है ही कि वो आपकी नहीं है। जो आपकी इच्छा है वो तो

आत्मा तुम्हारी नियति है और गुरु उसका प्रदर्शक || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
आत्मा तुम्हारी नियति है और गुरु उसका प्रदर्शक || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
13 min

गुर परसादी हरि मंनि वसिआ पूरबि लिखिआ पाइआ।।

~ नितनेम (अनंदु साहिब)

बाइ गुरुज़ ग्रेस द लॉर्ड अबाइड्स विदिन द माइंड, एंड वंस प्री-ऑर्डेंड डेस्टिनी इज़ फ़ुलफ़िल्ड।

“गुरु के अनुग्रह से ईश्वर मन में बसता है, और व्यक्ति पूर्वनिर्धारित नियति को प्राप्त कर लेता है।”

प्रश्नकर्ता: ग्रेस (अनुग्रह) और प्री-ऑर्डेंड

इन्द्रियों के पीछे की इन्द्रिय है मन || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक देव पर (2014)
इन्द्रियों के पीछे की इन्द्रिय है मन || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक देव पर (2014)
6 min

वजाइया वाजा पउण नउ दुआरे परगट कीए दसवा गुपतु रखाइआ।। ~ नितनेम (अनंदु साहिब)

आचार्य प्रशांत: ‘आनन्द साहिब’ से है कि उसने शरीर के वाद्य यन्त्र में साँस फूँकी और नौ द्वार खोल दिये लेकिन दसवें को छुपाकर रखा। दसवाँ द्वार कौनसा है? कौनसा हो सकता है दसवाँ द्वार? मन

जो तुम अभी कर रहे हो वही तुम हो || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
जो तुम अभी कर रहे हो वही तुम हो || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
16 min

विणु गुण कीते भगति न होई। अर्थ: बिना गुण के भक्ति नहीं हो सकती। (जपुजी साहिब)

आचार्य प्रशांत: आप दीवार के पास बैठे हैं और आप ऊँघ जाते हैं और आपके सिर पर दीवार लगती है ज़ोर से। क्या आप दीवार से कहते हो कि कमीनी मेरे ही घर की

मेरे दुखों का क्या इलाज है? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
मेरे दुखों का क्या इलाज है? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
7 min

दुख विसारणु सेविआ सदा सदा दातारु ~ शबद हज़ारे (नितनेम)

मैं उसकी सेवा करता हूँ, जो मेरे सारे दुखों को विस्मृत कर देता है और जो सदा-सदा से देने वाला है।

आचार्य प्रशांत: मैं उसकी सेवा करूँगा, करता हूँ, जो मेरे सारे दुखों को विस्मृत कर देता है और जो

झूठ का गहरा अस्वीकार ही सत्य का स्वीकार है || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
झूठ का गहरा अस्वीकार ही सत्य का स्वीकार है || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
17 min

”हुकमी हुकमु चलाये राहु।” ~ जपुजी साहिब

आचार्य प्रशांत: वो अपने हुक्म से राह पर चलता है। राह तो सामने ही है। जहाँ खड़े हो, वहीं से चलती है। हुक्मी स्वभाव ही है, तो कहीं दूर जाना नहीं है पूछने। हुक्म तब भी उल्टा-पुल्टा हो जाता है, क़दम फिर इधर-उधर

प्रेम  मीठे-कड़वे के परे || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
प्रेम मीठे-कड़वे के परे || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
5 min

कुरबाणु कीता तिसै विटहु, जिनि मोहु मीठा लाइआ ॥ – गुरु नानक

आचार्य प्रशांत: “कुरबाणु कीता तिसै विटहु, जिनि मोहु मीठा लाइआ” – मैं उस पर कुरबान जाता हूँ जिसने मोह को मीठा बना दिया है।

मोह हमेशा कड़वा होता है। मोह का अर्थ है अपने से बाहर किसी से

सच्चा रिश्ता सिर्फ़ एक || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
सच्चा रिश्ता सिर्फ़ एक || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
12 min

सभ महि जोति जोति है सोइ

सब में प्रकाश है

~ सोहिला (नितनेम)

आचार्य प्रशांत: कल दोपहर जब हम लौट रहे थे कॉलेज से तो गाड़ी में कृष्ण कुछ बातें कह रहे थे, फिर मैंने सी.डी. प्लेयर बन्द कर दिया। जब तक वो जो कह रहे थे, वो चल रहा

