संतों के भजन किसे प्यारे नहीं लगते? कबीर साहेब के दोहे, बाबा बुल्लेशाह और मीराबाई के भजन, अक्सर हमें सुनने को मिल जाते हैं। कई बार तो आपको पता भी नहीं लगता कि संतो के आकर्षक लगने वाले भजन आपको टीवी और फ़िल्मों में भी सुनने को मिल जाते हैं। हम जानने का प्रयास भी नहीं करते कि वह जीवन कि कौन सी सीख हमें देना चाहते हैं। बल्कि बिना सोचे समझे और अर्थ जानें हम उनको गाते भी हैं और उनका उल्टा पुल्टा अर्थ कर देते हैं।
अब मानिए, कबीर साहब के भजन गाएँ आप, और आपको पता ही न हो कि उन भजनों के बोल इशारा किधर को कर रहे हैं, तो उन भजनों को गाने से कोई लाभ होने वाला है।
बस थोड़ा-सा ख़्याल रहे कि भजन में संगीत की अपेक्षा बोल और भाव प्रमुख रहें। और बोलों का अर्थ स्पष्ट रहे, कही जा रही बात बिलकुल वैसे ही पकड़ में आए जैसी कही गई है। उसके लिए ग्रंथों का पाठ, श्रवण, मनन, चिंतन भी आवश्यक है। बोध के अभाव में कुछ भी सहायक नहीं होता, फिर वो भक्ति संगीत ही क्यों न हो।
इसलिए आचार्य जी समझा रहे हैं आपको संतों के भजनों के स्पष्ट वेदांतिक अर्थ, समझें और गाएँ।
संतों के भजन किसे प्यारे नहीं लगते? कबीर साहेब के दोहे, बाबा बुल्लेशाह और मीराबाई के भजन, अक्सर हमें सुनने को मिल जाते हैं। कई बार तो आपको पता भी नहीं...