एक ये चीज़ हटाओ भारत से || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

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एक ये चीज़ हटाओ भारत से || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: कोई बिल्ली के रास्ता काट जाने पर परेशान हो जाता है। कोई नीम्बू और सात मिर्चियाँ लटकाता है घर के आगे, दुकान के आगे कि अलक्ष्मी प्रवेश न कर जाए। आपमें से भी बहुत लोग करते होंगे। साँझ के बाद घर में सफ़ाई मत कर देना, दलिद्दर आता है। संस्था को सहायता राशि देंगे, कितनी? दस हज़ार एक रुपये। यह एक रुपया क्या है? यह एक रुपया क्या है भाई? बताओ न!

श्रोता: शुभ मानते हैं।

आचार्य: मानना क्या होता है? शुभ मानने की बात है? शुभता कोई मान्यता होती है क्या? यह अन्धविश्वास है। और कितने ही अन्धविश्वास हैं जो आपको एक-से-एक पढ़े-लिखे लोगों में मिल जाएँगे, आध्यात्मिक लोगों में मिल जाएँगे। और ऐसे अन्धविश्वास आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा भी खूब फैलाये जाते हैं। मैंने देखा कि वो बता रहे थे कि जिस दिन चन्द्रग्रहण-सूर्यग्रहण हो, उस दिन ग्रहण की अवधि में खाना मत खा लेना। किसी ने कहा, 'क्यों?' तो बोले, ‘वो खाने को ऐसा लग रहा है कि चाँद छिप गया। अब चाँद तो महीनेभर बाद छिपता है तो खाने को ऐसा लगेगा कि एक महीना बीत गया और एक महीने में तो खाना सड़ जाता है न!’ भाई चाँद कितने-कितने दिनों में छिपता है? तो जो खाना है उसको लगेगा कि महीना बीत गया, अब महीना बीत गया तो खाना सड़ जाएगा, तो खाना मत खाना।

तो पूछने वाले ने पूछा कि — अर्जुन (एक श्रोता) मुस्कुरा रहा है जानता है कि क्या बात हो रही है — तो पूछने वाले ने पूछा कि इसका कोई प्रमाण है आपके पास। तो बोले, ‘अभी बताते हैं।’ दक्षिण भारत से हैं, उन्होंने साम्भर-राइस मँगाया। चावल पर साम्भर रखा और रुद्राक्ष की माला यूँ ली (माला को हाथ में पकड़ने का अभिनय करते हुए)। और बोले, ‘देखो, माला अगर इधर को (एक दिशा को) चले तो माने माल ताज़ा है नीचे और माला इधर को (दूसरी दिशा को) चले तो माने माल बासी है।’ तो उन्होंने यूँ ली माला, कुछ देर तक माला इधर (एक दिशा) को चली फिर इधर (दूसरी दिशा) को चल दी। अब यह बात अलग है कि अगर वीडियो देखोगे तो साफ़ दिख जाएगा कि भाई साहब की कलाई का खेल है, ज़रा सा झटका देना है।

अब ये काम सब पहले चल जाया करते थे जब न इंस्टाग्राम था, न हर मोबाइल फोन में वीडियो कैमरा था। तब यूँ करके ऐसे (हाथ की मुट्ठी बन्द करके उसको खोलते हुए) राख मार दी तो चल जाता था। कबूतर मार दिया चल जाता था। अब करते हैं तो कैमरे में रिकॉर्ड हो जाता है। दिख जाता है कि तुम क्या पूरी दुनिया को उल्लू बना रहे हो। लेकिन फिर भी इन बातों पर मानने वाले बहुत लोग हैं। अभी फिर से आएगा चन्द्रगहण आएगा, सूर्यग्रहण आएगा, आप देखिएगा कि किस तरह से लोगों में अन्धविश्वास का बिलकुल एक सैलाब बहने लगता है। इधर-उधर की बातें, ऐसा-वैसा। दुनियाभर के पाखंडी, ज्योतिषी ये सब आ-आकर के सलाहें देना शुरू कर देंगे।