डर को कैसे छोड़ें
डर को कैसे छोड़ें
13 min

हमरी करो हाथ दै रक्षा॥

पूरन होइ चित की इछा॥

तव चरनन मन रहै हमारा॥

अपना जान करो प्रतिपारा॥

~ चौपाईसाहब (नितनेम)

अर्थात, हे! अकाल पूरक, अपना हाथ देकर मेरी रक्षा करो। मेरी मन की यह इच्छा आपकी कृपा द्वारा पूरी हो कि मेरा मन सदा आपके चरणों में जुड़ा

सच्चा सुमिरन कैसे करें? || आचार्य प्रशांत, नितनेम साहिब पर (2019)
सच्चा सुमिरन कैसे करें? || आचार्य प्रशांत, नितनेम साहिब पर (2019)
7 min

ए मन चंचला चतुराई किनै न पाइआ ॥ चतुराई न पाइआ किनै तू सुणि मंन मेरिआ ॥ एह माइआ मोहणी जिनि एतु भरमि भुलाइआ ॥ माइआ त मोहणी तिनै कीती जिनि ठगउली पाईआ ॥ कुरबाणु कीता तिसै विटहु जिनि मोहु मीठा लाइआ ॥ कहै नानकु मन चंचल चतुराई किनै न

सांयोगिक से आत्मिक तक || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
सांयोगिक से आत्मिक तक || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
15 min

(आचार्य जी के नवीन लेखों के बारे में जानने के लिए व उनसे मिलने का दुर्लभ अवसर प्राप्त करने हेतु यहाँ क्लिक करें)

हुकमी हुकमु चलाये राहु।

~ नितनेम

आचार्य प्रशांत: वो अपने हुक्म से राह पे चलाता है। राह तो सामने ही है। जहाँ खड़े हो वही से

हर कदम, पहला कदम || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2017)
हर कदम, पहला कदम || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2017)
22 min

नानक निर्गुणी गुण करे गुणवतीय: गुण देह

~ गुरु ननक

आचार्य प्रशांत: बात बहुत सीधी है, गुण वह सब कुछ है जो किसी भी चीज़ के बारे में, घटना के बारे में, इंसान के बारे में कहा जा सकता है, वह गुण है׀

जिस किसी वस्तु, व्यक्ति के साथ आप

मैं जानता हूँ'-सबसे अधार्मिक वचन || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
मैं जानता हूँ'-सबसे अधार्मिक वचन || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
20 min

बहुता कहीऐ बहुता होइ। असंख कहहि सिरि भारु होइ॥

~गुरु नानक

आचार्य प्रशांत: जितना कहोगे उतना कम पड़ेगा। सत्य के विषय में कहने की तो इच्छा खूब होगी तुम्हारी पर जितना कहोगे उतना कम पड़ेगा। ये भी कहोगे कि वो अनंत है, असंख्य है, असंख्यातीत है, ये कहना भी कम

सत्य: मूल्यवान नहीं, अमूल्य || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक देव पर (2014)
सत्य: मूल्यवान नहीं, अमूल्य || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक देव पर (2014)
27 min

वाज़े पंच शब्द तित तित घरी सभागे

वक्ता: उस सौभाग्यशाली घर में पाँच शब्दों का वादन रहता है। न होने से, होने का जो बदलाव है, वो गतिमान हो जाने का बदलाव है। वो गति में आ जाने का बदलाव है। जब तक गति नहीं है, पदार्थ भी नहीं है।

सुनने का वास्तविक अर्थ || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
सुनने का वास्तविक अर्थ || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
5 min

सुणिए हाथ होवै असगाहु

जपुजी (नितनेम)

वक्ता: जो हासिल किया नहीं जा सकता, जो बात दुष्प्राप्य है, वो भी सुनने से हाथ आ जाता है। जो तुम्हें अन्यथा कतई न मिलता, वो सुनने से मिल जाता है। क्या आशय है?

श्रोता 1: सुनने से कुछ मिलेगा की जगह इसको ऐसे

इन्द्रियों के पीछे की इन्द्रिय है मन || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
इन्द्रियों के पीछे की इन्द्रिय है मन || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
5 min

वक्ता: आनंद साहिब से है कि:

उसने शरीर के वाद्य यंत्र में सांस फूंकी और नौ द्वार खोल दिए लेकिन दसवें को छुपा के रखा।

प्रश्न है कि दसवां द्वार कौन सा है? कौन सा हो सकता है दसवां द्वार?

