कोई उन्हें अद्वैत वेदांत में निहित आध्यात्मिक गुरु कह सकता है। या कोई उन्हें दुनिया की सभी आध्यात्मिक परंपराओं का सबसे समकालीन प्रतिनिधि कह सकता है। समान रूप से, कोई उन्हें पूर्णतः मूल और किसी भी परंपरा से परे कह सकता है।
लेकिन उन्हें जानने का सबसे उपयुक्त तरीका उनके काम के जरिए होगा।
उनका काम करुणा पर आधारित है और खुद को विध्वंस के रूप में व्यक्त करता है। शास्त्रीय अर्थों में वे सबसे रूढ़िवादी आध्यात्मिक शिक्षक जैसे हैं, समकालीन अर्थों में वे एक शाकाहारी प्रवर्तक, एक पर्यावरण कार्यकर्ता, एक विज्ञान कार्यकर्ता, अंधविश्वास के खिलाफ एक प्रचारक और आवश्यक मानव स्वतंत्रता के महारथी हैं।
उनके काम से सबसे अधिक लाभान्वित होने वाले वर्गों में शामिल हैं:
पशु-पक्षी, वनस्पति तथा अन्य गैर-मानव जीव – आज के समय में पशु-पक्षियों तथा वनस्पति को सबसे बड़ा खतरा मानव जाति के अज्ञान से है। मनुष्य का पर्यावरण के प्रति यह अज्ञान मूलतः स्वयं के शरीर तथा मन के अज्ञान से पैदा होता है। अतः मनुष्य के मन का सुधार ही प्रकृति को बचाने का सबसे उचित उपाय है। यह कहा जा सकता है कि आचार्य प्रशांत के कार्यों की वजह से लाखों जानवरों की जानें बची हैं, विशेष रूप से उन जानवरों की जो आमतौर पर भोजन के लिए मारे जाते है, जैसे- मुर्गा, बकरा, भेड़, गाय, भैंस, मछली आदि। इसके अतिरिक्त, बड़ी तादाद में जंगली जानवरों की जानें भी बचीं हैं। आचार्य जी के प्रयासों से प्रेरित होकर लाखों लोगों ने शाकाहार अथवा विशुद्ध शाकाहार को अपनाया है तथा एक सजग जीवनशैली अपनाई है जिसमें पर्यावरण के प्रति जागृति तथा न्यूनतम कार्बन पदचिन्ह का प्रमुख स्थान है। आचार्य प्रशांत को वीगन मूवमेंट (विशुद्ध शाकाहार आंदोलन) का एक प्रमुख चेहरा भी माना जाता है।
युवा-वर्ग – आज का युवा, विशेषतः भारत का युवा-वर्ग, घर-परिवार, समाज, मीडिया, आर्थिक व्यवस्था इत्यादि से संस्कारित होने के कारण भिन्न-भिन्न चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस वजह से उसके सामने शारीरिक संबंध, प्रेम, अस्तित्व इत्यादि को लेकर तरह-तरह की दुविधाएँ खड़ी हो गई हैं। वे एक नाज़ुक स्थिति में हैं जहाँ सम्यक निर्णय लेना मुश्किल हो गया है तथा गलत चुनाव करना बहुत आसान, आचार्य प्रशांत ने युवाओं की इन दुविधाओं को संबोधित करने में अनूठा किरदार निभाया है। देश के कई युवा आचार्य प्रशांत के शुक्रगुज़ार हैं कि उन्होंने अहम मौकों पर उनका मार्गदर्शन किया है और घातक निर्णय लेने से बचाया है।
महिलाएँ – दुनिया भर में, खासकर भारत में, महिलाओं को मानव जाति का एक अशक्त अंश समझा गया है। हालाँकि सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक नीतियों के माध्यम से उन्हे सबल बनाने की कोशिश की गई है लेकिन आंतरिक स्पष्टता एवं स्वायत्ता की गैर मौजूदगी में यह प्रयास सफल नहीं हो सकते। आचार्य प्रशांत ने महिलाओं को अपनी असली पहचान के प्रति जागृत किया है, उन्होंने यह दिखाया है कि न तो वे शरीर मात्र हैं और न ही केवल एक समाज-संस्कृत मन। स्कूली बालिकाओं से लेकर अधेड़ उम्र की गृहिणियों तक आज अनगिनत महिलाएँ आचार्य प्रशांत की शुक्रगुज़ार हैं। उनकी शिक्षाओं से उन्हें स्वायत्ता, स्पष्टता और साहस मिला है जिससे वे बाहरी शोषण एवं भीतरी कमज़ोरी का सामने करने में सक्षम हुईं हैं।
