इस भजन में वेदांत के तीन मूल तत्व हैं वेदांत के जो मौजूद हैं। क्या आप उन्हें देख पा रहे हैं?
वह तीन शब्द हैं:
मोरा मानें मेरा।
हीरा मानें आत्म।
कचरा मानें संसार।
एक और प्रश्न: क्या आप जानते हैं कि निरालंब उपनिषद नर्क की क्या परिभाषा बताते हैं?
संसार में रचे पचे व्यक्ति का जीवन ही नर्क होता है।
कबीर साहब यही आपको समझाना चाहते हैं। वह जो मेरा आत्मिक है, सुंदर है, शांत है, हीरा है मैंने ही उसे खो दिया है और मैं पूरी तरह से संसार में रच बस गया हूँ। यानि संसार के कचरे में अब अपना मन दूषित कर रहा हूँ।
पूरे भजन में आपको कबीर साहब इस कचरे से सावधान होने के लिए बोलेंगे। देखिए, जगत से एक सही और स्वस्थ संबंध आप तभी बना पाएंगे जब आप ठीक ठीक देख लें कि आप कौन हैं? और आपकी वास्तविक जरूरत क्या है? नहीं दूसरों की बताई जरूरत को ही अपना मान लेंगे और हीरा खो बैठेंगे।
जानेंगे पूरे भजन का अर्थ आचार्य प्रशांत संग।
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