अकेले गुरु की मेहनत सफल नहीं होगी

Acharya Prashant

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अकेले गुरु की मेहनत सफल नहीं होगी

आचार्य प्रशांत: तो ऐसे ही एक चेला था, शिष्य, जो भी कह दीजिए, साधक, श्रोता, जैसे भी; कई रूप में आते हैं वो। ठीक है? पाठक कह दीजिए कि पढ़ता था सिर्फ़ पुस्तकों को, जो भी कहिए। श्रावक कह दीजिए, जो भी। भिक्षु, संन्यासी, जो भी। तो वो एक गुरुजी के पास है बड़े दिन से, बड़े दिन से, बड़े दिन से और उसको लाभ न हो। गुरुजी के पास वो पता नहीं इतने दिनों से है, उसको लाभ न हो। तो उसने कहा, ‘जो ये फ़ालतू के गुरु बनकर बैठे हुए हैं इन्हें आता-जाता तो कुछ है नहीं। इनके पास आया था कि मन थोड़ा सुलझेगा, कुछ ज्ञान मिलेगा। मन की हालत पहले ही जैसी है, ज्ञान तो हो नहीं रहा। ये बेकार हैं।’

तो गुरुजी के पास आता है विदाई लेने, बोलता है, ‘जा रहे हैं, आपके पास इतने महीने बिता दिये, हमें कुछ मिला तो है नहीं।’ कई साल भी बिता सकते हैं, ऐसी बात नहीं हैं। तो आया और बोला, ‘कई साल बिता दिये, हमें कुछ मिला तो है नहीं तो हम जा रहे हैं।’

गुरुजी ने कहा, ‘अच्छा ठीक है, चले जाओ। पर जा रहे हो तो वो उधर गाँव में उधर दुकान है न बनिये की, उसके पास चले जाओ और हमने उसे बता रखा है कुछ हमें चीज़ देने को, उसके पास से हमारे लिए ले आओ। इतना तो कर दो जाते-जाते।’

बोला, ‘बिलकुल, इतना तो कर ही देंगे आपके लिए।’

वो जाते-जाते चला गया उसकी दुकान में। वो उसकी दुकान में चला गया तो बनिये ने तराजू उठायी, ठीक है? अब ये आख़िरी एक तरह से कह दीजिए कि काम था या असाइन्मेंट था जो गुरुजी ने उसको दिया था कि जाओ और बनिये के यहाँ से मेरे लिए कुछ ले आओ। तो बनिये ने तराजू उठायी तौलने को। तो जो भी सौदा था जो गुरुजी के लिए ले जाना था तो वो अब तौला जा रहा है। तो एक तरफ़ वज़न रखा है और दूसरी तरफ़ वो सौदा रखा हुआ है, वो माल।

तो बनिया ऐसे तराजू उठाये हुए है और वो कभी उसमें से कुछ निकाले तो जो बीच में तराजू की सुई होती है वो थोड़ी सी इधर को हो जाए क्योंकि वज़न कम था। तो वो उसमें माल थोड़ा और चढ़ा दे दूसरे पलड़े में। जब ज़्यादा माल चढ़ा दे तो जो सुई है वो दूसरी तरफ़ को चली जाए। ठीक है?

तो कई बार प्रयत्न करे गये और खूब तौला गया और तब तक वो जो बनिया था वो पूरे ध्यान से प्रयत्न करता रहा, तौलता रहा, जब तक सुई एकदम बीचों-बीच नहीं आ गयी, एकदम बीचों-बीच नहीं आ गयी। और जब बीचों-बीच आ गयी तो उसने तराजू उतार दी। अब ये देखकर के चेलाराम — झुन्नूलाल ही था नाम उनका — ये देखकर के झुन्नूलाल के चिदाकाश में चन्द्रोदय हो गया, जैसे अभी-अभी हुआ था। बोले, ‘जो बात गुरुजी छः साल में नहीं समझा पाये वो बात अब जाते-जाते समझ में आ गयी।

क्या बात गुरुजी नहीं समझा पाये? बोल रहे हैं, ‘देखो, सौदा तभी होता है जब दोनों पलड़े बराबर के हों और जब तक दोनों पलड़े बराबर के नहीं हो जाते तब तक बनिया तौलता रहेगा, सौदा नहीं होगा। अगर एक पलड़ा भारी है तो भी सौदा नहीं होगा, अगर दूसरा भारी है तो भी नहीं होगा।’ तो अगर सौदा तुम्हें मिला नहीं है तो इसका मतलब ये है कि वो जो तराजू की सुई है वो मध्य में नहीं आ पा रही, जितना वज़न एक तरफ़ है उतना वज़न दूसरी तरफ़ नहीं रखा जा रहा, तो सौदा हो ही नहीं रहा है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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