तोहि मोहि लगन लगाय रे फ़कीरवा सोबत ही मैं अपने मन्दिर में सबद बान मार जगाये रे फ़कीरवा डूबत ही मैं भव के सागर में
पक्षी का आकाश से जो रिश्ता है उसको क्या कहते हैं? ठीक कहा, प्रेम।
ऊपर जो भजन है यह कबीर साहब के भजन की पंकियाँ हैं। तो एक पक्षी है, एक चिड़िया है, जिसकी नियति यही है कि वो आकाश में उड़ जाएगी। लेकिन किसी ने उसके पंख बाँध दिये हैं, और पैर बाँध दिये हैं, जिस कारण वो पंख फैला नहीं सकती, पाँवों से भी ज़ोर से दौड़ नहीं सकती। तो वो जितनी गति कर रही है, फिलहाल तो धरती पर ही कर रही है।
एक ऐसी चिड़िया जो बहुत ऊँचा उड़ सकती है, उसको आपने बाँध दिया है। कहाँ? धरती नामक पिंजड़े में उसको क़ैद कर दिया है। ये जो पूरी प्रकृति है, ये पिंजड़ा ही है, और पक्षी को जाना है आकाश। इसीलिए जो भीतर बैठा है, जो लगातार कहता रहता है कि आकाश से प्रेम है, आकाश से, उसको बहुत बार पक्षी कह कर ही सम्बोधित किया गया है।
यह भजन आपको सिखाएगा कि – जो पीड़ा से नहीं गुज़र सकता, वो प्रेम कभी नहीं सीख पाएगा। और जो सहारा देकर के पीड़ा से गुज़ार नहीं सकता, वो प्रेम कभी सिखा नहीं पाएगा।
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