आध्यात्मिक साधक – आज के समाज में एक विपुल वर्ग है जिसके लिए अध्यात्म केवल एक मनोरंजन का माध्यम है। इसके अतिरिक्त, एक ऐसा वर्ग है जिसके लिए अध्यात्म पुराने अंधविश्वासों को बनाए रखने के लिए एक सम्मानजनक नाम मात्र है। फिर कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने जीवन की कटु सच्चाइयों से दूर भागने के लिए अध्यात्म की ओर आते हैं । इन्हें किसी सतही उपाय की खोज रहती है जिसमें किसी प्रकार की क्रियाएँ, कर्मकाण्ड अथवा आसन शामिल हों। आचार्य प्रशांत इन सभी प्रकार के जिज्ञासुओं को इनकी मूर्छित अवस्थाओं से बाहर लाने के लिए प्रचलित हैं। इन सभी से भिन्न वह बिरला साधक है जिसने मन की गहराइयों में प्रवेश करने की खूब कोशिश की है, जो अपनी मुक्ति के लिए कठोर श्रम करने के लिए तैयार है, जो बंधनों से हताश है और मुक्ति की कीमत अदा करने को तैयार है। आचार्य प्रशांत ऐसे साधकों के लिए एक सच्चे मित्र बन जाते हैं।
मनुष्य को ज्ञात सबसे प्राचीन शास्त्रों में वेद शीर्ष पर आते हैं और वेदांत वैदिक सार के परम शिखर हैं।
आज दुनिया ऐसी समस्याओं से जूझ रही है जो इतिहास में पहले कभी नहीं देखी गईं। अतीत में हमारी समस्याएँ अक्सर बाहरी परिस्थितियों के कारण होती थीं, जैसे कि भुखमरी, गरीबी, अशिक्षा, प्रौद्योगिकी का अभाव, स्वास्थ्य संबंधित समस्याएँ आदि। संक्षेप में कहें तो चुनौती बाहरी थी, दुश्मन – चाहे वो सूक्ष्म जीव के रूप में हो या संसाधनों की कमी के रूप में – बाहर था। सीधे कहें तो मनुष्य अपनी बाहरी परिस्थितियों के दबाव में संघर्षरत रहता था।
परन्तु बीते सौ वर्षों में बहुत से बदलाव हुए हैं। मनुष्य के संघर्षों ने इस सदी में एक बहुत ही अलग और जटिल रूप ले लिए हैं। पदार्थ को किस तरह से अपने उपभोग के लिए इस्तेमाल करना है, वह आज हम जानते हैं; परमाणु और ब्रह्मांड के रहस्य मनुष्य के अथक अनुसंधान के आगे ज़्यादा छिपे नहीं रह गए हैं। आज गरीबी, अशिक्षा और बीमारी अब वैसी अजेय समस्या नहीं रही जैसे पहले प्रतीत हुआ करती थी। इसी के चलते अब हमारी महत्वाकाँक्षा दूसरे ग्रहों में बसने और यहाँ तक कि मृत्यु को मात देने की हो गई है।
वर्तमान काल मनुष्य के इतिहास में सबसे अच्छा होना चाहिए था। इससे कहीं दूर, हम अपने आप को आंतरिक रंगमंच में चुनौती के एक बहुत ही अलग आयाम पर पाते हैं। बाहरी दुनिया में लगभग हर चीज़ पर विजय प्राप्त करने के बाद मनुष्य पा रहा है कि वह आज पहले से कहीं ज़्यादा गुलाम है। और यह एक अपमानजनक गुलामी है – सभी पर वर्चस्व जमाना और फिर यह पाना कि भीतर से एक अज्ञात उत्पीड़क के बहुत बड़े गुलाम हैं।
मनुष्य भले ही प्रकृति पर अपना नियंत्रण बनाने में सफल हो गया हो लेकिन वह स्वयं अपने आंतरिक विनाशकारी केंद्र द्वारा नियंत्रित है, जिसका उसे बहुत कम ज्ञान है। इन दोनों के साथ होने का मतलब है कि मनुष्य की प्रकृति का नाश करने की क्षमता असीमित और निर्विवाद है। मनुष्य के पास केवल एक ही आंतरिक शासक है: इच्छा, उपभोग करने और अधिक-से-अधिक सुख का अनुभव करने की अनंत इच्छा। मनुष्य सुख का अनुभव तो करता है पर फिर भी स्वयं को अतृप्त ही पाता है।
इस संदर्भ में आध्यात्मिकता के शुद्ध रूप में वेदान्त आज पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। वेदांत पूछता है: भीतर वाला कौन है? उसका स्वभाव क्या है? वह क्या चाहता है? क्या उसकी इच्छाओं की पूर्ति से उसको संतोष मिलेगा?
