अष्टावक्र गीता वेदांत के सर्वोच्च ग्रंथों में से एक है। राजा जनक अपने जीवन से व्याकुल, अध्यात्मिक प्रश्नों के उत्तर पाने अष्टावक्र मुनि के पास जाते हैं।
संसार और माया क्या है? संसार और मेरा रिश्ता क्या है? आत्मा क्या है? दृश्य और दृष्टा में क्या संबंध है? प्रपंच और सत्य में भेद क्या है? ऐसे प्रश्न, राजा जनक को चिंतित कर रहे हैं। तब अष्टावक्र मुनि– आत्मा, आत्मज्ञान, दृश्य, दृष्टा, प्रकृति, अहंकार जैसे गूढ़ शब्दों का ज्ञान उन्हें कराते हैं। राजा जनक का मन अपने प्रश्नों के उत्तर पाकर ऐसे शांत हो जाता है कि ग्रंथ में आगे जाकर आप पाएंगे कि ज्ञानी राजा और अष्टावक्र जी की बातें अब एक तल की हो गई हैं। राजा जनक के प्रश्न समाप्त हो गए हैं, भेद कर पाना जटिल हो रहा है कि यह राजन् बोल रहे हैं या मुनि।
इस ग्रंथ में अष्टावक्र जी ने न सिर्फ राजा जनक की जिज्ञासा को शांत किया है बल्कि आम जन मानस में प्रचलित कुरीतियों और अंधविश्वास पर भी चोट की है क्योंकि जब हम अध्यात्मिक शब्दों या श्लोकों को समझ नहीं पाते तो उनके अर्थ का अनर्थ कर देते हैं। ऐसा आपके साथ न हो इसलिए आचार्य प्रशांत आपको समझाएंगे कि सही
अष्टावक्र गीता वेदांत के सर्वोच्च ग्रंथों में से एक है। राजा जनक अपने जीवन से व्याकुल, अध्यात्मिक प्रश्नों के उत्तर पाने अष्टावक्र मुनि के पास जाते हैं।...