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हवा, जहाज, समुद्र और अष्टावक्र

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अष्टावक्र गीता (प्रकरण– 7, श्लोक– 1)
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1 घंटा 54 मिनट
हिन्दी
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परिचय
संरचना

क्या आपने कभी समुद्र के जहाज से यात्रा की है? क्या समुद्री हवाओं से क्या आपका सामना हुआ है? हम यह सवाल आपसे इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि इस श्लोक में अष्टावक्र मुनि जहाज और समुद्र का उदाहरण लेकर हमें गहरी और सच्ची बात बताने वाले हैं।

वेदांत का केंद्रीय प्रश्न क्या है? वह है कि पूछने वाला कौन है, देखने वाले का हाल कैसा है। अहं का प्रक्षेपण होता है संसार। यहाँ मुनि ने हवा को अहं से और जहाज को संसार से संबोधित किया है। अगर हवा शीतल हो तो जहाजी यात्रा भी सुगम रहती है और अगर हवा उग्र हो तो जहाज भी हिचकोले खाने लगता है। ऐसा होता है अहं और संसार का रिश्ता।

मगर क्या इन हवाओं से समुद्र को फ़र्क पड़ता है? क्या अनंत समुद्र जरा भी विचलित होता है? सोचकर बताइए, समुद्र यहाँ किसका प्रतीक है? अगर जानते हैं तो यात्रा कीजिए मुनि के श्लोक के साथ और अगर नहीं जानते तो यह कोर्स आपको सिखला देगा।

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