अच्छे-ख़ासे लोग बड़े-बड़े भवन बनाएँगे, वो पहुँच जाएँगे किसी वास्तुशास्त्री के पास। वो फिर बताएगा कि ऐसा करो, अब इस कमरे में वहाँ पर एक तसला रखो और उसमें फूलों की पंखुड़ियाँ रखो और उसमें फ़लानी चीज़ रख दो और यह फैला दो। ये सब करा जा रहा है। और ये सब कौन लोग कर रहे हैं? अशिक्षित, गँवार लोग नहीं कर रहे हैं। ये वो लोग कर रहे हैं जिनके पास पैसा है, पढ़े-लिखे हैं। अब जब मैं कह रह हूँ पढ़े-लिखे हैं, तो भारत देश के साथ समस्या यह है कि यहाँ लोग जो पढ़े-लिखे हैं वो भी थोड़ा ही पढ़े-लिखे हैं। वो इतना तो पढ़े-लिखे हैं कि उनके सामने बोल दो एनर्जी (ऊर्जा), तो उनको याद आ जाता है कि हाँ एनर्जी फ़िज़िक्स (भौतिकी) में हुआ करता था। इतना तो उनको याद है क्योंकि दसवीं तक तो विज्ञान सभी ने पढ़ा है। लेकिन उन्हें यह नहीं याद है कि एनर्जी चीज़ क्या है। बात समझ में आ रही है?

कोई एकदम ही गँवार हो तो उसको बुद्धू बनाना मुश्किल है, ख़ासतौर पर वैज्ञानिक शब्दों का सहारा लेकर के नहीं बनाया जा सकता बुद्धू उसको। पर आजकल इन शब्दों का खूब इस्तेमाल होता है, एनर्जी, वाइब्रेशन (कम्पन)। इनका इस्तेमाल सबसे ज़्यादा कौन करते हैं? आध्यात्मिक गुरु वगैरह। अब जैसे आप थोड़े-बहुत पढ़े-लिखे हैं, शहरी मध्यम वर्ग से हैं आप, सॉफ्टवेयर में काम करते हैं। और जैसे ही आपने सुना कि कोई गुरु एनर्जी की बात कर रहा है, तो आपको लगता है यह ज़रूर साइंटिफिक (वैज्ञानिक) बात कर रहा है। पर आपको इतनी भी फ़िज़िक्स याद नहीं है कि आप देख सकें कि वो गड़बड़ कर रहा है। थोड़ी सी याद है, वो जो थोड़ा सा याद है वो आपके लिए घातक हो जाता है। या तो पूरा याद होता, तो आप तुरन्त समझ जाते कि आप जो बात बोल रहे हैं वो वैज्ञानिक कहीं नहीं हैं, आप झाँसा दे रहे हैं।

भारत दोनों तरफ़ से मारा जा रहा है। स्कूलों में ठीक से विज्ञान पढ़ाया नहीं जा रहा। जहाँ भौतिक शिक्षा दी जानी चाहिए वहाँ भौतिकी की शिक्षा दी नहीं जा रही। और अध्यात्म की ओर जो लोग आ रहे हैं उन्हें झूठी भौतिकी पढ़ाई जा रही है। स्कूलों में, क्लासरूम्स में जहाँ पर फ़िज़िक्स पढ़ाई जानी चाहिए थी, वहाँ पढ़ाई नहीं जा रही। वहाँ नकल करके या आधा-तिहा जानकर के स्टूडेंट्स पास हो जा रहे हैं। और फिर जब वो अध्यात्म की ओर आते हैं तो वहाँ पर उन्हें नकली भौतिकी, नकली फ़िज़िक्स पढ़ा दी जाती है। कोई बताता है वाइब्रेशन है, ये है, वो है। भाई तुमने अगर थोड़ा सा फ़िज़िक्स-केमिस्ट्री पढ़ी होती तो समझ जाते कि वाइब्रेशन चीज़ क्या होता है। वेव थ्योरी थोड़ी पढ़ी होती। और मुश्किल नहीं है, पढ़ी जा सकती है।

