संत कौन है?
संत वे हैं जिन्होंने ज़मीन की भाषा में बात करी है उन्होंने प्रतीक भी वही सब उठाये हैं जिनसे हमारा रोज़ का सरोकार रहता है। कपड़े, साड़ी, ताना-बाना, बाल, आँखें, पशु-पक्षी, बकरी, भेड़, घोड़ा, गधा, जन्म, मृत्यु, बाज़ार। और इसीलिए अध्यात्म को लोगों तक ले आने में वो ऋषियों से ज़्यादा सफल रहे हैं।
क्या अर्थ छुपा है “नैहरवा हमका न भावे” में?
“नैहरवा हमका न भावे।” इसका अर्थ ये है कि हम स्वयं को न भावें। मैं कौन हूँ? मैं भी इसी जगत की तरह बिलकुल भौतिक, मटीरियल हूँ। जो भी कुछ मेरे मन में चलता रहता है, वो कहाँ से आता है? संसार से ही तो आता है।
आगे इस कोर्स में हम जानना चाहते हैं वो बात जो वो हमें बताना चाहते थे। मनोरंजन में और सतही रस में हमारी रुचि कम है। हम जो गहनतम रस है, उसको चखना चाहते हैं। हम जानेंगे कि कबीर साहब और हमें क्या सीख देना चाहते हैं।
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