जल्दी से शादी करा के विदा कर दो || नीम लड्डू

Acharya Prashant

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लड़की को पढ़ाई के लिए दो-सौ किलोमीटर दूर भेजना हो तो यही माँ-बाप और भाई कन्नी काट जाते हैं, और ब्याह कर वो दो-हज़ार किलोमीटर दूर जा रही हो इन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। और पढ़ाई के लिए जाएगी तो किसी यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में रहेगी, सुरक्षा में रहेगी, हॉस्टल के बाहर गॉर्ड खड़ा होगा। उसकी ये अनुमति नहीं देते कहते हैं, “नहीं हम घर से दूर नहीं भेजेंगे पढ़ाई-लिखाई के लिए।” और शादी करके कहीं भी भेजने को तैयार हो जाते हैं। और जहाँ भेजते हैं वहाँ उसके साथ होता क्या है? इसकी ज़िम्मेदारी उठा लेंगे वो? वहाँ कोई गार्ड भी नहीं होगा। वहाँ बॉडीगार्ड होगा!

और जब बहन वहाँ से फ़ोन भी करेगी कि "भैया ये क्या कर दिया हमारे साथ? हम तो तुम्हारे भरोसे ही रह गए।" तो भैया यहाँ से बोलेंगे, “अब तुम निभाओ। एड्जस्ट करना सीखो, वही तुम्हारा घर है।“ तब तो सब ज़िम्मेदारी से हाथ-पाँव धो लेते हो। कहते हो, “अब तो पराई हो गयी, अब अपना घर देखे।“

जब शादी कराने के लिए इतने उत्सुक हो तो शादी के बाद जो कुछ होता है, उसकी फिर पूरी ज़िम्मेदारी उठाना।

राष्ट्रीय एजेंडा है – बहन की शादी करना। बहनें क्यों नहीं भाई की शादी करा रही होतीं? जितने भाई हैं सब लगे हुए हैं, “बहन की शादी! बहन की शादी!”

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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