कबीर साहब के दोहे हम से इशारों में बात करते हैं। दोहे का अर्थ बहुत सूक्ष्म होता है और जहांँ अर्थ हम ने स्थूल कर दिया वहांँ फिर रस नहीं रह जाता है। हम पैदा एक जीव की तरह होते हैं और हमारा रिश्ता मांस के चलाए चलता है। मांस माने देह और देह माने संसार। कबीर साहब हम से लगातार सवाल पूछते हैं कि तुम्हारा और मांस का रिश्ता क्या है? दूसरे शब्दों में वो इस बात पर ज़ोर दे रहे है कि तुम्हारा और संसार का रिश्ता क्या है? स्थूल या सूक्ष्म रूप से हम संसार को हर पल किसी न किसी रूप में भोग रहे होते हैं।
इस पाठ्यक्रम के कुछ चुनिन्दा दोहे को आचार्य प्रशांत के माध्यम से सरल भाषा में समझाया गया है। जीवन को एक नई दिशा दीजिए आचार्य प्रशांत के साथ, कबीर साहब के दोहे पर आधारित इस सरल कोर्स में।
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