तो पूरी दुनिया और ख़ासकर भारत की प्रगति की राह में, मैं बहुत बड़ा रोड़ा मानता हूँ विज्ञान के प्रति हमारी जो उपेक्षा और अशिक्षा है। अशिक्षा भर होती तो कोई बात नहीं थी। सिर्फ़ अशिक्षा होती तो कोई बात नहीं थी, हम उपेक्षा भी करते हैं। जो लोग विज्ञान के स्टूडेंट भी हैं, वो विज्ञान को अधिक-से-अधिक समझते हैं पैसा कमाने का ज़रिया, कि इससे पैसा कमा लेंगे। भारत के जो अच्छे-ख़ासे, बड़े, नामवर संस्थान हैं, चाहे वो आईआईटी हो चाहे वो आईआईएससी हो, वहाँ से भी निकले हुए लोग अपने निजी जीवन में अन्धविश्वास रखते हैं। क्यों? क्योंकि उनका मन वैज्ञानिक नहीं है। उन्होंने विज्ञान तो पढ़ा, पर विज्ञान उन्होंने पढ़ा सिर्फ़ पेट भरने के लिए। पेट की रोटी चलती रहे इसलिए उन्होंने विज्ञान पढ़ा। तो ठीक है, उनको डिग्री वगैरह मिल गयी लेकिन उनकी निजी ज़िन्दगी में देखो तो अन्धविश्वास से भरपूर है उनकी निजी ज़िन्दगी।

भारत में विज्ञान के प्रति उपेक्षा है। सिर्फ़ अशिक्षा होती तो कोई बात नहीं थी। यहाँ जो लोग विज्ञान में शिक्षित भी हैं वो भी अन्धविश्वासी हैं। यहाँ विज्ञान के प्रति उपेक्षा और अनादर है। इसलिए मुझे कल बहुत अच्छा लगा, कल भारत रातभर जगा है, भारत ने कल विज्ञान को आदर दिया है। मैं चाहता हूँ वो आदर गहराये।

जब आप कहते हैं कि अरे बड़ी दुर्घटना हो गयी, चन्द्रयान टूट गया, जवान लोगों को, बच्चों को, किशोरों को पता चलना चाहिए कि विज्ञान दुर्घटनाओं का ही क्षेत्र है और यहाँ बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी गयी हैं। आपने कहा न सेटबैक (कमी) हो गया, विज्ञान के क्षेत्र में बड़े-से-बड़े सेटबैक हुए हैं। यहाँ कोई नहीं हैं जो चोटिल न हुआ हो, घायल न हुआ हो। पर ये बातें हमें बतायी नहीं जातीं। धर्मगुरुओं ने चोट खायी, वो हमें बता दिया जाता है। यह हमको बता दिया जाता है कि कोई था सच का योद्धा और समाज ने उसको बड़ी तकलीफ़ दी। हमें बताया जाता है कि नहीं? सुकरात और मंसूर के नाम सबकी ज़ुबान पर है। ये सब हम खूब जानते हैं कि सुकरात को और मंसूर को और सरमद को सच बोलने की सज़ा मिली। लेकिन हमने आज तक हिन्दुस्तान के बच्चों को नहीं बताया कि कितने वैज्ञानिकों को सच बोलने की कितनी सज़ा मिली है।

