आचार्य नागार्जुन के शून्यवाद और लाओत्सु के ताओवाद पर आधारित
नमस्कार, बोधप्रत्युषा सीरीज़ में आपका स्वागत है। इस सीरीज़ में हम आपको लाओत्सु के ताओ ते चिंग और आचार्य नागार्जुन के शून्यता सप्तति नामक ग्रंथों से परिचित कराएंगे। लाओत्सु ताओवाद के और आचार्य नागार्जुन शून्यवाद के समर्थक थे।
शून्यता सप्तति आचार्य नागार्जुन का रचित ग्रंथ है। उनका जन्म 150 CE में दक्षिण भारत में हुआ। वे रसायनविद्, खगोलशास्त्री और तंत्रविद्या के ज्ञाता थे। वेदान्त की बात जितनी स्पष्टता से महात्मा बुद्ध के दर्शन में उभरती है, उतनी कहीं और नहीं। बुद्ध की वाणी को सबसे स्पष्ट रूप से नागार्जुन जी के विचारों में देखा जा सकता है।
दूसरी ओर, ताओ ते चिंग लाओत्सु का ग्रंथ है। लाओत्सु चीनी दार्शनिक थे जो 600 BC के आसपास जीवित थे। वह साधारण व्यक्ति के रूप में एक राजा के दरबार में एकाउंटेंट (अभिलेखागार) का काम करते थे। नौकरी छोड़ने के बाद, वह अपने भैंसे पर बैठकर तिब्बत की ओर चले गए और चलते-चलते अपने शिष्यों को ज्ञान दिया।
ताओवाद कोई आयोजित धर्म नहीं है, बल्कि यह एक जीवन-पद्धति है। ताओवाद कहता है, "यदि जीवन में शुभता लानी है तो प्रकृति को समझना होगा।" वेदांत का भी यही उद्देश्य है।
नमस्कार, बोधप्रत्युषा सीरीज़ में आपका स्वागत है। इस सीरीज़ में हम आपको लाओत्सु के ताओ ते चिंग और आचार्य नागार्जुन के शून्यता सप्तति नामक ग्रंथों से परिचित...