मन का है। नौ द्वार हैं शरीर के जो बाहर

हम तुम्हारे समीप ही, मन जाए कहीं भी || गुरु नानक पर (2014)
हम तुम्हारे समीप ही, मन जाए कहीं भी || गुरु नानक पर (2014)
7 min

तू घट घट अंतरि सरब निरंतरि जी हरि एको पुरखु समानी

~ रेहरासि साहेब (नितनेम)

प्रश्नकर्ता: कम्पेरिज़न (तुलना) नहीं हो सकती है, कभी-कभी हम अपने को अलग मान कर ही सोचते हैं कि मुझे उनसे ही बड़ा चाहिए। मतलब अगर मेरी सैलरी (वेतन) पंद्रह हज़ार है, उनकी पच्चीस हज़ार है,

भक्ति का आधार क्या है? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
भक्ति का आधार क्या है? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
6 min

जलि थलि महीअलि भरिपुरि

लीणा घटि घटि जोति तुम्हारी

~ नितनेम

जल में, थल में, आकाश में तुम सब सर्वस्व विद्यमान हो। जल, थल आकाश तुम ही विद्यमान हो। तुम्हारा प्रकाश हर हृदय में है।

वक्ता: सवाल यह है कि ‘तुम’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है, ‘तुम्हीं विद्यमान हो,’

चतुर व्यापारी बाँटता ही जाता है,और बाँटने हेतु पाता है || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
चतुर व्यापारी बाँटता ही जाता है,और बाँटने हेतु पाता है || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
11 min

“मनु ताराजी चितु तुला तेरी सेव सराफु कमावा”

~ नितनेम (शबद हज़ारे)

वक्ता: मन तराज़ू, चित तुला है — ‘मन’ तराज़ू है, ‘चित’ तुला है, और ‘तेरी सेवा’ वो कमाई है जो सर्राफ़ा इस पर तोल-तोल कर करता है। नानक के यहाँ पर पुश्तैनी काम यही था। अब तो पढ़

सुनो ऐसे कि समय थम जाए || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
सुनो ऐसे कि समय थम जाए || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
5 min

सुणए पोहि न सकै कालु ” सुनने वाले को काल नहीं पा सकता।

~ जपुजी साहिब

वक्ता: सुनने वाले को काल नहीं पा सकता। कबीर ने भी कहा है ये और जितने सरल तरीके से कबीर कहते हैं उतने ही सरल शब्दों में कि,

काल-काल सब कहें, काल लखे

साधना के बाह्य प्रतीकों का आंतरिक अर्थ || गुरु नानक पर (2014)
साधना के बाह्य प्रतीकों का आंतरिक अर्थ || गुरु नानक पर (2014)
5 min

मुंदा संतोखु सरमु पतु झोली धिआन की करहि बिभूति ॥ ~ पौढ़ी (जपुजी साहिब)

अनुवाद: संतोष को वैसे ही मन के समीप धारण करो जैसे कुंडल, विनय को ऐसे साथ लेकर के चलो जैसे तुम्हारा भिक्षा पात्र, और ध्यान को देह पर लगाने वाली भस्म।

आचार्य प्रशांत: संत का हमेशा

अनकहे को सुना तो अज्ञेय को जाना || गुरु नानक पर (2015)
अनकहे को सुना तो अज्ञेय को जाना || गुरु नानक पर (2015)
7 min

प्रश्नकर्ता: सर, यहाँ पर बोल रहे हैं कि;

बाय हिज़ कमांड बॉडीज़ आर क्रिएटेड; हिज़ कमांड कैन नॉट बी डिसक्राइब्ड।

(उसके आदेश से शरीर बनाया गया है; उसके आदेशों का विवरण नहीं किया जा सकता है)

सर, तो जो आदेश आपके शरीर को बना रहा है…

आचार्य प्रशांत: आपका शरीर

सुरति माने क्या? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
सुरति माने क्या? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
8 min

सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे*∼ पौड़ी : अनंदु साहिब, नितनेम ∼ *

अनुवाद: हमारे परमपिता सर्वसामर्थ्यवान हैं प्रत्येक कर्म करने के लिए तो क्यों हम मन से उन्हें भूल जाते हैं?

