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मत हो प्रसन्न पहले जानो बंधन

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अष्टावक्र गीता (प्रकरण– 8, श्लोक– 1)
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3 घंटे 34 मिनट
हिन्दी
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परिचय
लाभ
संरचना

अष्टावक्र गीता का सातवाँ प्रकरण समाप्त हो गया है। अब हम आठवें प्रकरण की ओर बढ़ चले हैं। आपने अगर गौर किया होगा तो सातवाँ प्रकरण मुक्ति से संबंधित था। लेकिन यहाँ आठवें प्रकरण में अष्टावक्र मुनि बंधन की बात करेंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि राजा जनक को यह भ्रम हो गया है कि व तो अब मुक्त हो गए हैं और गुरु का प्रयास सर्वप्रथम यही होता है कि वह अपने शिष्यों को भ्रमित न होने दे।

अष्टावक्र जी राजा जनक को बंधन में पड़े हुए चित् के छः लक्षण बताते हैं:

माँग करना शोक करना त्याग करना ग्रहण करना क्रोधित होना प्रसन्न होना

अगर यह छः लक्षण आपके अंदर हैं तो आप मुक्त नहीं हैं। एक तरीके से समझ लीजिए कि अष्टावक्र मुनि आपके और राजा जनक के सामने checklist जाँच सूची रख रहे हैं। भ्रम न होने पाए, ग़लत धारणा न बनने पाए, अहंकार स्वयं को सत्य न घोषित कर दे इसलिए गुरु का कर्तव्य है आपको आपके तथ्यों से अवगत कराना। आप सीखने की चाह रखते हैं तो सीख लीजिए आचार्य प्रशांत संग अष्टावक्र गीता वीडियो सीरी़ज से।

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