हिन्दुस्तान का बच्चा दुनिया के वैज्ञानिकों के नाम ही नहीं जानता। उसमें इतनी उपेक्षा, इतना अनादर है विज्ञान के प्रति, क्योंकि हम अन्धविश्वास से भरे हुए लोग हैं। और हमें ये संस्कार ही नहीं दिये गए कि तथ्य जानना, दुनिया को जानना बहुत ज़रूरी है और दुनिया को नहीं जान सकते तुम विज्ञान के बिना। और विज्ञान में ऐसी-ऐसी प्रेरक कहानियाँ हैं कि पूछो मत। वो कहानियाँ आपको पता चलें, आप वैज्ञानिकों के मुरीद हो जाएँगे, आप पूजना शुरू कर देंगे उनको।

आईआईटी जेईई होता है, अभी एक सज्जन हैं वो अपने बेटे को लेकर मिलने आये मुझसे—यतेंद्र जी थे—वो आईआईटी जेईई दे रहा है। तो उसको कुछ तनाव इत्यादि था उसने बात करी मुझसे। मैंने कहा कि इसको अपनी ही समस्याएँ इतनी बड़ी लग रही हैं और जिन नामों से ये रोज़ मुख़ातिब होता है, उनके बारे में कुछ जानता नहीं। इसे पता चले उन्होंने कितनी बड़ी-बड़ी समस्याएँ झेली थीं, तो यह अपनेआप को भूल जाएगा। केप्लर, बोल्डजमैन, मैक्सवेल, मैक्स प्लांक, एवोगेड्रो, पाँच नाम लिये और इन पाँचों ने जीवन में बहुत बड़ी दुश्वारियाँ झेली थीं। और ये पाँचों आईआईटी जेईई के सिलेबस (पाठ्यक्रम) में शामिल हैं। लेकिन इनकी कहानियाँ हमें कभी बतायी नहीं जातीं। अधिक-से-अधिक हमें थोड़ा सा पता रहता है कोपरनिकस के बारे में। उसने हीलियो सेंट्रिक ऑर्बिट दे दिया, उसको बहुत मुश्किलें दी गयीं। लेकिन हमें नहीं बताया जाता कि केप्लर ने जब इलिप्टिकल ऑर्बिट की बात करी, तो उसको भी बहुत तकलीफ़ें झेलनी पड़ी थीं।

सच बोलने पर भाई कोई धार्मिक लोगों का एकाधिकार थोड़े ही है? वैज्ञानिकों को भी सच बोलने की, दुनिया का सच बोलने की, बहुत बड़ी क़ीमत देनी पड़ती है। ये हमारे बच्चों को पता नहीं, उनकी इसमें कभी रुचि नहीं जाग्रत की जाती। इसीलिए यह देश इतने दिनों तक इतना पिछड़ा रहा, अभी भी पिछड़ा है।

हमारी लड़कियों को बताया ही नहीं जाता रोजालिन फ्रैंकलिन के बारे में। डीएनए की आज हमने खूब बात करी है न चर्चा में, कि प्रकृति तो चाहती है डीएनए का प्रचार-प्रसार। वो ब्रिटिश थी, अगर सही याद है मुझे, और डीएनए का जो डबल हेलिक्स स्ट्रक्चर होता है—डीएनए का आपने देखा होगा डबल हेलिक स्ट्रक्चर होता है, हेलिकल। ऐसे जैसे कि एक हेलिक्स की तरह गोल घूमती हुई सीढ़ियाँ ऊपर जा रही हों—सबसे पहले उसने खोजा था। पर भोली थी, कैसे खोजा था उसने? एक्स-रे क्रिस्टेलोग्राफी से। वो क्रिस्टेलोग्राफर थी, उसने खोजा था। भोली थी, उसी के असिस्टेंट ने जाकर के प्रकाशित होने से पहले उसकी सारी खोज सार्वजनिक कर दी, और लोगों तक पहुँचा दी। जिन तक पहुँचा दी उनको नोबेल प्राइज़ मिल गया। जिन तक पहुँचा दी उन्हें नोबेल प्राइज़ मिल गया।