वक्ता : सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे

किउ विसारे। क्यों विस्मृति में जाते

मेरा शरीर किसलिए है? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
मेरा शरीर किसलिए है? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
5 min

साची लिवै बिनु देह निमाणी

अनंदु साहिब (नितनेम)

(Without the true love of devotion, the body is without honour)

वक्ता: शरीर किसलिए है? दो शब्दों में शिवसूत्र स्पष्ट कर देते हैं। शरीर क्या है? हवि है। शरीर यज्ञ की ज्वाला में समर्पित होने हेतु पदार्थ है। यज्ञ क्या? यज्ञ वो

सारी बेचैनी किसलिए? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
सारी बेचैनी किसलिए? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
6 min

“गावनी तुधनो चितु गुपतु लिखि

जाणनि लिखि लिखि धरमु बीचारे”

रहससि साहिब (नितनेम)

वक्ता: नानक कह रहे हैं कि जो कौन्शिअस (सचेत) मन होता है, – विचारशील मन – वो दृश्यों में और ध्वनियों में चलता है। तो उसको उनहोंने इंगित किया है ‘चित्र’ से। और जो छुपा हुआ मन

सत्य किसको चुनता है? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानकदेव पर (2014)
सत्य किसको चुनता है? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानकदेव पर (2014)
4 min

वक्ता: नानक कई बार कहते हैं कि वो जिसको चुनता है उसी पर अनुकम्पा होती है। तो सवाल है कि वो किसको चुनता है। हम इसपर कई बार बात कर चुके हैं।

वो किसको चुनता है?

श्रोतागण: जो उसी की तरफ़ जाता है। जो उसको चुनता है।

वक्ता: हाँ। ज़्यादा

रोशनी को रोशन आँखें ही देख पाती हैं || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
रोशनी को रोशन आँखें ही देख पाती हैं || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
4 min

मंनै सुरति होवै मनि बुधि

~ जपुजी साहब

(The faithful have intuitive Awareness and Intelligence)

वक्ता: पश्चमी दार्शनिक – स्पिनोज़ा , उसने एक शब्द प्रयोग किया है – इनटियूटिव प्री-अंडरस्टेंडिंग (सहज ज्ञान युक्त पूर्व समझ)। उसने कहा वही असली चीज़ है। कोई भी बात समझ में उसे ही आती है

पता भी है कौन बचा रहा है तुम्हें? || गुरु नानक पर (2014)
पता भी है कौन बचा रहा है तुम्हें? || गुरु नानक पर (2014)
6 min

अनदिनु साहिबु सेवीऐ अंति छडाए सोइ ॥

~ नितनेम (शबद हज़ारे)

आचार्य प्रशांत: “अनदिनु साहिबु सेवीऐ अंति छडाए सोइ”

दो बातें यहाँ पर साफ़-साफ़ समझो। ‘अंत’ से यहाँ पर आशय, समय में अंत नहीं है। हम ‘अंत’ का मतलब समझते हैं – समय में आगे का कोई बिंदु। अंत से

हमारा जीवन मात्र वृत्तियों की अभिव्यक्ति || आचार्य प्रशांत , गुरु नानक पर (2014)
हमारा जीवन मात्र वृत्तियों की अभिव्यक्ति || आचार्य प्रशांत , गुरु नानक पर (2014)
10 min

बंदि खलासी भाणै होइ ॥ होरु आखि न सकै कोइ ॥ – नानक

वक्ता: उसकी अपनी कोई इच्छा होती नहीं। परमात्मा की अपनी कोई इच्छा नहीं है। इच्छा का अर्थ ही होता है- ‘अपूर्णता’। इच्छा का अर्थ ही होता है- ‘लक्ष्य’ और ‘खालीपन’। परमात्मा कोई इच्छा कर सकता ही नहीं।

त्याग - छोड़ना नहीं, जागना || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक देव पर (2014)
त्याग - छोड़ना नहीं, जागना || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक देव पर (2014)
10 min

जिन मिलिया प्रभु आपणा, नानक तिन कुबानु॥ ~ गुरु नानक

आचार्य प्रशांत: मन का एक कोना मन के दूसरे कोने पर न्यौछावर है। एक मन है और दूसरा मन है, और दोनों की अलग-अलग दिशाएँ हैं। नानक कह रहे हैं, ऐसा मन जो प्रभु की दिशा में है, प्रभु पर

विधियों की सीमा || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
विधियों की सीमा || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
8 min

चुपै चुप ना होवई जे लाइ रहा लिव तार

– जपुजी साहिब(पौड़ी १)

अनुवाद: मौन धारण करने से मन चुप नहीं होता और ना ही प्रभु से मिलाप होता है , चाहे मन लगातार ध्यान में लगा रहे!

