इस श्लोक में अष्टावक्र जी बता रहे हैं कि मैं अत्यंत शांत और नामरूप से रहित हूँ।
अब ठहरिये और एक बात समझने का प्रयास करिए। वेदांत में जब कुछ समझ न आए तो मूल बात से शुरू कर लेना चाहिए। मूल बात यह है कि अहं परेशान है और उसी के लिए सारा ज्ञान है। आप जगत की समस्या का लंबा चौड़ा विवरण दे दें लेकिन अंत में सिर्फ एक ही बात निकल कर आती है कि मैं परेशान हूँ। मैं की अवस्थाएँ बदलती रहती हैं लेकिन स्थिति नहीं बदलती। कभी वह इस बात को लेकर परेशान है कभी उस बात को।
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