हम चन्द्रयान की दुर्घटना की बात कर रहे हैं, मैं बता रहा हूँ कि विज्ञान के क्षेत्र में कैसी-कैसी त्रासदियाँ होती हैं। और ये बातें हमारे युवाओं को, हमारे बच्चों को पता चलनी चाहिए ताकि उनके मन में विज्ञान के प्रति आदर बढ़े। फिर हम बहुत चन्द्रयान लॉन्च कर लेंगे। चन्द्रमा क्या, मंगल, बुध, ब्रहस्पति, शुक्र, शनि जहाँ-जहाँ पहुँचना हो पहुँचेंगे, आकाश गंगा पार कर जाएगा यह देश। पर पहले यहाँ के बच्चों में विज्ञान के प्रति आदर तो पैदा करिए।

और दूसरों को मिल गया नोबेल प्राइज़। सैंतीस की उम्र में—सैंतीस की उम्र में बूढ़े नहीं हो, जवान ही हो—इस स्त्री की मौत हो गयी। मौत क्यों हुई जानते हो? एक्स-रे के ओवर एक्सपोज़र से। डीएनए की खोज कर सके एक्स-रे के माध्यम से, उसके लिए उसने एक्स-रे का इतना एक्सपोजर सहा कि उसकी मृत्यु हो गयी। उसकी मौत हो गयी जो काम करते हुए, उस काम का नोबेल प्राइज़ कोई और ले गया। सैंतीस की उम्र में मर गयी कैंसर से। कैसी लगी यह घटना?

तक्षशिला-नालन्दा का तुमने फिर भी कुछ नाम सुना है। एलेक्जेन्ड्रिया की लाइब्रेरी थी, सुना है नाम? ईसा से पहले उसको जलाया जूलियस सीजर ने, ईसा के बाद उसको जलाया ईसाइयों ने और अन्ततः उसको जलाया बगदाद के ख़लीफ़ा ने। और ये सारा काम सात-आठ सौ साल के अन्तराल पर हुआ। बात यह नहीं है कि वो जलती रही, बात यह है कि ज्ञान का वह भंडार नष्ट किया जाता रहा और पुनः आता रहा। बताओ न सबको! सिर्फ़ इधर-उधर की कहानियाँ क्यों बताते हो? इस देश में दो तरह की कहानियाँ चलती हैं बस — या तो फ़िल्मी कहानियाँ या धार्मिक कहानियाँ। या तो फ़िल्मी कहानियाँ या धार्मिक कहानियाँ। अरे! वैज्ञानिकों की कहानियाँ भी तो कोई हो बताने वाला। क्यों नहीं बतायी जाती? बारहवीं के बायोलॉजी के विद्यार्थी जेनेटिक्स में ग्रेगॉर मेंडेल को पढ़ते हैं, पढ़ते हैं न? पर उसका जीवनवृत नहीं जानते कि उसने कितनी तकलीफ़ें सहीं। मेंडेल ने तकलीफ़ें कितनी सहीं, यह वो नहीं जानते।

तो चन्द्रयान का जो दूरगामी लाभ है भारत को वो यह है कि भारत जगा है विज्ञान के प्रति। और भारत का विज्ञान के प्रति जागना बहुत ज़रूरी है, नहीं तो अन्धविश्वास, अन्धविश्वास और अन्धविश्वास। कहीं बताया जा रहा है कि साँप बड़ी रहस्यमयी और बड़ी आध्यात्मिक प्रजाति होते हैं, साँप-साँप-साँप! कहीं बिल्लियों की बात करी जा रही है, कहीं अन्य जानवरों की बात करी जा रही है। अरे! ये सब है क्या, समझ तो लो, थोड़ा विज्ञान की तरफ़ तो जाओ। इतनी बड़ी सज़ा मिल रही है इस मुल्क को विज्ञान को न जानने की कि विज्ञान का ही नाम लेकर धर्मगुरु इस देश को बेवकूफ़ बना रहे हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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