वक्ता: चुपै चुप ना होवई, इसमें हमें कोई समस्या नहीं हैं| बात

सुनना ही मोक्ष है || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
सुनना ही मोक्ष है || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
6 min

सुणि सुणि मेरी कामणी पारि उतारा होइ ॥२॥

(श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी, अंग ६६०)

वक्ता: सुणि सुणि मेरी कामणी पारि उतारा होइ|

सुन-सुन कर मैं पार उतर गयी| सुन-सुनकर पार उतर गयी| (‘सुन’ शब्द पर ज़ोर देते हुए)

क्या अर्थ है इसका? सुन-सुनकर तर गयी|

सुनने का अर्थ है-

मंदिर- जहाँ का शब्द मौन में ले जाये || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
मंदिर- जहाँ का शब्द मौन में ले जाये || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
12 min

प्रश्न: ‘अनहता सबद बाजंत भेरी’, कृपया इसका अर्थ बताएँ?

वक्ता: मंदिर से जो घंटे, घड़ियाल, ढोल, नगाड़े की आवाज़ आ रही है; वो ‘अनहद’ शब्द है | घंटा जैसे बजता है, अच्छा है | शब्द वही अच्छा जो जब बजा तो ऐसे बजा जैसे चोट करी हो, और फिर क्योंकि

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40 min
बेवजह की मान्यता है कि संसारी वह, जो भोगता है, और आध्यात्मिक आदमी वह, जो त्यागता है। अगर मामला राम और मुक्ति का हो, तो आध्यात्मिक व्यक्ति संसारी से ज्यादा संसारी हो सकता है। शृंगार का अर्थ है स्वयं को और आकर्षक बनाना, बढ़ाना—ऐसा जो तुम्हारे बंधन काट दे। जो करना हो, सब करेंगे—घूमना-फिरना, राजनीति, ज्ञान इकट्ठा करना, कुछ भी हो; कसौटी बस एक है—‘राम’। जो राम से मिला दे, वही शृंगार और वही प्रेम।
चित्रा त्रिपाठी द्वारा आचार्य प्रशांत का साक्षात्कार : भारत साहित्य उत्सव
चित्रा त्रिपाठी द्वारा आचार्य प्रशांत का साक्षात्कार : भारत साहित्य उत्सव
94 min
गीता जीवन को बेहतर नहीं बनाती है गीता जीवन देती है, गीता हमें पैदा करती है। तो इसलिए बहुत सारे जानने वालों ने, महापुरुषों ने गीता को मां कहा है अपनी कि वो हमें पैदा ही करती है। उसके पहले तो हम वैसे ही होते हैं जैसे इंसान का बच्चा पैदा होता है, तो पशुवत होता है, जानवर जैसे होते हैं। जब ज़िन्दगी में समझ आती है, बोध की गहराई आती है, ऋषियों का, ज्ञानियों का सानिध्य आता है, तब जा करके हम अपने आप को इंसान कहलाने के लायक बनते हैं। तो वही मेरा काम है। सब तक गीता का संदेश पहुंचा रहा हूँ।
इंसान हो तो ज़िंदगी से जूझकर दिखाओ
इंसान हो तो ज़िंदगी से जूझकर दिखाओ
29 min
दुनियादारी सीखो, भाई! और मुझसे अगर प्रेम है या कोई नाता है, इज्जत है, तो मेरी अभी स्थिति क्या है, वो समझो। प्रेम अगर है, तो प्रेम यह देखता है ना कि सामने वाला क्या चाहता है, उसकी क्या जरूरत है? प्रेम आत्म-केंद्रित थोड़ी हो जाएगा कि "मैं अपने तरीके से!" अपने तरीके से है, तो फिर प्रेम नहीं है, स्वार्थ है ना!
खाना कौन बनाए: महिला या पुरुष?
खाना कौन बनाए: महिला या पुरुष?
20 min
खाना कौन बनाए, यह बाद की बात है। असली मुद्दा यह है कि भोजन ज़िंदगी में इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया? जब जीवन में कोई ऊँचा लक्ष्य नहीं होता, जिसे खुलकर और डूबकर जिया जा सके, तो उसकी भरपाई हम जबान के स्वाद से करने लगते हैं। जिसके जीवन में ऊँचा उद्देश्य होता है, वे मसालों और घंटों लंबी रेसिपीज़ में समय नहीं गंवाते, बल्कि वे अपने जीवन को विज्ञान, कला, साहित्य, राजनीति और खेल से भरकर जीवन को स्वादिष्ट बनाते हैं। इसलिए ज़िंदगी को एक अच्छा, ऊँचा उद्देश्य दो और अपने हर पल का हिसाब रखो!