आज मानव जाति जिन परिस्थितियों में खुद को पाती है, उसकी प्रतिक्रिया के रूप में आचार्य प्रशांत वेदांत के सार को आज दुनिया के सामने लाने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। उनका उद्देश्य वेदान्त के शुद्ध सार को सभी तक पहुँचाना और वेदान्त द्वारा आज की समस्याओं को हल करना है। वर्तमान की ये समस्याएँ मनुष्य के स्वयं के प्रति अज्ञान से उत्पन्न हुई हैं, इसलिए उन्हें केवल सच्चे आत्म-ज्ञान से ही हल किया जा सकता है।
आचार्य प्रशांत ने दो तरीकों से वेदांत को जन-सामान्य तक लाने का प्रयास किया है: पहला, उन्होंने कई उपनिषदों और गीताओं पर सत्र लिए हैं और उनकी व्यापक टिप्पणियाँ वीडियो श्रृंखला और पुस्तकों के रूप में उपलब्ध हैं। दूसरा, वे लोगों की दैनिक समस्याओं को संबोधित करते हुए उन्हें वेदांत के प्रकाश में सुलझाकर उनका मार्गदर्शन करते हैं। उनके सोशल मीडिया चैनल्स ऐसे हज़ारों सत्रों के प्रकाशन के लिए समर्पित हैं।
प्रशांत त्रिपाठी का जन्म 1978 को महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में हुआ था। वे तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं, उनके पिता एक प्रांतीय प्रशासनिक अधिकारी थे और माता एक गृहिणी। उनका बचपन ज़्यादातर उत्तर प्रदेश में ही बीता।
माता-पिता और शिक्षकों ने उन्हें एक ऐसा बालक पाया जो कभी शरारत करता तो कभी अचानक गहन चिंतन में डूब जाता। दोस्त भी उन्हें एक अपरिमेय स्वभाव वाला याद करते हैं, अक्सर यह सुनिश्चित नहीं होता था कि वे मज़ाक कर रहे हैं या गंभीर हैं। एक प्रतिभाशाली छात्र होने के कारण वे लगातार अपनी कक्षा में शीर्ष पायदान पर रहे और एक छात्र के लिए उच्चतम संभव प्रशंसा और पुरस्कार प्राप्त किए। उनकी माताजी को याद है कि कैसे उन्हें अपने बच्चे के बेहतर शैक्षिक प्रदर्शन के कारण कई बार 'मदर क्वीन' की उपाधि से सम्मानित किया जाता था। शिक्षक कहते हैं कि उन्होंने पहले कभी ऐसा छात्र नहीं देखा था जो मानविकी में उतना ही प्रतिभाशाली हो जितना विज्ञान में, जो भाषाओं में उतना ही निपुण हो जितना गणित में और अंग्रेजी में उतना ही कुशल जितना हिंदी में। राज्य के तत्कालीन राज्यपाल ने उन्हें....